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नई दिल्ली। विश्व इस्पात संघ (डब्ल्यूएसए) के अंतिम आंकड़ों के मुताबिक भारत जनवरी से सितंबर, 2010 के बीच कच्चे इस्पात का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक देश रहा। पहले नंबर पर चीन दूसरे पर जापान तीसरे नंबर पर अमरीका और चौथे नंबर पर भारत है। ताजा अनुमानों के अनुसार, कच्चे इस्पात की उत्पादन क्षमता 2009-10 के 7.29 करोड़ टन से बढ़कर 2012 तक 12 करोड़ टन हो जाएगी। हालांकि, इस्पात उत्पादन में विश्व रैंकिंग अन्य इस्पात उत्पादन और उपभोक्ता देशों की परिस्थितियों पर निर्भर करेगी, इसलिए इस बारे में कोई अनुमान संभव नहीं है।
आज के अविनियमित खुली बाजार अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका सुविधा प्रदाता की है और सरकार नीतिगत कदमों से इस्पात उद्योग के विकास को प्रोत्साहित करती है। दोनों सार्वजनिक इस्पात कंपनियां सेल और आरआईएनएल कच्चे इस्पात की अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने की कोशिश में जुटी हैं। सेल का अनुमान है कि प्रथम चरण के तहत कच्चे इस्पात की उसकी उत्पादन क्षमता मौजूदा 1.284 करोड़ टन से बढ़कर 2012-13 तक 2.140 करोड़ टन प्रति वर्ष हो जाएगी। इसके लिए उसे 70 हजार करोड़ रुपये की जरूरत पड़ने का अनुमान है।
आरआईएनएल का अनुमान है कि वह 12,228 करोड़ रुपये के निवेश से कच्चे इस्पात की मौजूदा क्षमता 29 लाख टन को दिसंबर 2011 तक बढ़ाकर 63 लाख टन प्रति वर्ष कर लेगी। अन्य सार्वजनिक कंपनी एनएमडीसी लिमिटेड, छत्तीसगढ़ के नगरनार में 30 लाख टन प्रति वर्ष की क्षमता वाला संयंत्र स्थापित कर रही है। इसके लिए वह 15,525 करोड़ रुपये का निवेश कर रही है। यह संयंत्र 2014 से शुरू होने का अनुमान है।
इस्पात मंत्रालय का कहना है कि भारत सरकार इस्पात परियोजनाओं के प्रत्यक्ष संचालन में शामिल नहीं है। आधुनिकीकरण और क्षमता विस्तार की परियोजनाएं इस्पात मंत्रालय के अधीन सार्वजनिक उपक्रम इकाइयों के जरिए जरूर चलाई जा रही हैं। आधुनिकीकरण और विस्तार योजनाओं के लिए कोई मानदंड नहीं है। ये परियोजनाएं तकनीकी-आर्थिकी मूल्यांकन और वाणिज्यिक महत्व पर आधारित हैं। आधुनिकीकरण और विस्तार की योजनाएं जहां से संबंधित होती हैं, उसका स्थान वही होता है, जो मौजूदा इकाई का होता है। नई इस्पात परियोजनाओं के लिए, साइट का चुनाव संबंधित राज्य सरकारों से विचार-विमर्श के बाद किया जाता है। इसके लिए नजदीकी भूमि की उपलब्धता, पानी, रेल नेटवर्क, राष्ट्रीय राजमार्ग आदि का ध्यान रखा जाता है।
भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड (सेल) के मौजूदा आधुनिकीकरण और विस्तार कार्यक्रम से हॉट मेटल का उत्पादन 2012-13 तक मौजूदा 1.46 करोड़ टन प्रति वर्ष से बढ़ाकर 2.346 करोड़ टन होने का अनुमान है। उत्पादन क्षमता में वृद्धि से सेल के इस्पात संयंत्रों और खानों की विद्युत की औसत जरूरत मौजूदा 1,000 मेगावाट से बढ़कर 1,900 मेगावाट हो जाने का अनुमान है। ऊर्जा की इस जरूरत को पूरा करने के लिए सेल ने विभिन्न राज्य ग्रिडों, दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) और एनटीपीसी और सेल के संयुक्त उपक्रम एनटीपीसी-सेल विद्युत आपूर्ति कंपनी लिमिटेड (एनएसपीसीएल) से अनुरोध किया है। एनएसपीसीएल सेल की जरूरत पूरी करने के लिए 1725 मेगावाट क्षमता का विद्युत उत्पादन संयंत्र स्थापित करने के लिए व्यव्हार्यता अध्ययन कर रही है। इस अध्ययन के बाद ही ऊर्जा की जरूरत का पता चल सकेगा।