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लखनऊ। देश के जाने-माने हिंदी पत्रकार घनश्याम पंकज नहीं रहे। प्रमुख हिंदी समाचार पत्रों में सुधार की होड़ पैदा करने वाले बिंदास घनश्याम पंकज बीमार चल रहे थे और हाल ही में केरल में कोच्चि में एक नर्सिंग होम में उनके गुर्दे का प्रत्यारोपण हुआ था। अफसोस! उनके जीवन को और लंबा और सुखद बनाने के लिए किया गया यह प्रयास विफल रहा। यूं तो वे लखनऊ रह रहे थे लेकिन पारिवारिक विमर्श के बाद कोच्चि में ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। उनके निधन से मीडिया जगत में शोक है और एक खालीपन महसूस किया जा रहा है। उनके परिवार में पत्नी रेखा पंकज, पुत्र कबीर और दो पुत्री किमको एवं इविशिका हैं।
घनश्याम पंकज एक ऐसे पत्रकार थे जिनकी लेखनी और संपादकीय प्रबंधन में गज़ब की पकड़ थी। पांच दशक पूर्व उन्होंने देश की शक्तिशाली संवाद समिति 'समाचार भारती' से अपनी पत्रकारिता का सफर शुरू किया था। दिनमान, दिनमान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के हिंदी प्रकाशन जनसत्ता एक्सप्रेस और स्वाधीनता संग्राम के साक्षी और ऐतिहासिक समाचार पत्र स्वतंत्र भारत जैसे देश के नामी अख़बारों के प्रधान संपादक रह चुके घनश्याम पंकज ने हिंदी पत्रकारिता में अनेक सफल प्रयोग किए और हिंदी पत्रकारिता को अधिक से अधिक विश्वसनीयता, पठनीयता प्रदान करने का बड़ा काम किया। न जाने कितने उनके शिष्य आज पत्रकारिता क्षेत्र में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा रहे हैं। किसी समाचार पत्र की स्तरीय कार्य और विस्तार योजना को सफलतापूर्वक अंजाम देने में उनका कोई जवाब नहीं था, यह अलग बात है कि वे अपने नेतृत्व में संस्थान को ऊंचाई तक पहुंचाकर फिर दूसरी जगह चल दिए। वे जहां भी रहे, अपनी शर्तों पर रहे।
उन्होंने समाचार पत्र संस्थान में लोकतंत्र को प्रोत्साहित किया और किसी भी पत्रकार या समाचार के मामले में प्रबंधन के दबाव को स्वीकार नहीं किया। कहा जा सकता है कि संपादक या प्रधान संपादक से जुड़ी जिम्मेदारियों के साथ-साथ समाचार पत्र प्रबंधन पर भी उनका वश चलता था। घनश्याम पंकज ने अपनी पत्रकारिता के सक्रिय दौर में अपने लेखन से हर क्षेत्र को प्रभावित किया और खुलकर लिखा। वह दौर भी देखा जब देश के जाने-माने राजनेता उनके आगे-पीछे मंडराते थे। हिंदी पत्रकारिता जगत के सितारे प्रभाष जोशी के साथ-साथ घनश्याम पंकज भी एक ऐसे स्टार पत्रकार थे जिन्होंने उत्तर भारत में हिंदी पत्रकारिता को ऊंचाईयों तक पहुंचाया। उनके साथ काम करने वाले या उनके संपर्क में रहने वाले पत्रकार के साथ उनका अत्यंत करीब का और सहयोगात्मक संबंध रहा है, वे किसी को उसकी गलती पर डाटते भी थे तो वह अंदाज भी अलग ही होता था। वे उत्प्रेरक थे और अपने सहयोगियों को हमेशा अच्छे से अच्छा लिखने, तथ्यों के साथ लिखने की प्रेरणा और सलाह दिया करते थे। आज वे सब लोग अत्यंत दुखी होंगे जिन्होंने उनके साथ काम किया है और अपने पल गुजारे हैं। इन वर्षों में वे लखनऊ में रह रहे थे।
घनश्याम पंकज के निधन पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी, मुख्यमंत्री मायावती, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही, केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, बेनी प्रसाद वर्मा, केंद्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष एवं सांसद पीएल पुनिया, पूर्व राज्यमंत्री और राज्य सभा सदस्य अखिलेश दास, पत्रकारों, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया नई दिल्ली, पत्रकार संघों और साहित्य जगत के लोगों ने दुख व्यक्त किया है। उत्तर प्रदेश राज्य मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति की भी एनेक्सी मीडिया सेंटर में उनके निधन पर शोक सभा हुई जिसमें पत्रकारों ने पत्रकारिता में उनके योगदान के संस्मरण सुनाए और दो मिनट का मौन रखकर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। पत्रकार हिसामुल इस्लाम सिद्दीकी, मुदित माथुर, ताहिर अब्बास, अजय कुमार, मनमोहन, प्रमोद गोस्वामी, योगेश मिश्र, जितेंद्र शुक्ला, अजय श्रीवास्तव, अमिता वर्मा, नायला किदवई, उमाशंकर त्रिपाठी, शिवशंकर गोस्वामी, के बख्श सिंह, कलानिधि मिश्र, स्नेह मधुर, अनिल अवस्थी, सुरेंद्र दुबे, उमेश रघुवंशी, दिलीप सिंह, सूर्य प्रकाश शुक्ला, प्रेम सिंह, शरत प्रधान, दयाशंकर शुक्ल सागर, दिलीफ सिन्हा, अजय श्रीवास्तव, आनंद सिंह, सुरेश बहादुर सिंह, अमिता वर्मा, रवींद्र सिंह, विजय शर्मा, पंकज के वर्मा आदि ने श्रद्धांजलि अर्पित की है। स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम की ओर से भी विनम्र श्रद्धांजलि।