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कंपनी अधिनियम में बड़े बदलाव का फैसला

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नई दिल्ली। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रही गतिविधियों के मद्देनजर एवं भारत में कारपोरेट विनियमन के लिए संरचना के आधुनिकीकरण की दृष्टि से और स्पष्ट विनियमन के माध्यम से भारतीय कारपोरेट क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकार के महत्वपूर्ण सुधारों के विवरण के रूप में, वर्तमान कंपनी अधिनियम 1956 में व्यापक बदलाव करने का निर्णय लिया गया है। संशोधित विधेयक संसद के बजट सत्र में प्रस्तुत किए जाने का प्रस्ताव है।

कंपनी विधेयक 2009 को 3 अगस्त 2009 को लोक सभा में प्रस्तुत किया गया एवं उसे जांच और प्रतिवेदन के लिए वित्त संबंधी वित्तीय स्थायी समिति को संदर्भित किया गया है। समिति ने विधेयक के प्रावधानों पर विभिन्न विशेषज्ञों एवं हितबद्धों से चर्चा की एवं उसे बड़ी मात्रा में सुझाव प्राप्त हुए हैं। समिति ने कई अवसरों पर कारपोरेट कार्य मंत्रालय के विचार भी लिए। इन अनुसंशाओं की जांच एवं विभिन्न हितबद्धों के साथ विचार-विमर्श के पश्चात समिति ने 31 अगस्त 2010 को संसद में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। संसदीय समिति के प्रतिवेदन प्रस्तुत किए जाने के बाद कुछ उद्योग संघों एवं विशेषज्ञों ने कुछ मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित किया है।

स्वतंत्र निदेशकों से संबंधित प्रतिमान (संख्या/गुण/पदावधि/देयता/ पारिश्रमिक), लेखापरीक्षक/लेखापरीक्षा फर्मों का रोटेशन, कारपोरेट सामाजिक दायित्व, अनुषंगी कंपनियों के स्तरों पर निर्बंधन, विशिष्ट मताधिकार के साथ इक्वीटी शेयर जारी करना, अधिकतम निदेशकों की संख्या और प्रबंधकीय पारिश्रमिक की सीमा इसके मुख्य बिंदु हैं। समिति की विभिन्न अनुसंशाएं एवं इन पर हितबद्धों के विचार मंत्रालय में जांचाधीन है। विधेयक का आशय कंपनी अधिनियम, 1956 के व्यापक पुनरीक्षण से संबंधित लंबे समय से लंबित विधायी संशोधन को आगे ले जाने का है। ये विचार-विमर्श कंपनी विधेयक से संबंधित विभिन्न मामलों पर निर्णय लेने में उपयोगी विनिर्दिष्टि प्रदान करते हैं।

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