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देहरादून। उत्तराखंड की राज्यपाल मार्गरेट अल्वा ने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि प्रति वर्ष भ्रूण-हत्या और अन्य कई कारणों से एक करोड़ से अधिक कन्याएं संसार से विलुप्त होती जा रही हैं। उन्होंने कहा कि 'हम देवी के रूप में अपनी पूजा नहीं चाहते, हम केवल इंसान के रूप में जीना चाहते हैं, हमें शांति और सम्मान से जीने-मरने का अधिकार चाहिए।' मार्गरेट अल्वा ने यह पीड़ा मुंबई में महिलाओं के अधिकार और जागरूकता के लिए समर्पित स्वैच्छिक संस्था 'परिवर्तन' की गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में कहीं। गोष्ठी का विषय था-'महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून और अधिनियम।'
मार्गरेट अल्वा ने कहा कि कन्याओं की भ्रूण-हत्या या अन्य प्रकार की हत्या के अलावा समाज में व्याप्त कुरीतियों के कारण तथाकथित सम्मान के लिए की जा रही हत्याएं (ऑनर किलिंग) और भी चिंताजनक विषय है। उन्होंने हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कतिपय समुदाय में व्याप्त इस कुरीति की निंदा करते हुए कहा कि यह पूर्णतः असम्मानजनक और अमानवीय एवं महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्राविधानित कानून और अधिनियम के सर्वथा विपरीत है। आल्वा ने खाप पंचायतों की अपने समुदाय में प्रेम विवाह आदि पर दी जा रही व्यवस्थाओं एवं निर्णयों पर भी आपत्ति व्यक्त की और कहा कि महिलाओं की सुरक्षा एवं अधिकार से संबंधित अनेक कानून एवं अधिनियम प्रविधानित होने के बावजूद भी अधिकांश महिलाएं जागरूकता के अभाव में इनसे अनभिज्ञ हैं। अधिकतर मामलों में उन्हें चुपचाप घरेलू हिंसा और प्रताड़ना सहन करते रहने की ही सलाह दी जाती है।
राज्यपाल ने इन कानूनों और अधिनियमों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए इनके क्रियान्वयन और प्रवर्तन को और अधिक सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि अब तक हजारों महिलाएं दहेज की बलि पर चढ़ाई जा चुकी हैं। पुलिस से इनको सहायता नहीं मिलने की भी अनेक शिकायते हैं परंतु कोई भी महिलाओं की सहायता करने आगे नहीं आता। विचारोत्तेजक अभिव्यिक्त के बाद राज्यपाल ने कहा कि पर्याप्त कानून और अधिनियम संबंधी व्यवस्था के उपरांत भी महिलाओं को अपेक्षित लाभ न मिल पाने के कारणों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इसके लिए जेल और प्रशासनिक अधिकारियों, न्यायालयों, अधिवक्ताओं और इस क्षेत्र में सक्रिय स्वैच्छिक संस्थाओं को संवेदनशील किये जाने की आवश्यकता है।
मार्गरेट अल्वा ने पीड़ित महिलाओं को समुचित न्याय दिलाने के लिए परिवार न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाये जाने की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी 'जच्चा-बच्चा' जैसी वर्तमान परियोजनाओं को और विस्तृत और गहन स्वरूप देने की अनुशंसा करते हुए कहा कि महिलाओं की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याओं जैसे रजोनिवृत्ति के पश्चात की मनोदशा आदि पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है। कार्यक्रम में 'परिर्वतन' संस्था की अध्यक्ष जेनेट डिसूजा सहित वरिष्ठ अधिवक्ता मृणालिनी देशमुख, वरिष्ठ पत्रकार प्रतिमा जोशी, अनेक संस्थाओं के प्रतिनिधि, अधिवक्ता, भारी संख्या में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता और राज्यपाल के एडीसी वीके कृष्ण कुमार उपस्थित थे।