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नई दिल्ली। पुरुलिया हथियार कांड की जांच के दौरान केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के समक्ष अब तक जो भी सबूत सामने आए हैं, उनमें नील्स हॉक उर्फ किम डेवी के अपराध में किसी भी सरकारी एजेंसी द्वारा जाने-अनजाने में किसी भी प्रकार से सहायता करने का कोई प्रमाण नहीं है, इसके विपरीत, खुफिया एजेंसियों ने सीबीआई को उसके और उसके सह-अभियुक्तों के खिलाफ सबूत जुटाने में बहुत मदद की। उसे फरार होने में मदद करने का कोई भी साक्ष्य किसी भी भारतीय राजनीतिज्ञ के खिलाफ नहीं मिला है।
सीबीआई ने अपनी जांच के दौरान, आरोपित से संबंधित एक लैपटॉप जब्त किया। इसमें 50,000 से ज्यादा पृष्ठ पाए गए, जिसमें किम डेवी ने अपने अपराध की योजना और तैयारी का विस्तृत विवरण दिया है। इसमें उसने कहीं भी किसी भारतीय सरकारी एजेंसी से इस अपराध में मदद हासिल होने का कोई उल्लेख नहीं किया है। सीबीआई उसे भारत लाने और न्यायालय में उस पर मुकदमा चलाने की पूरी कोशिश कर रही है। किम डेवी को खुली अदालत में अपना वक्तव्य प्रस्तुत करने का पूरा अवसर दिया जाएगा। सीबीआई भारतीय अदालत में किम डेवी और अन्य अभियुक्तों के अपराध को आतंकवादी कार्रवाई सिद्ध करने में सफल रही है। यही बात सीबीआई डेनमार्क की सरकार के समक्ष भी साबित कर चुकी है। किम डेवी अपना प्रत्यर्पण रोकने के लिए इस जघन्य अपराध को अपनी आत्मरक्षा में किया हुआ काम साबित करने की कोशिश कर रहा है।
किम डेवी के विरुद्ध 1996 में ही रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया था। इंटरपोल की मदद से भारत ने पता लगाया कि वह कोपेनहेगन में है। उसके प्रत्यर्पण के लिए सीबीआई ने गंभीर प्रयास किए हैं, लेकिन भारत और डेनमार्क के बीच कोई प्रत्यर्पण संधि न होने से इस प्रक्रिया में समय लगा है। सीबीआई और विदेश मंत्रालय के लगातार प्रयास के बाद डेनमार्क सरकार भारत में डेवी के अपराध के बारे में आश्वस्त हुई है और उसके प्रत्यर्पण के लिए राजी हो गई है। मामला अभी डेनमार्क की अदालत में है। उल्लेखनीय है कि सीबीआई ने पुरुलिया में हथियार गिराए जाने का मामला 28 दिसंबर 1995 को दर्ज किया था।