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नेहरू सेंटर में हिंदी गीतों की एक शाम

शिखा वार्ष्णेय

तेजेंद्र शर्मा-tejendra sharma

लंदन। 'हिंदी फ़िल्मी गीतों में हिंदी' विषय पर नेहरु सेंटर में कथा यूके, एशियन कम्युनिटी आर्ट्स और नेहरु सेंटर के सौजन्य से एक रोचक आयोजन हुआ जिसमें कथा यूके के महासचिव तेजेंद्र शर्मा ने पुराने, नए हिंदी गीतों से भरी इस शाम पर एक शानदार पॉवर-पॉइंट प्रेजेंटेशन दिया। इस खूबसूरत शाम का आगाज़ किया नेहरु सेंटर की निदेशक मोनिका मोहता ने और फिर शुरू हुआ हिंदी गीतों का सुंदर सफ़र।

आयोजन का मुख्य आधार यह बताना था कि हिंदी फिल्मों में हिंदी कविता की शुरुआत कैसे हुई और वह किन रास्तों से गुजर कर कहां तक पहुंची। तेजेंद्र शर्मा ने अपने प्रेजेंटेशन के माध्यम से कहा कि 'पुराने समय में हिंदी गीतों को लिखने वाले मजरूह सुल्तानपुरी, डीएन मधोक, राजेंद्र कृष्ण, साहिर, हसरत, कैफ़ी आज़मी आदि मूलत: उर्दू में लिखा करते थे और किसी ख़ास विषय या आयोजन पर ही हिंदी का प्रयोग किया करते थे, दरअसल यह लोग हिंदी और पंजाबी भी उर्दू लिपि में लिखते थे।

फ़िल्मी गीतों में हिंदी शब्दावली का प्रयोग तभी हुआ जब फ़िल्म क्लासिकल संगीत पर आधारित होती या फिर गांव के जीवन पर। इसी तरह भजन या त्योहारों के गीतो में ही हिंदी का प्रयोग किया जाता था, उस समय की चित्रलेखा, आम्रपाली, झनक झनक पायल बाजे के गीत, जैसी फ़िल्मों में और अन्य फ़िल्मों के भजन और होली के गीतों में हिंदी सुनाई दी।

तेजेंद्र शर्मा ने कहा कि उस समय सभी गीतों में वही निश्चित स्थाई और अंतरे की परंपरा रहती थी जिससे कि गीतकार ऊबने लगे थे और पहली बार लैला मजनू में शक़ील बदायुनी ने एक सीधी नज़्म लिखी-चल दिया कारवां, लुट गए हम यहां, तुम वहां....., ठीक इसी तरह कैफ़ी ने फ़िल्म हक़ीकत में–मैं यह सोच कर उसके दर से उठा था... और डीएन मधोक ने तस्वीर में-दुनियां बनाने वाले ने जब चांद बनाया.... जैसे नग़मों में स्थाई और अंतरे को विदाई देने का प्रयास किया।

कवि प्रदीप, नरेंद्र शर्मा, भरत व्यास, इंदीवर शैलेंद्र, नीरज आदि गीतकारों ने-सत्यम शिवम सुंदरम, रजनी गंधा, फूल.. आदि बेहतरीन हिंदी गीत हिंदी फिल्मों को दिए, परंतु उनके गीत भी उर्दू नग़मों की ही तरह स्थाई और अंतरे में बंधे रहे। यहां तक कि हिंदी का प्रयोग गानों में हिंदी का मज़ाक उड़ाने के लिये भी किया जाता था, एक सुंदर हिंदी के गीत का कॉमेडी की तरह फिल्मीकरण करके उसका मजाक सा बना दिया जाता था, जैसे-यदि आप हमें आदेश करें तो प्रेम का हम श्रीगणेश करें....एक ऐसा ही गीत था जिसे कुछ अलग तरह फिल्माया जाता तो शायद इसका रूप ही अलग होता।

वर्तमान हिंदी फ़िल्मी गीतों की शुरूआत हमें राज कपूर की फ़िल्म मेरा नाम जोकर तक ले जाती है। इस फ़िल्म के लिये कवि नीरज ने एक कविता लिखी जिसका संगीत शंकर जयकिशन ने बनाया था-ए भाई जरा देख के चलो...., इस गीत ने हिंदी गीतों की परिभाषा बदल कर रख दी। उसके बाद आया गुलज़ार का-मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है...और हिंदी गीतों में हिंदी कविता का नया रूप चल पड़ा। आज गुलज़ार, जावेद अख्तर, समीर, फैज़ अनवर, प्रसून जोशी जैसे गीतकार बिना स्थाई अंतर वाले बेहतरीन गीत लिख रहे हैं और युवा पीढी उसे पूरे मन से सराह भी रही है।

फिर भी कभी-कभी सुनने को मिलता है कि आज के गीतों में पुराने गीतों सी बात नहीं है, वह इसलिए कि हम गीत सुनते हैं, समझते नहीं। फिल्म राजनीति का मेरे पिया मोसे बोलत नाहीं, रॉकेट सिंह का ख़्वाबों को..., तारे जमीं पर का माँ....आदि ऐसे कितने ही गीत आज लिखे जा रहे हैं, जिनमें हिंदी कविता का बेहतरीन रूप देखने को मिलता है, यहां तक कि दबंग जैसी निहायत ही व्यावसायिक फिल्म में भी हिंदी मुहावरों से युक्त गीत देखने को मिलते हैं। तेजेंद्र शर्मा ने कहा कि आज के समय में गहरे अर्थ वाले कवितामय गीत लिखे जा रहे हैं और गुलज़ार, जावेद अख्तर जैसे गीतकार युवा गीतकारों और भावों को पूरी टक्कर दे रहे हैं, बस जरुरत है गीतों को सुनने की समझने की।

नेहरू सेंटर की पूरी शाम बेहतरीन गीतों से सजी हुई थी और श्रोता भाव विभोर होकर उन गीतों का ना सिर्फ आनंद ले रहे थे बल्कि उसके सफ़र में भी हमराह हो रहे थे। उस पर हिंदी गीतों के सफ़र के साथी रहे, तेजेंद्र शर्मा ने अपने कुछ निजी और रोचक अनुभवों से सभी श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया। कार्यक्रम में कई गीतों को स्क्रीन पर दिखाया गया। इस बेहद खूबसूरत शाम का समापन एशियन कम्युनिटी आर्ट्स की अध्यक्षा काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी ने वहां उपस्थित सभी आम और खास मेहमानों का धन्यवाद करके किया।

इस शाम में नेहरू सेंटर की निदेशक मोनिका मोहता, काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी, पद्मजा फ़र्स्ट सेक्रेटरी–प्रेस एवं सूचना, भारतीय उच्चायोग, आनंद कुमार हिंदी अधिकारी–भारतीय उच्चायोग, कैलाश बुधवार पूर्व बीबीसी हिंदी सेवा प्रमुख, प्रोफेसर अमीन मुग़ल, डॉ नज़रुल इस्लाम बोस, अरुणा अजितसरिया, सुरेंद्र कुमार, दिव्या माथुर, दीप्ति शर्मा, अब्बास एवं रुकैया गोकल आदि सहित लन्दन के बहुत से गणमान्य व्यक्ति एवं संगीत प्रेमी उपस्थित थे।

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