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पुणे। 'मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा' जैसे राष्ट्रीय एकता को समर्पित इस लोक प्रसिद्ध शास्त्रीय गीत को प्रथम स्वर देने वाले महान संगीतज्ञ भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी ने भी इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक जीवंत श्रृंखला से टूटने का समाचार जैसे ही देश दुनिया को मिला उनके चाहने वाले और इस क्षेत्र के फनकार स्तब्ध रह गए। भारत के गणतंत्र दिवस जैसे अवसरों पर कर्णप्रिय और भावना प्रधान सुर संगीत देने वाले पंडित भीमसेन जोशी ऐसे समय पर गए हैं जब देश का महान पर्व गणतंत्र दिवस ठीक दो दिन बाद मनाया जाने वाला है और यह भी कि अभी से ही उनके गीतों और राष्ट्रप्रिय धुनों को पूरा हिंदुस्तान गुनगुना रहा है।
भीमसेन जोशी लंबे समय से बीमार चल रहे थे वे 89 वर्ष के थे। उनको 31 दिसंबर को अस्पताल में जीवन रक्षक मशीन पर रखा गया था, दरअसल वृद्धावस्था के कारण वे अशक्त हो गए थे और उनके गुर्दों ने भी उनका साथ देना बंद कर दिया था। इस कारण उनको सांस लेने में भी भारी तकलीफ होती थी। पंडित भीमसेन जोशी का ब्रेन ट्यूमर और सरवाईकल स्पाइन का भी आपरेशन हो चुका था। काफी समय से उन्होंने सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाना भी बंद कर दिया था। उनके तीन पुत्र और एक पुत्री है। उन्हें पद्मश्री, पद्मविभूषण, तानसेन पुरस्कार जैसे असंख्य पुरस्कारों सहित देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा जा चुका था। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को उसकी ऊंचाईयों तक पहुंचाया और दुनिया को उसका लोहा मनवाने के लिए विवश किया। जैसे ही उनके निधन की खबर आई पुणे शहर में शोक व्याप्त हो गया और लोग उनके घर की ओर उमड़ पड़े।
पंडित भीमसेन जोशी की शास्त्रीय संगीत की उपलब्धियों के बारे में जितना लिखा जाए उतना कम होगा। 'मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा' राष्ट्रप्रिय वृत्तचित्र से देश का वो आदमी भी उन्हें जान गया जो शास्त्रीय संगीत की समझ नहीं रखता था। बच्चे हों या बूढ़े उनके इस गीत को आज भी देशभक्ति से ओत-प्रोत होकर गुनगुनाते हैं। उन्होंने हिंदुस्तानी संगीत को जो सुर दिए आज का संगीत जगत उसी में घूमकर सुर संगीम की रचनाएं कर रहा है। वे संगीत का कठोर रियाज किया करते थे और एक मात्रा के भी इधर से उधर महसूस होने पर उस पर शोध करते थे। उन्होंने एक-एक सुर को इतना कर्णप्रिय बनाया कि संगीत समारोहों में श्रोताओं के बार-बार अनुरोध के कारण उन्हें अतिरिक्त प्रस्तुतियां देनी होती थीं लेकिन वे थकते नहीं थे। भीमसेन जोशी ने तानसेन के जीवन पर आधारित एक बांग्ला फिल्म में ध्रुपद गायक के रूप में अपनी आवाज़ दी थी और वसंत बहारा एवं भैरवी जैसी फिल्मों में भी गाया। संगीत का एक लंबा सफर तय करने वाले इस मनीषी के साथ ही संगीत का एक युग गुजर गया है।
सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर, संगीत जगत के जाने-माने संगीतकार रवींद्र जैन, फिल्मी दुनिया की अनेक हस्तियों, भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल, उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, कांग्रेस एवं यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, अरूण जेटली, लालकृष्ण आडवाणी और देश-विदेश की विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियों, राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, ने पंडित भीमसेन जोशी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त् किया है। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति ने अपने शोक संदेश में कहा है कि पंडित भीमसेन जोशी हिंदुस्तानी संगीत के असाधारण गुणों से संपन्न व्यक्तियों में से एक थे। वे संगीत में परंपरा बन गए। हामिद अंसारी ने कहा कि मेरे साथ मेरी पत्नी भी शोक संतप्त परिवार के सदस्यों, उनके प्रशंसकों और मित्रों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त करती हैं।
प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने कहा कि राष्ट्र और संगीत जगत ने उत्कृष्ट संगीत प्रतिभा और किराना घराने के सुविख्यात सर्वप्रसिद्ध प्रतिनिधि को खो दिया है। पंडित जोशी ने कई दशकों तक अपनी बेमिसाल गायन शैली और कई रागों में विशेषज्ञता के ज़रिए शास्त्रीय गायकी में नवचेतना का प्रतिनिधित्व किया है। उन्होंने दर्शाया कि संगीत भाषाई या सांस्कृतिक सीमाओं में नहीं बंधा है। अपनी विशिष्ट व्यक्तिगत शैली और दूसरे घरानों से अभिलक्षणों का रूपांतरण करके उन्होंने एक विशिष्ट गायन शैली से किराना घराने को समृद्ध बनाया।उनकी सुमधुर आवाज़, ताल पर निपुणता और भजन और ख़्याल के ख़ूबसूरत प्रस्तुतीकरण से कई पीढ़ियों के संगीत श्रोता सम्मोहित हुए। प्रधानमंत्री ने उनके राष्ट्रीय एकीकरण पर आधारित गीत ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ के प्रस्तुतीकरण की भी चर्चा की जो काफी प्रसिद्ध हुआ।