स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
देहरादून। उत्तराखंड की राज्यपाल मार्ग्रेट आल्वा ने विश्व वानिकी दिवस पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी में भारतीय वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित किया। इन प्रशिक्षु वन अधिकारियों को उनकी जिम्मेदारियों, कठिनाईयों और उनके समाधान को उदाहरण सहित प्रस्तुत करने का यह एक अच्छा अवसर था। मार्ग्रेट आल्वा उत्तराखंड की राज्यपाल होने के नाते वन अधिकारियों और वनों के बीच रहने वाले लोगों की व्यवहारिक कठिनाईयों से हर प्रकार से वाकिफ हो चुकी हैं इसलिए इन अधिकारियों को उनकी कर्तव्य निष्ठा का पाठ पढ़ाने के लिए बहुत कुछ था। इन अधिकारियों को भी ऐसा प्रेरणाप्रद अवसर शायद ही मिला होगा।
राज्यपाल ने पहाड़ के अनुभवों को सिलसिलेवार रखते हुए इन प्रशिक्षु अधिकारियों से कहा कि उन्हें विकास और वन संरक्षण के बीच समन्वय स्थापित करते हुए अपने पद से जुड़े दायित्वों का पूर्ण परिपक्वता एवं गंभीरता से निर्वहन करना होगा। वन संरक्षण से संबंधित नीतियों के क्रियान्वयन के समय इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि जन सामान्य के जीवन-यापन और सामान्य दैनिक गतिविधियां दुष्प्रभावित न हों। सर्वोत्तम और व्यवहारिक यही होगा कि वन संरक्षण में जन सामान्य की भूमिका और सहभागिता सुनिश्चित की जाए। इस मौके पर देश के विभिन्न प्रांतों से भी वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारी आए थे।
राज्यपाल ने वन अधिनियमों के कारण जन सामान्य के समक्ष आ रही अनेक कठिनाइयों का उल्लेख किया और कहा कि वन भूमि के प्रबंधन का दृष्टिकोण जन-केंद्रित होना चाहिए ताकि पर्यावरणीय मूल्यों के साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का भी उसमें संतुलित समावेश हो सके। राज्यपाल ने कहा कि देश के भावी वनाधिकारियों से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे आदर्श वन प्रबंधन के लिए पूर्व में स्थापित, सफल जन-केंद्रित दृष्टिकोण को और अधिक सुदृढ़ करेंगे। उन्होंने मानव और भौतिक-परिस्थितिकी तंत्र के मध्य संतुलन और सामंजस्य स्थापित करने की रणनीति पर अपने सुझाव दिए और कहा कि देश में सामुदायिक वन प्रबंधन के अनुभव यह स्पष्ट दर्शाते हैं कि वनों के संरक्षण में स्थानीय जन समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका है और उनके गहरे प्रभाव की अनदेखी नहीं की जा सकती है, श्रेष्ठ वन प्रबंधन के लिए स्थानीय समुदाय की संयुक्त और सक्रिय भागीदारी बहुत आवश्यक है।
राज्यपाल ने देश के पश्चिमी घाट परिक्षेत्र और उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में विकास की योजनाओं, वन्य जीव और मानव के बीच बढ़ते टकराव से स्थानीय समुदाय के हक-हकूकों आदि पर पड़ रहे विपरीत प्रभाव के भी विस्तृत उदाहरण पेश किए। उन्होंने कहा कि इन समस्याओं का समाधान खोजे बिना वास्तविक वन सरंक्षण संभव नहीं है। पर्यावरण और स्थानीय समुदाय के हितों को केंद्र में रखकर ही विकास की योजनाएं बनाई जानी चाहिएं। विश्व वानिकी दिवस में निहित संदेश-प्रोडक्शन, प्रोटेक्शन और रिक्रियेशन को जन चेतना का आधार बताते हुए राज्यपाल ने कहा कि यह संदेश वर्ष 2011 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय वन वर्ष घोषित किये जाने और उसकी विषय वस्तु 'जन के लिए वन' के अनुरूप है।
कार्यक्रम का शुभारंभ राज्यपाल ने दीप प्रज्जवलित कर किया। अकादमी के निदेशक डॉ आरडी जगाती ने संस्थान की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर राज्यपाल के सचिव अशोक पई, प्रमुख वन संरक्षक उत्तराखंड डॉ आरबीएस रावत सहित अनेक वरिष्ठ अधिकारी, संकाय सदस्य, परिसहाय वीके कृष्ण कुमार, प्रथम और द्वितीय वर्ष के प्रशिक्षु वन सेवा के अधिकारी उपस्थित थे।