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नई दिल्ली। भारत के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समाचारों की स्वतंत्र वेबसाइटों और स्वतंत्र रूप से काम कर रहे ब्लॉगरों की स्वतंत्रता पर चुपचाप अंकुश लगाने के लिए लाए गए नए आईटी नियमों पर उंगलियां उठ रही हैं। इनमें यह कहा जा रहा है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी पर भारत सरकार ने गुमराह करके एक कानून बनाकर ऐसा हमला किया है जिसमें वेबसाइटों और ब्लॉगरों की आज़ादी छीन ली गई है। इसे तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के चिट्ठी पत्री अधिनियम की शक्ल में देखा जा रहा है। समाचार पत्रों में भी इस प्रकार की ख़बरें प्रकाशित हुई हैं। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने इनके बारे में स्पष्टीकरण तो जारी किया है लेकिन यह स्पष्टीकरण स्थिति स्पष्ट नहीं कर पाया है जिससे लगता है कि सरकार ने तथ्यों को छिपाने की कोशिश की है और समाचार पत्रों में जो आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं वे सही हैं।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 43ए के संबंध में छपी खबरों के तथ्यों के बारे में सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने स्पष्टीकरण दिया है। संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, ने स्थिति स्पष्ट की है कि ये नियम संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी तक मुक्त पहुंच उपलब्ध नहीं कराते हैं। इन नियमों के स्वरूप एवं व्यावहारिकता को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट किया गया है। इन नियमों का आशय संवेदनशील व्यक्तिगत सूचना को संरक्षण प्रदान करना है और ये सरकारी एजेंसियों को संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी तक मुक्त पहुंच बनाने की अनुचित शक्तियां प्रदान नहीं करते हैं। इन नियमों को अंतिम रूप देने से पूर्व जनता से व्यापक परामर्श किया गया है और नियमों को उद्योग संस्था ने विधिवत समर्थन प्रदान किया है।
स्पष्ट किया गया है कि धारा 43ए के अंतर्गत नियम सूचना को निजता एवं प्रकट करने की नीति उपलब्ध कराने के लिए नैगमिक निकाय पर दायित्व सौंपता है। ऐसी किसी संवेदनशील व्यक्तिगत सामग्री या जानकारी का नैगमिक निकाय द्वारा किसी तीसरे पक्ष को प्रकट करने के लिए ऐसी जानकारी उपलब्ध कराने वाले व्यक्ति की पूर्व अनुमति लेना आवश्यक होगा। नियमों में जांच पड़ताल स्वाभाविक रूप से उपलब्ध है- (अ) सरकारी एजेंसियां ऐसी किसी जानकारी को पहचान का सत्यापन करने या साइबर घटनाओं, अपराधों के अभियोजन एवं दंडित करने सहित निवारण, खोजबीन एवं जांच पड़ताल करने के लिए प्राप्त करने के लिए कानून के अंतर्गत अधिदेश प्राप्त है, (ब) ऐसी जानकारी प्राप्त करने वाली किसी एजेंसी को आश्वासन देना होता है कि इस प्रकार प्राप्त जानकारी न तो प्रकाशित की जायेगी और न ही किसी के साथ बांटी जायेगी। सरकारी एजेंसियों से कानूनी कार्याविधि एवं प्रक्रिया का अनुपालन अपेक्षित होता है।
यह स्पष्टीकरण इस बात का स्पष्ट संकेत भी देता है कि इस कानून में ऑनलाइन मीडिया की आज़ादी को चालाकी से नियंत्रित करने की कोशिश की गई है क्योंकि भारत सरकार यह अच्छी तरह जानती है कि ऑनलाइन मीडिया शक्तिशाली रूप से और तेजी से उभर रहा है जिसमें प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से ज्यादा तेजी है और इसका असर बहुत ज्यादा है। इसको नियंत्रित करने के लिए यह नियम बनाए गए हैं जो संदेह से देखे जा रहे हैं और जिनका मीडिया में विरोध हो रहा है।