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लखनऊ। मौलाना आज़ाद मेमोरियल अकादमी की ओर से देश के प्रथम शिक्षा मंत्री भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की 53वीं पुण्यतिथि के अवसर पर शीर्षक 'मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे' पर यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें मौलाना आज़ाद के जीवन पर विस्तार से रोशनी डाली गयी और उनकी सोच और आधुनिक भारत के निर्माण में उनके योगदान की चर्चा की गयी।
इस अवसर पर वक्ताओं ने मौलाना की शिक्षा नीति पर विस्तार से चर्चा की, मौलाना की दूर दृष्टि, विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट कामों को सराहा गया। भारत आज जिस तरह आगे बढ़ रहा है और आज जो परमाणु शक्ति बना है उस पर भी मौलाना की उसी आधुनिक सोच का असर माना गया है जो उन्होंने 53 साल पहले भारत के शिक्षा मंत्री रहते हुए थी। वक्ताओं ने कहा कि मौलाना आजाद के ख़यालात की आज भी उतनी ही ज़रुरत है जितनी उस समय थी। मुल्क के बंटवारे पर उनका ख्याल था कि बंटवारा कौम और देश के लिए बहुत नुकसानदेह साबित होगा, आज बहुत सी मुसीबतें और परेशानियां हैं जिनका हम सामना कर रहे हैं और पूरे सब कांटिनेंट पर इसका असर पड़ रहा है।
वक्ताओं ने कहा कि मौलाना, देश में हिंदू-मुस्लिम एकता के सच्चे पक्षधर थे और वह चाहते थे कि हिंदुस्तान की गंगा जमुनी तहज़ीब और उसकी साझी विरासत से इस संस्कृति को और ताकतवर बनाएं। वक्ताओं ने कहा कि आज हमारा मुल्क एक ऐसे दौर से गुज़र रहा है जब देश की सेक्युलर संस्कृति और निज़ाम को एक नये आयाम में ढालने की कोशिश की जा रही है, मुल्क अपने को सेक्युलरिज़्म बनाम शिद्दत पसंद ताकतों के बीच बटा हुआ महसूस कर रहा है, ऐसे समय में मौलाना की शिक्षा, प्रेम और सद्भावना जो उनके जीवन का लक्ष्य था और जो साफ सुथरी राजनीति की मिसाल है की जरूरत है। मौलाना ने एकल धर्म और मानवता का मार्ग दर्शन कराया जिसकी आज भारत को हकीक़त में ज़रुरत है।
मौलाना आज़ाद मेमोरियल अकादमी के राष्ट्रीय सचिव डॉ कुद्दूस हाशमी ने प्रदेश और केंद्र सरकार से मांग की कि वह राष्ट्रीय एकीकरण को और ज्यादा बढ़ावा देने के लिए आगे आए और जिला स्तर पर सद्भावना केंद्र खोलकर मौलाना आज़ाद के भाई चारे के संदेश को प्रसारित करे। डॉ कुद्दूस हाशमी ने उर्दू मुउल्लिमों पर पुलिस के अत्याचार की निंदा की और मांग की कि उर्दू टीचरों की मांगो पर सहानुभूतिपूर्वक विचार कर जल्द से जल्द उनको उनका हक़ दिया जाए। जाने-माने समाजसेवी सगीर अहमद ने संगोष्ठी की अध्यक्षता की। इस अवसर पर प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक मुज़फ्फर अली, आस्ट्रेलिया से आये प्रसिद्ध समाजसेवी जेसी चाकू, जद्दा से आये फिजाउर्रहमान, प्रोफेसर रमेश दीक्षित, डॉ सक़िब अनवर, वंदना मिश्रा, डॉ मंजू शुक्ला आदि ने अपने-अपने बहुमूल्य विचार रखे।