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मन की सांकल और आख़िरी गीत में है दम

कथा यूके की गोष्ठी में खासी पड़ताल

दीप्ति शर्मा

गोष्ठी-goshti

लंदन। कथा यूके की कथा गोष्ठी में काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी ने अपनी कहानी मन की सांकल और लेस्टर की कथाकार नीना पॉल ने अपनी कहानी आख़िरी गीत का पाठ किया। लंदन के उपनगर एजवेअर में आयोजित इस गोष्ठी में कथा यूके के महासचिव एवं कथाकार तेजेंद्र शर्मा ने कहानियों एवं कहानीकारों का परिचय देते हुए कहा कि इन दोनों कहानियों ने मानवीय रिश्तों की कड़ी पड़ताल करते हुए रिश्तों की एक नई परिभाषा लिखी है। नीना पॉल ने जहां अपनी कहानी में मंटो जैसा ट्विस्ट देते हुए कहानी में पिता पुत्री के संबंधों की व्याख्या की है वहीं ज़कीया ज़ुबैरी ने एक बहुत ही कम्पलैक्स थीम को पूरी महारथ के साथ पन्नों पर उतारा है। ज़कीया ज़ुबैरी ने कहानीपन बरक़रार रखते हुए स्थितियों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है।

नीना पॉल की कहानी आख़िरी गीत पिता द्वारा अपने परिवार को छोड़ जाने के बाद पुत्री के दिल में पिता के प्रति नकारात्मक भावनाओं का अंबार लग जाता है। किन हालात में पुत्री का हृदय परिवर्तन होता है और ग़लतफ़हमियां किस ट्विस्ट से दूर होती हैं, यही कहानी का सार है। भारतीय उच्चायोग की पद्मजा के अनुसार कहानी में यूनिवर्सल अपील के संवाद हैं। कैलाश बुधवार का मानना था कि कहानी रोचक है, बांधती है, और इसके पात्र और दृश्य स्वाभाविक एवं सजीव हैं, किंतु पुत्री का पिता के प्रति अचानक हृदय परिवर्तन कैसे हो जाता है, कहानी नहीं बता पाती।

आनंद कुमार के अनुसार कहानी में पिता पुत्री की संवादहीनता की स्थिति बहुत गहराई से दिखाई गई है, परिवर्तन बहुत सूक्ष्म ढंग से दिखाया गया है। एसके धामी को कहानी की भाषा और बिंब बहुत पसंद आए। अरुणा अजितसरिया के अनुसार कहानी के अंत का संकेत बहुत कलात्मकता से दिया गया है, संबंधों की जटिलता की गुत्थियों को कहानी खोलती है और संपूर्ण रूप से कहानी सफल है। ज़कीया ज़ुबैरी के अनुसार कहानी की कई परतें हैं। कहानी की भाषा कवितामई है और कहानी भीतर तक उतरने की क्षमता रखती है। अध्यक्ष पद से बोलते हुए प्रोफेसर अमीन मुग़ल ने कहा कि कहानी की ज़बान बोलचाल की ज़बान है। पिता पुत्री में दो तरह के रिश्ता सामने आता है–एक अनुवांशिक और दूसरा कला के माध्यम से। कहानी का अंत कहानी में सघन ऊर्जा भर देता है।

ज़कीया ज़ुबैरी की कहानी मन की सांकल मां और बेटे के संबंधों पर आधारित एक कम्पलेक्स कहानी है। बचपन में बेटे के लिये मार खाने वाली मां आज अपने ही बेटे के हाथों झिंझोड़ी जा चुकी है, उसके बीमार बदन पर नील उभर रहे हैं, दोनों के संबंध उस कगार पर पहुंच गये हैं कि मां के मन में डर बैठ गया है कि बेटा शायद रात को सोते हुए उसका कत्ल ही न कर बैठे, वह उठती है और कमरे की सांकल लगा देती है, सांकल एक ख़ूबसूरत बिंब की तरह उभर कर आती है। कैलाश बुधवार का मानना था कि कहानी स्तब्धकारी है, मानवीय संवेदनाएं हमें झिंझोड़ देती हैं, जैसे माइक्रोस्कोप लगा कर लेखिका ने रिश्तों को हमारे सामने उकेर कर रख दिया है। कहानी भाषा, प्रवाह, स्ट्रक्चर सभी में सफल है। जिल, नीरा और पति का चित्रण भी मुख्य पात्रों की ही तरह सजीव है। पद्मजा जी का मानना था कि इस कहानी से उबरने में उन्हें समय लगेगा, कहानी में यथार्थ का चित्रण है जो कि सजीव भी है और वास्तविक भी। साहित्य के लिये सवाल खड़े करना बहुत ज़रूरी है और यह कहानी सवाल खड़े करती है।

आसिफ़ जीलानी का कहना था कि बीच का बच्चा हमेशा एक डिफ़िकल्ट बच्चा होता है, जिस तरह ज़कीया ज़ुबैरी ने नारी के मन का दर्द दिखाया है, वह केवल एक नारी ही दिखा सकती थी, कहानी मनोवैज्ञानिक स्तर पर रिश्तों की पड़ताल करती है। हॉलैंड से आईं पंजाबी साहित्यकार अमरज्योति ने मां और पुत्र के संबंधों के विषय में बात करते हुए कहा कि कहानी की यात्रा महत्वपूर्ण है, प्याज़ से निकले आंसुओं का धनिये के बीज से इलाज करने वाला पुत्र अपनी मां की आंखें दर्द के आंसुओं से भर देता है, रिश्तों की प्रस्तुति लगभग महान है। आंनद कुमार का कहना था कि मां बेटे के संबंधों को बहुत ख़ूबसूरती से उकेरा गया है। वहीं दीप्ति शर्मा का कहना था कि कहानी में दर्द का सटीक चित्रण है, मगर आवश्यक था कि मां अपने अधिकार की घोषणा करती और पुत्र को उसका सही स्थान बता देती। एसके धामी को लगा जैसे कि वे ब्रिटेन के किसी भी एशियन घर की फ़िल्म देख रहे हों, जो वे अख़बारों में पढ़ते हैं, लोगों से बातों में सुनते हैं, वह सब यह कहानी बहुत खूबसूरती से दिखाती है।

अरुणा अजितसरिया का मानना था कि कहानी में तीन पीढ़ियों का दर्द है–सास, मां और जिल यानि कि बहू। यह देशकाल के बाहर की कहानी है। ज़कीया ज़ुबैरी को एक सशक्त कहानी के लिये बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि यह एक नारी के आंतरिक दर्द की कहानी है। हम सीमा के दर्द को समझ सकते हैं। देवी पारेख को लगा कि ऐसी कहानी केवल एक मां ही लिख सकती है। प्रोफेसर अमीन मुग़ल का कहना था कि यह मां और पुत्र के संबंधों की एक ख़ौफ़नाक कहानी है। सांकल का बिंब इस कहानी का सबसे सबल पक्ष है। यह कहानी पति पत्नी और मां पुत्र के संबंधों से कहीं आगे बढ़ कर दो लिंगों की संगतता (कॉम्पेटेबिलिटी) पर प्रश्न उठाती है। उन्हें सांकल का बिंब सीधा इबसन के नाटक के चरित्र नोरा तक ले गया जब वह दरवाज़ा बंद करती है तो लगता है कि पूरे यूरोप की महिलाओं ने दरवाज़ा बंद कर दिया हो। कहानी अपने भीतर एक निर्दयी सच लिये है। कहानी का स्टाइल, टोन, बातचीत का अंदाज़ सभी कहानी को उच्च श्रेणी की कहानी बनाते हैं।

गोष्ठी में प्रोफेसर अमीन मुग़ल, कैलाश बुधवार अध्यक्ष–कथा यूके, पद्मजा भारतीय उच्चायोग, आनंद कुमार हिंदी एवं संस्कृति अधिकारी–भारतीय उच्चायोग, एसके धामी भारतीय उच्चायोग, आसिफ़ जीलानी बीबीसी रेडियो, प्रोफेसर हबीब ज़ुबैरी, मोहसिना जीलानी, देवी पारेख, सुरेंद्र कुमार, ओम कटारिया, परी कटारिया, पायल सुर्वे लूटन, डॉ अमर ज्योति पंजाबी साहित्यकार, डॉ बोस आदि शामिल थे। कार्यक्रम के मेज़बान थे अरुणा एवं नंद अजितसरिया। संचालन तेजेंद्र शर्मा ने किया।

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