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देहरादून। उत्तराखंड की राज्यपाल मार्ग्रेट आल्वा ने कहा है कि केवल औद्योगिक विकास को विकास कहना उचित नहीं होगा, पारंपरिक ज्ञान प्रणाली के साथ उन्नत तकनीक से प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग आम जनता की कठिनाईयों को काफी सीमा तक कम कर सकता है। विश्वविद्यालयों को इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए चिंतन करना होगा, केवल किताबी ज्ञान से समस्याओं का समाधान सम्भव नहीं है, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यवहारिक अनुभव से अर्जित पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण, उनके विस्तार और व्यवहरण के प्रयास आज और अधिक प्रासंगिक हो गये हैं। उन्होंने कहा कि भारत की गौरवशाली परंपरा, सभ्यता और इतिहास को जीवित रखने के लिए भावी पीढ़ियों को पारंपरिक ज्ञान का निरंतर लाभ देना आवश्यक है, इसके लिए ग्रांडमदर यूनिवर्सिटी जैसी संस्थाओं के प्रयास सराहनीय हैं।
मार्ग्रेट आल्वा ने नवदान्या संस्था के देहरादून के सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र शीशमबाड़ा में संचालित ग्रांडमदर यूनिवर्सिटी में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में अपने दार्शनिक एवं व्यवहारिक विचारों को विस्तार से व्यक्त किया। सामाजिक और शैक्षणिक विषयों पर गंभीर चिंतन के साथ मार्ग्रेट आल्वा ने कहा कि देवभूमि उत्तराखंड में जहां प्रकृति ने अपार संपदा दी है, वहां पारंपरिक ज्ञान प्रणाली का विकसित स्वरूप विकास के नये आयाम स्थापित कर सकता है। प्रकृति पर आधारित जीवन चर्चा (विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में) के निरंतर दीर्घकालिक लाभ का उल्लेख करते हुए राज्यपाल ने पर्वतीय क्षेत्र की महिलाओं के जीवन की कठिनाईयों की ओर सबका ध्यान आकर्षित करते हुए विश्वास व्यक्त किया कि अनुभव से सृजित पारंपरिक ज्ञान को परस्पर आदान-प्रदान करके सीखने-सिखाने का अभिनव प्रयोग समाज में सुखद परिणाम लाएगा।
पारंपरिक ज्ञान, जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित नवदान्या ने ग्रांडमदर यूनिवर्सिटी में तीन पीढ़ियों के बीच एक साथ संवाद स्थापित करने के उद्देश्य से बीजा विद्यापीठ में आयोजित तीन दिवसीय पाठ्यक्रम के उद्घाटन पर मुख्य अतिथि के रूप में राज्यपाल ने उपस्थित प्रतिभागियों और जन-समूह के सामने पारंपरिक ज्ञान से जुड़े कई अनुभवों का उल्लेख भी किया।
उन्होंने कहा कि प्रायः पाश्चात्य देशों की तकनीक, वैज्ञानिक शोध और अवधारणाएं एशियाई देशों के अनुकूल नहीं होते विशेषतः हमारे देश के लिए क्योंकि हमारे देश में परिवार की गौरवशाली सुदृढ़ अवधारणा है। नवदान्या की संस्थापक डॉ वंदना शिवा ने कहा कि नानी, दादी के अनुभवों और सीख से प्राप्त ज्ञान, सुंदर ढंग से जीना सिखाता है। रिश्तों की संपदा को सर्वोपरि बताते हुए उन्होंने व्यवहारिक ज्ञान, परंपरा और मूल्यों पर आधारित विकास को इंसानियत के लिए आवश्यक बताया। कार्यक्रम में राज्यपाल के आह्वान पर जापान में भूकंप और सुनामी से प्रभावित लोगों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए दो मिनट का मौन रखा गया। राज्यपाल ने डॉ वंदना शिवा को राज राजेश्वरी सम्मान से सम्मानित किया, जोकि पीएचडी चैम्बर ऑफ कामर्स और राज्य योजना आयोग ने दिया है।
कार्यक्रम में पद्म विभूषण और सुविख्यात पर्यावरणविद् सुंदर लाल बहुगुणा, उनकी पत्नी विमला बहुगुणा, ग्रांडमदर यूनिवर्सिटी की कुलपति ऊषा मैरा, एडीसी वीके कृष्णकुमार सहित संस्था के पदाधिकारी, राज्य के विभिन्न क्षेत्रों से आई वरिष्ठ महिलाएं (दादी,नानी) विदेश से आये कई शोधार्थी और स्थानीय जन उपस्थित थे।