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चित्तौड़गढ़। हिंदी साहित्य के समालोचक और कवि डॉ एसएन व्यास ने कहा है कि देश में वर्णाश्रम व्यवस्था ही छूआछूत की जड़ है, इसे नष्ट करने पर ही देश में समतामूलक समाज का विकास और असल रूप में राष्ट्र का विकास संभव है। प्रयास संस्थान के कार्यालय में अंबेडकर जयंती पर आयोजित संगोष्ठी में संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर को माल्यार्पण करने के बाद विचार विमर्श में डॉ व्यास ने कहा कि मैं अंबेडकर को कई मायनों में महात्मा गांधी से भी बड़ा मानता हूं। हिंदू धर्म के बहुत से ग्रंथों का अध्ययन करने के बाद उन्होंने यह पाया है कि मनुस्मृति और गीता भी प्रमाणिकता की दृष्टि से संदिग्ध है। सही मानवीय संदेश तो अंबेडकर ने अपने कृतित्व में दिया है। वे कहते थे कि देशहित में व्यक्तिगत हित को त्याग दूंगा और देशहित तभी गरिमामय होगा जब समतामूलक समाज बन पाएगा। डॉ व्यास कहते हैं कि जाति के आधार पर आदमी की पहचान होने का ज़माना अब गया, अब तो व्यक्तिगत जीवन में चरित्र और सर्वोपरी विचार से ही पहचान होगी।
कॉलेज शिक्षा के पूर्व प्राचार्य पुरुषोत्तम गहलोत ने अपने संघर्षमयी जीवन के अनुभवों से अवगत कराते हुए संगोष्ठी में कहा कि उन्होंने जहां-जहां भी अपनी सेवाएं दी हैं, वहां-वहां छुआछूत को समूल नष्ट करने का पूरा प्रयास किया है। उन्होंने दलित को समाज का डॉक्टर बताते हुए कहा कि यदि ये डॉक्टर नही होते तो पूरा गांव सड़ जाता। आरक्षण की उपज असल में आदिवासी, जंगली जातियों या अछूत की वजह से है, आज देश को जातीयता के आधार पर बांटकर जो भयावह और विकट स्थिति उत्पन्न की गई है उससे देश में बहुत बड़ा संकट आ गया लगता है। उन्होंने वर्तमान राजनीति पर कटाक्ष करते हुए कुछ काव्य रचनाएं भी प्रस्तुत कीं।
नगर के वरिष्ठ अधिवक्ता बीएल सिसौदिया ने कहा कि हमने कभी भी छुआछूत नही की। उन्होंने खुद के जीवन के कई संस्मरण सुनाएं। हंस पत्रिका और ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा 'झूठन' से कई उदाहरण लेते हुए उन्होंने दलित साहित्य को बहुत ज़रूरी और धारदार कहा, ऐसे साहित्य को पढ़ने की ज़रूरत भी बताई। सामाजिक कार्यकर्ता प्रभात सिन्हा ने कहा कि आजाद भारत में दास प्रथा किसी न किसी रूप में आज भी मौजूद है, जाति आधारित व्यवसाय अब नही रहे हैं। स्थितियां आज की जरूरत बदल रही हैं, जाने क्यों दलित के हाथों से मंदिरों का निर्माण होता है मगर बाद में उन्ही मज़दूरों का वहां प्रवेश बंद हो जाता है। पेशे से चिकित्सक डॉ वीपी पारिक ने कहा कि इंसानियत की कोई जात नही होती।
वरिष्ठ अधिवक्ता केएल श्रीमाली ने कहा कि देश में आर्थिक आधार पर शोषण जारी है। उन्होंने बताया कि आदिकाल में जातीयता इतनी हावी हो गई कि दलितों को अपने पद चिन्ह मिटाने के लिए शरीर के पीछे कोडा या झाडू बांधकर चलना पडता था, वे ज़मीन पर थूक नही सकते थे, लेकिन शिक्षा के व्यापक प्रसार और दलितों में जागरूकता के कारण परिस्थितियां कुछ हद तक बदल गई हैं, इन्हें और भी बदलने की जरूरत है। पूंजीवादी व्यवस्था कैसे कायम रहे सोची समझी चाल के तहत इसके प्रयास अब भी जारी हैं। अंबेडकर को कुछ जाति विशेष के लोगों तक सीमित समझना संकीर्ण सोच का परिचायक होगा, वे असल मायनों में मानवता के पुजारी थे और किसी भी जाति, धर्म के बंधन से मुक्त थे। राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक रहे प्रोफेसर सीएम कोली ने अंबेडकर के जीवन के कई वृतांत सुनाते हुए कहा कि अब आरक्षण राजनीति का शिकार हो गया है, निजी स्वार्थो के वशीभूत होकर अब इसके समूह और वर्ग बनने लगे हैं।
संगोष्ठी के अंत में सामुदायिक स्वास्थ्य वैज्ञानिक और आयोजक प्रयास संस्थान के सचिव डॉ नरेंद्र गुप्ता ने दलितों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की कि हमारे देश में आधे से अधिक लोग पर्याप्त भोजन नही मिलने के कारण कुपोषण के शिकार हैं, ऐसे ही समय में बातें उठ रही हैं कि विश्व के अमीर व्यक्तियों में से हमारे देश में 5वां अमीर व्यक्ति है, यह हमारे लिए गर्व की नही बल्कि शर्म की बात है। पूंजीपति आर्थिक संसाधनों पर अपना अधिपत्य जमाकर उसे एक ईश्वरीय सत्ता का स्वरूप देने के साथ ही उसे सांस्कृतिक और धार्मिक जामा पहनाने में लगे हुए हैं ताकि उनके अपने स्वार्थ पूरे हो सकें। हाल ही की अपनी दक्षिणी अफ्रीका यात्रा का जिक्र करते हुए डॉ गुप्ता ने कहा कि वहां रंगभेद संग्रहालय में ये अनुभव किया जा सकता है कि जो संसाधनों के वास्तविक मालिक हैं उन्हें ही उसके असल लाभ से वंचित करके बड़ी चतुरता से सेवक बना दिया जा रहा है।
संगोष्ठी में पूर्व प्राचार्य डॉ एएल जैन, लोकगीतों पर काम करने वाली लेखिका चंद्रकांता व्यास, स्पिक मैके समन्वयक जेपी भटनागर ने भी अपने विचार व्यक्त किये। गोष्ठी का संचालन अपनी माटी वेब पत्रिका के संपादक और संस्कृतिकर्मी माणिक ने किया। कार्यक्रम प्रभारी रामेश्वर शर्मा ने प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर वरिष्ठ नागरिक मंच के अध्यक्ष नवरतन पटवारी, विजयपाल सिंह, रितेश लोढ़ा, अर्पण सेवा संस्थान की संगीता त्यागी, मनीषा बेन सहित कई प्रबुद्वजन एवं वरिष्ठ नागरिकों ने भाग लिया।