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नई दिल्ली। टेलीफोन टेपिंग के संबंध में कैबिनेट सचिवालय की रिपोर्ट पर हाल में मीडिया में कई आलेख आए हैं। कैबिनेट सचिवालय इस बारे में मीडिया को अपनी ओर से तथ्यात्मक जानकारी दीं हैं जिनके अनुसार टेलीफोन अवरोधन की मंजूरी के प्रावधान भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम 1885 की धारा 5 (2) के साथ भारतीय टेलीग्राफ नियम, 1951 में समाहित हैं और साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 69 के साथ सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना पर पाबंदी या अनुश्रवण या डिकोड के अनुदेश) नियम 2009 में भी यह समाहित हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने पीयूसीएल बनाम भारत संघ नामक मामले में 18 दिसंबर 1996 को धारा 5 (2) के तहत अवरोधन और अनुश्रवण को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया था। उसने यह भी कहा था कि अपने घर या कार्यालय से टेलीफोन पर निर्बाध वार्तालाप करना 'निजता का अधिकार' है। इसी के अनुरूप टेलीफोन टेपिंग भारतीय संविधान में क्रमश: अनुच्छेद 21 और 19 (1) (क) के तहत प्रदत्त जीवन जीने के अधिकार और वाक् और अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन है।
कैबिनेट सचिवालय ने कोर्ट के हवाले से कहा है कि यह उल्लंघन तब तक माना जाएगा जब तक कि नियम द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत टेपिंग की अनुमति न दी जाए, अधिनियम की धारा 5 (2) स्पष्टत: कहती है कि इन प्रावधानों के उपयोग के लिए 'किसी सार्वजनिक आपात स्थिति की उपस्थिति' या 'सार्वजनिक सुरक्षा का हित' जरूरी शर्त है। इनमें से कोई भी गोपनीय शर्त नहीं है। कोर्ट ने हुकुमचंद श्यामलाल बनाम भारतीय संघ और अन्य, 1976 के मामले का जिक्र करते हुए कहा था कि आर्थिक आपातकाल ऐसे मामलों में शामिल नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा था कि केवल आर्थिक आपातकाल जरूरी नहीं कि ‘सार्वजनिक आपातकाल’ जैसी हालत उत्पन्न करे, जबकि धारा 5 (2) के तहत की गई कार्रवाई को तब तक उचित नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि इस धारा में जिक्र की गई समस्या उत्पन्न न हो जाए।
स्पष्टीकरण में कहा गया है कि ‘सार्वजनिक आपातकाल’ का मतलब उस अकस्मात स्थिति या हालात से है, जो तत्काल प्रभाव से लोगों की वृहत संख्या को प्रभावित करे। यह वो स्थिति है जब सार्वजनिक सुरक्षा, देश की संप्रभुता और एकता, राष्ट्र की सुरक्षा, संप्रभु देशों से मैत्री संबंध या सार्वजनिक आदेश से संबंधित समस्याएं उत्पन्न हो जाए। ‘सार्वजनिक सुरक्षा’ का तात्पर्य खतरे या जोखिम से बड़े पैमाने पर लोगों की सुरक्षा करना है, या तो ये दो शर्तें अस्तित्व में न हों कि अधिकारी टेलीफोन टेपिंग का सहारा नहीं ले सकते। यद्यपि इस बात पर संतोष हो कि देश की संप्रभुता और एकता, राष्ट्र की सुरक्षा, संप्रभु देशों से मैत्री संबंध, सार्वजनिक आदेश के हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है।
इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5 (2) के अंतर्गत पाबंदी के बारे में संस्थागत सुरक्षा के मुद्दे पर निर्देश जारी किया। अधिकृत संस्था द्वारा कुछ टेलीफोन नंबरों के अवरोधन पर हुए ताजा विवाद, जिस पर मीडिया में काफी चर्चा हुई है, के आलोक में प्रधानमंत्री ने कैबिनेट सचिवालय को इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए नियमों, प्रक्रियाओं और प्रणालियों पर विचार करने का निर्देश दिया है। सभी संबंधित मुद्दों पर विचार करने के बाद कैबिनेट सचिवालय ने नियमों और प्रक्रियाओं के व्यापक शोधन, साथ ही कानून में संशोधन कर नियमों के उल्लंघन पर कठोर दंड के प्रावधान की भी सिफारिश की है। यह भी सिफारिश की गई है कि या तो केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को टेलीफोन टेपिंग के लिए अधिकृत एजेंसियों की सूची से निकाल दिया जाए, क्योंकि आयकर नियम सिविल अधिकार क्षेत्र में आता है और हमेशा यह सार्वजनिक सुरक्षा को आघात नहीं पहुंचाता या एजेंसी को दी हुई निगरानी की अनुमति की हद के बारे में शर्तों को चिह्नित किया जाए। इसमें वह स्तर भी शामिल है, जो गृह सचिव से अनुमति मांगता है।
यह स्पष्ट किया गया है कि नियम केवल कर चोरी का पता लगाने के लिए टेलीफोन टेपिंग और बातचीत की निगरानी की अनुमति नहीं देता। अघोषित संपत्ति और कर चोरी का पता लगाने के लिए पहले से ही विशिष्ट नियम और कानून हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने विस्तार से स्पष्ट किया है कि बिना सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा के खतरे में पड़े बिना टेलीफोन पर अवरोधन कानूनसम्मत नहीं है। कैबिनेट सचिवालय की सिफारिश ने इस स्थापित कानूनी स्थिति को दोहराया है, जिसे निजी या हित समूहों के संघर्ष के रूप में नहीं देखना चाहिए।