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लखनऊ। सत्य मंदिर में नियमित रविवारीय सत्संग में दिव्य शक्ति मां पूनमजी ने कहा कि भगवान का न्याय रूप सबके लिए समान है, यदि पाप करोगे तो न्याय रूप से दंड ही प्राप्त करोगे, इसलिए भय, पाप से करो, पाप की भावना से करो, पापकर्मों से करो, त्याग में सार्थक जीवन की शक्ति निहित है। दिव्य शक्ति मां ने कहा कि मन की निर्भयता, संसार के हर भय पर विजय प्राप्त कर सकती है, लेकिन पहले मन में उस शक्ति के लिए विश्वास लाओ जो अजेय है। मां पूनम ने प्रवचन में अध्यात्मिक शक्ति के महत्व पर विभिन्न तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि मन की पवित्रता, संसार की हर गंदगी को साफ कर सकती है, यदि मनुष्य अपने अंदर, परमात्मा के उस पवित्र अंश का निरंतर अनुभव करेगा तो वह भी निरंतर, उसे उसकी पहचान से परिचित कराता रहेगा कि तुम इस संसार की गंदगी में डूबने नहीं बल्कि हर भटके हुए प्राणी को उसका लक्ष्य दिखाने आए हो।
दिव्य शक्ति मां ने कहा कि कर्म ही शक्ति है, अत: इसे गंदा न करो कि तुम अपना ही सामना न कर पाओ। उन्होंने प्रश्न किया कि तब स्वयं से ही भयभीत हो किस प्रकार प्रकाश में आ पाओगे? इस तरह से अंधकार में छिपा हुआ तुम्हारा न तो अस्तित्व ही रह जाएगा, न ही कोई परिचय। अत: कर्म वे करो, जिनसे तुम्हारी 'आत्मिक' और 'मानसिक' शक्ति का विकास हो। जब तक तुममें ये दिव्य शक्तियां हैं, तबतक तुम हर निराशा के अंधकार को पार करते हुए आशा और सफलता को प्राप्त कर लोगे।
दिव्य शक्ति मां पूनमजी श्रीकृष्णचेतनावतार देवी मां कुसुमजी की अनन्य उत्तराधिकारी हैं और अध्यात्मिक चिंतन पर उनमें एक संमोहन है। प्रवचन में वे कहती हैं कि जीवन को आवश्यकताओं का ढेर न बनाओ बल्कि जीवन को मानवता और धर्म के लिए किए जा रहे कर्मों से सजाओ, संवारो और सार्थक बनाओ। हनुमानजी की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि त्याग उत्तम जीवन है, आज हनुमानजी त्याग के कारण ही पूजनीय हैं जबकि उस युग में जन्में हजारों राजाओं और धनवान लोगों को आज कोई जानता भी नहीं है इसलिए त्याग भक्ति की परम राह है। मंदिर के सामने भिखारी बन कर हर समय इच्छाओं की पूर्ति के लिए न खड़े होओ, बल्कि एक सेवक की भांति भगवान के आदर्शों का पालन करो, उनके आदर्शों अपने जीवन का लक्ष्य और धर्म बनाओ तभी सार्थक जीवन जिया जा सकता है।