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चित्तौड़गढ़। 'समय सभी के साथ एक सा रहता है, हम ही अनुकूल-प्रतिकूल बन पड़ते हैं, बीते बीस सालों में हमारा भारत देश ही समय के प्रतिकूल स्थिति में रहा है, विचार गोष्ठी के बहाने हमें देश को अनुकूल बनाने की बात करनी है, वैश्वीकरण ने हमारा सोच,विचार और विरासत सबकुछ बदल कर रख दिया है, कई देशों का आत्मविश्वास तक तोड़ दिया है, इन सालों में हमारे दिमाग पर सोचा समझा हमला किया गया है, हमारे देश के वैविध्य को कौन नहीं जानता है? कई तरह के आक्रमणों के बावजूद जिंदा हमारी संस्कृति ही हमारे लिए अकूत खजाना है।' ये विचार विजन कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट के सहयोग से यहां जैन धर्मशाला में नव संवत्सर, आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में, विषयक संगोष्ठी में विभिन्न वक्ताओं ने व्यक्त किए।
गोष्ठी संयोजक डॉ एएल जैन ने कहा कि भारत की वैदिक संस्कृति के प्रति नतमस्तक नोबल विजेताओं को देखकर अब तो कुछ सीखना चाहिए, दूजी और हम हैं कि इस बात पर ही मरे जा रहे हैं कि विदेश से क्या आया, सार रूप में कहें तो आज हमारा नजरिया बदलने की बहुत बड़ी जरूरत है, हम वैचारिक और नैतिक रूप से निर्धन और निर्बल हो चुके हैं। उनका कहना था कि असल में हमने हिंदुस्तानियों की मानसिक ताकत को ही सबकुछ मान लिया है, जबकि भारतीय मेधा की विश्व स्तर पर नई पहचान स्थापित हुई है और वहीं पर नैतिकता के निम्नतम स्तर भी सामने आए हैं। अपनी बातों को आधार देने के लिए एएल जैन ने अपने संपादन में बनी तीन लघु फिल्में भी प्रदर्शित कीं, जिनमें देश की पुकार, भारत क्या है?
ये फिल्म मेवाड़ विश्वविद्यालय के प्राध्यापक विभोर पालीवाल, जे रेड्डी और विजन स्कूल के प्राध्यापक राहुल जैन ने निर्मित की हैं। इससे पूर्व नगर के गीतकार अब्दुल जब्बार ने एक सरस गीत पढ़ा, जिसे उपस्थित प्रबुद्धजनों ने बहुत सराहा। साथ ही डॉ योगेश व्यास ने इस गोष्ठी से जुड़े और भी कड़ीवार आयोजनों की रूपरेखा रखी। युवा और बुजुर्ग वक्ताओं के पांच सदस्यीय दल में से रामधारी सिंह दिनकर पर शोधरत रेणु व्यास ने शुरुआत की। उन्होंने काल जैसे शब्द के कई अर्थ जाहिर करते हुए अपने ढंग से गोष्ठी को दिशा दी।
उन्होंने कई रचनाकारों को शामिल करते हुए तथ्यात्मक बातें कीं और कहा की सभ्यताओं को संघर्ष से नहीं जीता जा सकता, न ही शक्ति के बल बूते, ये भारत ही हो सकता है जहां कई सारे संवत और कलेंडर प्रचलित हैं। अनेक परंपराओं वाले इस देश में एक भी कलेंडर अपने आप में पूरा नहीं है। उन्होंने भारतीय नव वर्ष को हिंदू नव वर्ष जैसी उपमा देना बहुत चिंताजनक बताया, साथ ही वे यह भी कहती हैं कि भौतिकता के साथ ही मानसिक रूप से भी भारत ने प्रगति की है, हमारे देश में भौतिकता के साथ आध्यात्म का समन्वय बेहद बेजोड़ है, ये ही हमारे भारतीय नवजागरण का सबसे बड़ा मूल्य साबित हुआ है।
जिला कोषाधिकारी हरीश ने इस मौके पर कहा कि हमारे राष्ट्र में भाति-भाति के जाति और व्यवसायिक वर्ग हैं उनके लिए इस वर्ष का अलग-अलग अर्थ रहा है, मगर वैश्विक रूप से चिंतन करें तो बात शक्तिशाली होने से जुड़ी है जो आर्थिक, सांस्कृतिक रूप से बड़ा है, सभी उसकी ही बात मानते हैं, उसके ही रंग में सभी डूब रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि हम भी अपनी सांस्कृतिक परंपरा को ढंग से अपनी संतानों में उड़ेल पाएं। उन्होंने कहा कि बड़ी अजीब बात है सब कुछ अब अर्थ के हिसाब से होने लगा है, वे अपनी पूरी बात में देश के प्रति किसी भी प्रकार के हमले जैसी हालत से बेचिंता नज़र आए।
वरिष्ठ अधिवक्ता कैलाश झंवर ने देश के लिए इन अवनति की पराकाष्ठा वाले हालातों में भी निराश नहीं होकर फिर से कुछ कर गुजरने के लिए चिंतन का आह्वान किया। उन्होंने सत्ता, धन और देश की दशा के बीच के समीकरण को सपाट गति से विश्लेषित किया। अपने भाषण में झंवर ने कहा कि आज के आदमी का चिंतन जाता रहा, अब एक बार फिर से स्वतंत्रता आंदोलन की जरूरत है, भौतिक प्रगति के समांतर हमें वैचारिक दरिद्रता भी मिटानी होगी। वे कहते हैं कि नेतृत्वकर्ता ही दिशाहीन है, ये बेहद चिंताजनक हालात को इंगित करता है।
गोष्ठी में जेके सीमेंट के वरिष्ठ सलाहकार एबी सिंह ने आम बोलचाल की भाषा में हमारे ही बीच के लोगों की मानसकिता के उदाहरण देते हुए देश के कई जरूरी मुद्दे उठाए एवं समूह और कर्म की ताकत को आवश्यक बताया। सेवानिवृत प्राचार्य प्रोफेसर डीसी भाणावत ने अपनी अंग्रेजी और हिंदी कविता के सहारे रसीला उद्बोधन दिया। युवा पीढ़ी के गलत हाथों में दोहन और टीवी प्रोग्राम में नारी पर छींटाकसी के साथ ही कई मुद्दों पर भी उन्होंने अपनी बातें कहीं। गोष्ठी के अंतिम भाग में भारतीय नववर्ष आयोजन समिति के सह सचिव और सीए सुशील शर्मा ने आभार जताया। गोष्ठी का संचालन अपनी माटी वेबपत्रिका के संपादक और संस्कृतिकर्मी माणिक ने किया। दो घंटे तक चली गोष्ठी में नगर के लगभग सभी वर्गों और संस्थाओं के शीर्षस्थ पदाधिकारी, कई शैक्षणिक संथाओं के प्रधान और साहित्यकार सहित करीब दो सौ प्रतिभागी मौजूद थे। राष्ट्रगान के साथ आयोजन पूरा हुआ।