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नई दिल्ली। प्रवर्तन निदेशालय की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह के अध्यक्ष सुब्रत राय सहारा के खिलाफ अदालत की अवमानना का नोटिस जारी किया है। टू-जी स्पैक्ट्रम घोटाले की जांच में आवांछित दखल देने के आरोप में न्यायमूर्ति एके गांगुली और न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी की खंडपीठ ने अवमानना नोटिस जारी करते हुए सुब्रत रॉय और सहारा समूह के पत्रकारों उपेंद्र रॉय एवं सुबोध जैन को भी नोटिस भेजा गया है। प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी राजेश्वर सिंह ने इन सभी पर धमकी देने और ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया है। राजेश्वर सिंह टू-जी स्पैक्ट्रम घोटाले के जांच अधिकारी हैं।
खंडपीठ ने कहा है कि प्रथम दृष्टया ही लगता है कि टू-जी स्पैक्ट्रम घोटाले की जांच में हस्तक्षेप करने का प्रयास हुआ है। खंडपीठ ने इसे गंभीरता से लिया है और यहां तक आदेश पारित किया है कि सहारा इंडिया न्यूज नेटवर्क एवं इसके सहयोगी प्रकाशन अपने यहां, प्रवर्तन अधिकारी राजेश्वर सिंह से संबंधित कोई भी समाचार या कार्यक्रम प्रकाशित और उनका प्रसारण नहीं करेंगे। खंडपीठ ने पाया है कि राजेश्वर सिंह पर दबाव बनाकर उन्हें ब्लैकमेल करने का प्रयास किया गया है।
सुबोध जैन ने राजेश्वर सिंह को जो 25 सवाल भेजे थे उनको दबाव बनाने की प्रकृति माना गया है। ये स्थिति प्रवर्तन निदेशालय द्वारा सहारा समूह के अध्यक्ष को मनीलांड्रिंग निरोधक कानून के प्रावधानों के तहत सम्मन भेजने के बाद सामने आई। प्रवर्तन निदेशालय ने इसके उपरांत सुब्रत रॉय और उपेंद्र रॉय एवं सुबोध जैन के विरूद्ध अदालत की अवमानना की कार्रवाई शुरू करने का अनुरोध किया था। राजेश्वर सिंह ने याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने उल्लेख किया है कि डेढ़ सौ करोड़ रूपये के संदिग्ध लेन-देन के संबंध में सुब्रत रॉय से पूछताछ के लिए उन्हें तलब किया गया था मगर वे प्रवर्तन निदेशालय में पेश नहीं हुए बल्कि इन लोगों ने जांच अधिकारी को दबाव में लेने और ब्लैकमेल करने की कोशिश शुरू कर दी। सुबोध जैन ने व्यक्तिगत प्रकृति के जो पच्चीस प्रश्न किए हैं उन्हें दबाव बनाने की श्रेणी में माना गया है।
इस घटनाक्रम के बाद सहारा इंडिया परिवार की ओर से 'आश्चर्यजनक और अविश्वसनीय शीर्षक' से देशभर के समाचार पत्रों में एक विज्ञापन प्रकाशित कराया गया है जिसमें सहारा इंडिया परिवार ने कहा है कि 'जिस प्रकार से देश के कुछ प्रमुख समाचार पत्र और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से यह कहानी प्रकाशित/प्रसारित की गई है कि हमारे चेयरमैन को सम्मानीय सुप्रीम कोर्ट में चल रहे कोर्ट की अवमानना से संबंधित केस के बारे में नोटिस दी गई है, कि उससे हम अत्यंत आश्चर्य चकित हैं।' विज्ञापन में कहा गया है कि 'हम उन मिथ्यारोपों से भी विक्षुब्ध हैं, जिनके द्वारा 2-जी स्कैम या जो कंपनियां कथित तौर से इनमें नामित की गई हैं, के साथ हमे भी जोड़ा जा रहा है। हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि ये सभी आरोप गलत और मनगढ़ंत हैं और परोक्षरूप से हमारी छवि बिगाड़ने के इरादे से लगाए जा रहे हैं। अवमानना संबंधित वाद सम्मानीय सुप्रीम कोर्ट के सम्मुख न्यायाधीन है, अतएवं हम इसकी सुनवाई के दौरान अपनी निर्दोषिता को सिद्ध करने के लिए अपना पक्ष/उत्तर उसके समक्ष प्रस्तुत करेंगे और परिणाम की प्रतीक्षा करेंगे।'
इस विज्ञापन से बिल्कुल स्पष्ट होता है कि सहारा समूह के चेयरमैन सुब्रत रॉय और उनके संस्थान के दो पत्रकारों उपेंद्र रॉय और सुबोध जैन के विरूद्ध टू-जी स्पैक्ट्रम जांच में दखल देने पर सुप्रीम कोर्ट में अवमानना की कार्रवाई चल रही है। सहारा परिवार ने विज्ञापन में क्या साबित करने की कोशिश की है इसको लेकर और ज्यादा लोकापवाद उठ गए हैं। सहारा परिवार ने इस विज्ञापन में एक तरह से उसके चेयरमैन के विरूद्ध चल रही अवमानना कार्रवाई की पुष्टि ही की है। सुब्रत रॉय आमतौर पर ऐसे मामलों से अपने को दूर ही रखते आए हैं लेकिन यह विज्ञापन प्रकाशित होने के बाद ये विवाद और आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है।