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लखनऊ। ये रंगनाथ मिश्र हैं। मायावती सरकार में माध्यमिक शिक्षा मंत्री। पूर्वांचल की ब्राह्मण राजनीति और शिक्षा के शक्तिशाली केंद्र बनारस और कालीन उद्योग के विश्वविख्यात जिला भदोही के औराई विधानसभा क्षेत्र से चार बार से जीतते आ रहे एक असरदार राजनेता। रंगनाथ मिश्र मायावती मंत्रिमंडल के ऐसे वरिष्ठ सदस्य हैं जो अक्सर षडयंत्रकारियों और अफवाहों से प्रभावित रहते हैं। इसके बावजूद जब राज्य के लोकायुक्त ने इनके विरूद्ध प्राप्त कई शिकायतों की लंबे काल तक व्यापक स्तर पर जांच की तो उनमें भी ये बेदाग ही साबित हुएहैं। रंगनाथ मिश्र ने माध्यमिक शिक्षा में नीतिगत स्तर पर कई बड़े और लोकप्रिय सुधार किए हैं। वे अपने विरोधियों के अनवरत अभियानों से कभी विचलित नहीं दिखाई दिए,इसलिए मुख्यमंत्री मायावती के विश्वासपात्र मंत्रियों मेंवे यूं ही नहीं माने जाते हैं। दरअसल कमलापति त्रिपाठी और लोकपति त्रिपाठी के अवसान के बाद पूर्वांचल में ब्राह्मण राजनीति पर वर्चस्व स्थापित करने की जबरदस्त लड़ाई छिड़ी हुई है और उसमें रंगनाथ मिश्र एक ताकतवर ब्राह्मण नेता के रूप में स्थापित हो रहे हैं। रंगनाथ मिश्र के साथ बहुजन समाज पार्टी के भी खड़े होने से यहां उनकी ताकत औरों से ज्यादा मानी जाती है, कदाचितऐसे ही कारण रंगनाथ मिश्र को ज्यादा ही चुनौतियां दे रहे हैं,जिनमें उनको किसी भी तरह से लपेटने की कोशिशें सामने आती रहती हैं।
बिना किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि के और निचले स्तर से संघर्ष करते हुए राजनीति में आए रंगनाथ मिश्र को क्षेत्र के लोगों से निरंतर संवाद और ब्राह्मण राजनीति पर मजबूत पकड़ ने और ज्यादा ताकतवर और जुझारू बनाया है। लोकायुक्त जांच और कुछ लोकापवादों पर पिछले समय में मीडिया के एक वर्ग ने उन पर जबरदस्त निशाना लगाया,लेकिन राजनीतिक जानकार कहते हैं कि रंगनाथ मिश्र ने तो इसका जमकर सामना किया ही मगर मुख्यमंत्री मायावती भी अपने शिक्षामंत्री के साथ चट्टान की तरह से खड़ी हैं जिससे उनके विरोधियों के हौसले पस्त हो गए। कल तक जांचों और विवादों का जो हौवा रंगनाथ मिश्र का पीछा कर रहा था,वह प्रभावहीन हो गया है। अब हर कोई यह मान रहा है कि रंगनाथ मिश्र को पूर्वांचल की राजनीति में कमज़ोर करने की विरोधियों की बड़ी साजिश थी,जिसे रंगनाथ मिश्र ने मुख्यमंत्री मायावती के विश्वास पूर्ण सहयोग से विफल किया है।
रंगनाथ मिश्र के खिलाफ जांचों और उनके फलस्वरूप विवादों का एक बड़ा नुकसान रंगनाथ मिश्र को और सरकार को भी इस रूप में उठाना पड़ा है कि उन्होंने माध्यमिक शिक्षा में सुधार के जो बड़े प्रयास और कार्य किए वे प्रदेश में वैसी सार्वजनिक ख्याति नहीं पा सके जैसी भाजपा शासनकाल में तत्कालीन शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को मिली थी। राजनाथ सिंह ने शिक्षा विभाग में सुधार के जो भी कार्य किए उनमें केवल नकल विधेयक ही प्रदेश भर में उनकी चर्चा और ख्याति का विषय बना, मीडिया ने उन्हें बड़े रचनात्मक रूप में पेश किया जबकि रंगनाथ मिश्र ने माध्यमिक शिक्षा विभाग में शिक्षा प्रणाली में सुधार के क्षेत्र में राजनाथ सिंह से भी ज्यादा काम किया है जिसका मीडिया ने उस तरह से संज्ञान नहीं लिया। रंगनाथ मिश्र के तो दूसरे ही सुनियोजित विवाद उछलते रहे हैं जो आज निर्मूल साबित हुए हैं।
माध्यमिक शिक्षा विभाग में विभागीय मंत्री को प्राप्त धारा 9/4 विशेष अधिकार का पूर्ववर्ती सरकारों के शिक्षा मंत्रियों ने जमकर इस्तेमाल किया है, जिसके अंतर्गत फर्जी स्कूलों को मान्यताएं दी गईं या परीक्षा केंद्र स्थापित कराए गए, इस तरह के करीब सात हज़ार प्रकरण हैं जिनमें न स्कूल की ज़मीन है और न बिल्डिंग, जबकि रंगनाथ मिश्र ने अपने इस विशेष अधिकार का कभी इस्तेमाल नहीं किया और मान्यता देने में नियमों का सख्ती से पालन कराया है। यही कारण है कि रंगनाथ मिश्र के खिलाफ एक ऐसी लॉबी ने काम किया है जो पूर्ववर्ती सरकारों के शिक्षा मंत्रियों को अपनी मनमर्जी से चलाती थीं। विधायक निधि के इस्तेमाल पर भी रंगनाथ मिश्र को विवादों में लिया गया मगर यह साबित नहीं हो पाया की उन्होंने कहीं विधायक निधि का दुरूपयोग किया है। ऐसे अनेक आरोप हैं जिनका रंगनाथ मिश्र ने सामना किया है और अंतत: बेदाग साबित हुए हैं।
गौर करें तो रंगनाथ मिश्र का माध्यमिक शिक्षा में हाई स्कूल में परीक्षार्थियों की ग्रेडिंग प्रणाली एक बड़ा और दूरगामी सुधार माना जाता है जिससे परीक्षार्थियों में फेल होने के गंभीर अवसाद पर नियंत्रण पाया जा सका है। हाई स्कूल परीक्षा में फेल होने पर हतोत्साहित होकर उनमें आत्महत्या की घटनाओं को कम किया जा सका है। अब उन्हें फेल नहीं किया जाता है, बल्कि फेल हुए विषय में दोबारा परीक्षा में बैठाकर पास होने का पूरा अवसर दिया जाता है इस तरह से पिछले साल करीब पांच लाख परीक्षार्थियों को पास होने का अवसर मिला और वे अपने को मानसिक अवसाद से मुक्त पा सके। क्या ऐसा सुधार पहले कभी हुआ है? इस सरकार में यह भी हुआ है कि हल किए गए प्रश्न के उत्तर पर नंबरों की स्टेप टू स्टेप मार्किंग की गई, अर्थात परीक्षार्थी ने प्रश्न का जहां तक सही उत्तर दिया है वहां तक उसे पर्याप्त अंक मिलेंगे, जिसमें परीक्षक के लिए यह भी अनिवार्य है कि वह अंक देते समय परीक्षार्थी से इस बात की अपेक्षा नहीं करेंगे कि यदि उसने परीक्षार्थी की मनमर्जी के अनुसार नहीं लिखा है तो उसके प्रश्न के उत्तर को नकार दिया जाए। इस पर अंकुश लगाया गया है जिससे परीक्षार्थी को उसके प्रश्न के उत्तर में अंक अवश्य ही मिलेंगे। ऐसा करना परीक्षार्थी को उसकी योग्यता को प्रोत्साहित करना है जिससे परीक्षार्थी अपनी योग्यता का आंकलन कर सकता है। यह लाखों बच्चों को मानसिक अवसाद से दूर रखने का ऐसा प्रयास माना गया है जो किसी पूर्ववर्ती सरकार ने नहीं किया।
यह एक ऐसा सुधार माना जाता है जो लाखों परीक्षार्थियों को परीक्षा में नकारात्मक परिणाम से पूरी तरह मुक्त करता है। इस प्रकार के सुधार को मीडिया में स्थान नहीं मिल पाया। माध्यमिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में को एजुकेशन को प्रोत्साहित किया गया है। माध्यमिक शिक्षा विभाग में जिला विद्यालय निरीक्षकों को स्कूलों में कंट्रोलर नियुक्त करने का अधिकार समाप्त कर स्कूलों के प्रबंधन में अनावश्यक हस्तक्षेप को खत्म किया गया है। ये कुछ ऐसे सुधार हैं जिनका कि व्यापक प्रचार प्रसार नहीं हो पाया। माना जाता है कि रंगनाथ मिश्र का अपनी छवि के प्रति सजग न रहना, अपने विरोधियों की साजिशों को नज़र अंदाज करना और शिक्षा विभाग में अपने सुधार कार्यों को लोगों तक पहुंचाने में असफल रहना उनके लिए नुकसानदायक ही रहा है, यह अलग बात है कि उन्होंने इस अवस्था पर काफी हद तक नियंत्रण पाया है और मुख्यमंत्री मायावती का उन पर अटूट विश्वास बना हुआ है।