स्वतंत्र आवाज़
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गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति की चिंताएं सामने आईं

भ्रष्टाचार, महंगाई और अराजकता पर निराशा

मीडिया से बड़ी जिम्मेदारी निभाने का आग्रह

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राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल-president pratibha devisingh patil

नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश को संबोधित करते हुए भ्रष्टाचार, महंगाई, देश और लोकतंत्र, जनता और शासनकर्ताओं, मीडिया, खेत खलिहान से लेकर कार्पोरेट जगत तक पर अपरोक्ष रूप से और कहीं-कहीं सीधे चिंताजनक टिप्पणियां कीं। देश के सामने गंभीर चुनौतियों का जिक्र किया और देश की जनता से कहा कि गणतंत्र दिवस एक ऐसा अवसर भी है, जब हम देश में खुद को सौहार्द, शांति और भाईचारा कायम रखने के लिए फिर से समर्पित करें, यही समय आत्म-मूल्यांकन का भी है कि हमारी प्रगति यात्रा अभी तक कैसी रही है और हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं। उन्होंने देश की उपलब्धियों का श्रेय देश के करोड़ों पुरुषों और महिलाओं की हिम्मत और उनकी समर्पित कड़ी मेहनत, उनकी देशभक्ति को दिया है, वे ही भारत के बढ़ते प्रभाव और उसके निरंतर आर्थिक विकास के साक्षी हैं, इन्हीं के कारण देश के अधिक से अधिक लोगों को खुशहाली प्राप्त हुई है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता से ऐसे आदर्श और मूल्य प्राप्त हुए हैं, जिन्होंने हमें मानवीय अनुभवों और चिंतन की समृद्ध विरासत प्रदान की है। हमारी प्राचीन संस्कृति में, सभी इंसानों के एक ही मूल से होने, आपस में और प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर रहने और ज्ञान और सत्य की खोज, जैसी संकल्पनाओं को प्रमुखता दी गई है। इन्हीं विचारों ने हमारी आजादी के आंदोलन को प्रेरणा प्रदान की और आजादी के बाद इनको हमारे संविधान में सहज प्रतिध्वनि मिली। इस देश के नागरिक होने के नाते यह हममें से हर-एक का कर्तव्य और दायित्व है कि हम यह दिखाएं कि इन सिद्धांतों से हमें एक महान देश का निर्माण करने की प्रेरणा और शक्ति प्राप्त हुई है। यह भी एक सच्चाई है कि ऐसा कोई भी समाज नहीं हो सकता, जिसे समय की बदलती जरूरतों से निपटने के लिए खुद को विकसित करने की जरूरत न पड़े और न ही ऐसा कोई देश हो सकता है, जिसे चुनौतियों का सामना न करना पड़ा हो।

उन्होंने देश में चल रहे विभिन्न घटनाक्रमों पर अप्रत्यक्ष रूप से टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत के हिस्से में भी कई समस्याएं, अड़चनें, दबाव और कठिनाइयां आई हैं। हम इनसे बचकर नहीं निकल सकते या इनकी अनदेखी नहीं कर सकते, परंतु हमें विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करते हुए, मिल-जुलकर इनका समाधान खोजना होगा। किसी भी देश की ताकत का आकलन उसके सामने मौजूद चुनौतियों से नहीं वरन् इस बात से होता है कि उसने इनका जवाब किस ढंग से दिया, खासकर तब, जबकि देश एक महत्त्वपूर्ण दौर और निर्णायक मोड़ पर खड़ा हो। अगले दशक के दौरान, हम अपनी इस बढ़त से फायदा उठाने और अपनी कमियों को दूर करने के लिए क्या-क्या कदम उठाते हैं, इससे ही हमारे देश के भविष्य का निर्माण होगा। जब भी अपने कार्य की दिशा में सुधार जरूरी हो, उसमें बिना हिचक और तत्काल सुधार किया जाना चाहिए। महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय लक्ष्यों के संबंध में राष्ट्रीय आमराय होनी चाहिए। नागरिक जीवन में अनुशासन, समर्पण और निष्ठा से कार्य करने में जनता की तत्परता का बहुत सकारात्मक प्रभाव हो सकता है।

प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने कहा कि हमारी सबसे शानदार उपलब्धियों में से एक, लोकतंत्र के प्रति हमारी दृढ़ निष्ठा रही है। भारत की जनता ने हरबार चुनावी प्रक्रिया में भाग लेकर अपनी आस्था जताई है। हमारे लिए लोकतंत्र विश्वास का प्रतीक है और न केवल हमारे गणतंत्र के मूल स्तंभ के रूप में, बल्कि हमारी स्वतंत्राताओं की गारंटी के रूप में भी, दोनों ही नजरियों से, महत्त्वपूर्ण है। इसकी निरंतरता, भारत की पहचान के लिए जरूरी है, जो कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और बहुत सी विषमताओं के बावजूद सुव्यवस्थित ढंग से संचालित हो रहा है, इसलिए हमें न केवल लोकतांत्रिक संस्थाओं और इसकी प्रक्रियाओं को मजबूती देनी होगी वरन् जाने-अनजाने में किए गए ऐसे किसी भी कार्य से बचना होगा, जिससे लोकतंत्रा कमजोर पड़ता हो अथवा जो लोकतंत्र के लिए हानिकारक हो।

संसद में गतिरोध की अपरोक्ष चिंता से व्यथित राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश की संसद जनता की संप्रभु इच्छाशक्ति का प्रतीक है और इसका सफलतापूर्वक संचालन सरकार और विपक्ष दोनों ही पक्षों की संयुक्त जिम्मेदारी है। यह बहुत ही जरूरी है कि, सभा की मर्यादा और गरिमा हर समय बनाए रखी जाए। जनता के बीच संसद की छवि, एक ऐसी संस्था की होनी चाहिए, जहां रचनात्मक सहयोग की भावना के साथ मुद्दों का समाधान खोजने के लिए कार्यवाहियां, चर्चा और विचार विमर्श होते रहे हैं, यदि ऐसा नहीं होता तो, लोकतांत्रिक संस्थाओं पर जनता के भरोसे पर असर पड़ सकता है और हताशा की भावना पैदा हो सकती है, जिसे किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र में स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे लोकतांत्रिक संस्थाएं असफल होती हैं। इसलिए लोकतांत्रिक संस्थाओं में भागीदारों के बीच विचार-विमर्श, लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा है।

राष्ट्रपति ने कहा कि अब समय आ गया है कि जब हम अपने सामाजिक परिवेश पर भी बारीकी से नज़र डालें। क्या समाज का अपराधीकरण बढ़ रहा है? क्या एक-दूसरे के प्रति उदासीनता की भावना में वृद्धि हो रही है? क्या हम इतना अधिक भोगवादी, संकुचित और बेपरवाह हो गए हैं कि हमें अपने कार्यों से अपने भाइयों, समाज अथवा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की जरा भी चिंता नहीं है? यह अत्यंत ही क्षोभ और चिंता का विषय है कि मात्र कुछ पैसों के लिए किसी व्यक्ति की हत्या हो जाए अथवा कोई महिला इसलिए बलात्कार का शिकार हो क्योंकि उसने छेड़छाड़ का विरोध किया था अथवा संयम की कमी के कारण किसी छोटी-सी बात पर एकदम से बहुत बड़ा झगड़ा खड़ा हो जाए। इसी तरह, शिक्षण संस्थाओं में रैगिंग के मामले भी चिंताजनक हैं। रैगिंग हिंसा है। यह ऐसा जघन्य कृत्य है, जिसे सहन नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इसके कारण माता-पिता और देश को बेहद क्षति पहुंचती है। ऐसी घटनाओं से हमारे सामाजिक ताने-बाने को बहुत नुकसान पहुंचता है। इसलिए यह जरूरी है कि सामाजिक सौहार्द और समरसता के हित में, इस तरह की प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखा जाए। मैं अपने देशवासियों से आग्रह करती हूं कि वे कभी भी हिंसा का सहारा न लें।

उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार विकास और सुशासन का शत्रु है, इसमें फंसे रहने के बजाय यह जरूरी है कि हम इससे ऊपर उठें और भ्रष्टाचार से और अधिक प्रभावी ढंग से निपटने के लिए प्रणाली में बदलाव लाने पर गंभीरता से विचार करें। वित्तीय संस्थाओं, कार्पोरेट जगत और सिविल समाज को अपने कामकाज में ईमानदारी के उच्च मानदण्ड कायम रखने होंगे। न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए सकारात्मक परिवर्तन सरकार और उसकी जनता के बीच गंभीर सहभागिता से ही लाया जा सकता है। सूचना, समाचार और विभिन्न नजरियों को लोगों तक पहुंचाने में, मीडिया की अहम भूमिका है। यह जागरूकता बढ़ाता है, विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श को बढ़ावा देता है और राय भी तैयार करता है। देश में बेहतरीन आचरण के ऐसे अनगिनत उदाहरण मिलेंगे, जहां कुछ नेक व्यक्ति समाज की महती सेवा कर रहे हैं, कुछ सामाजिक संगठन इलाकों में निस्वार्थ भाव से कार्य कर रहे हैं और इसी तरह का श्रेष्ठ कार्य परोपकारी लोग, वैज्ञानिक और शिक्षाविद् भी कर रहे हैं। ऐसे कार्यों को प्रमुखता देकर, मीडिया अच्छे उदाहरणों का अनुकरण करने के लिए, दूसरों को प्रेरित कर सकता है, इसलिए मैं मीडिया से आग्रह करना चाहूंगी कि वह अपनी पहुंच और विषयवस्तु को बढ़ाने के साथ-साथ सकारात्मक भावना के साथ काम करें। लोकतंत्र और इसकी संस्थाओं की मजबूती बनाए रखने में संवेदनशील और जिम्मेदार मीडिया बहुमूल्य है।

उन्होंने कहा कि देश में महंगाई, विशेषकर खाद्य पदार्थों की कीमतें, गंभीर चिंता का विषय हैं और इसने हमारा ध्यान उचित कार्रवाई करने और खाद्य सुरक्षा, कृषि उत्पादन और ग्रामीण विकास के लिए नव-अन्वेषी तरीकों की खोज की जरूरत की ओर खींचा है। आर्थिक व्यवहार्यता एक बड़ी समस्या बन सकती है। कहा जा रहा है कि छोटे किसान अब खेती छोड़ रहे हैं क्योंकि इसमें अब कम आय है और खेतीहर मजदूर भी नहीं मिल पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में, आधुनिकीकरण और यांत्रिक खेती पर ध्यान देना फायदेमंद होगा। कृषि और ग्रामीण विकास में किसानों, निजी क्षेत्र और सरकार के बीच साझीदारी का मॉडल विकसित करने पर भी विचार करना चाहिए। हमारे वैज्ञानिकों और अनुसंधानकर्ताओं के पास, उन्नत तकनीकी और देश में बड़े पैमाने पर प्रयोग के लिए किफायती, स्थान विशिष्ट के लिए उपयोगी और वहनीय, दोनों ही तरह के नव-अन्वेषणों पर कार्य करने का कौशल और क्षमता मौजूद है। नव-अन्वेषण सुलभता से प्राप्त हों, यह उनके व्यावहारिक इस्तेमाल का अभिन्न भाग है। तेज गति से बढ़ती हुई विश्व ज्ञान-अर्थव्यवस्था की स्थिति में, अनुसंधान की हमारी गति में तेजी लानी होगी। विज्ञान और तकनीकी के लिए ज्यादा धनराशि आवंटित की जानी चाहिए ताकि ऐसे वैज्ञानिक विभिन्न विषयों में गहन अनुसंधान कर सकें।

राष्ट्रपति ने कहा कि विकास और प्रगति के लिए, स्थिरता और सुरक्षा का माहौल जरूरी है। इस क्षेत्र में, हमारी पुलिस और आंतरिक सुरक्षा एजेंसियों का कार्य अति महत्त्वपूर्ण है, साथ ही अपने क्षेत्र में स्थिरता के लिए अपने पड़ोसियों के साथ और शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ हमारा सहयोग और बातचीत भी अति महत्त्वपूर्ण है। आतंकवाद मानव जाति की विकास यात्रा में सबसे बड़ा खतरा है। आतंकवाद के खतरे को समाप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सभी सदस्यों के समन्वित प्रयासों की अत्यधिक जरूरत है। आज विश्व कार्यकलापों में, भारत की छवि पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर है। अब जबकि भारत, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में अपना पद संभाल रहा है, वह आतंकवाद के खिलाफ समन्वित और सामूहिक वैश्विक कार्रवाई करने के लिए, अपने प्रयासों को तेज करेगा और सभी वैश्विक मुद्दों पर गहन जिम्मेदारी के साथ कार्य करेगा। पिछले कुछ वर्षों के दौरान बहुत सी घटनाओं ने हमें यह सिखाया है कि हमें अपने देश के बुनियादी मूल्यों का पालन करते हुए, अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मिल-जुलकर प्रयास करने की जरूरत है।

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