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नई दिल्ली। कांसटिट्यूशन क्लब में भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने पर्वतीय राज्यों के प्रति केंद्र के भेदभाव पूर्ण और सौतेले व्यवहार को जोरदार ढंग से उठाया और कहा कि यह व्यवहार भारत के संघीय ढांचे पर प्रहार है और नवोदित राज्य के विकास की दृष्टि से इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की एक जैसी परिस्थितियों का जिक्र करते हुए निशंक ने कहा कि राज्य के गठन के समय उसे उत्तर पूर्वी राज्यों और सिक्किम की भांति विशेष दर्जा दिया गया था और सभी केंद्र पोषित योजनाओं में 90:10 के अनुपात में वित्त पोषण की मांग की जाती रही है परंतु इस राज्य को केंद्र की हमदर्दी नहीं मिली। हर योजना में मनमाने ढंग से केंद्र ने वित्त पोषण करते समय मानकों का ध्यान नहीं रखा।
निशंक ने कहा कि उत्तराखंड में गरीबी से ऊपर (एपीएल) आय वर्ग के उपभोक्ताओं को निर्धारित मानक 35 किलोग्राम खाद्यान्न (20 किलोग्राम गेंहू एवं 15 किलोग्राम चावल) के मुकाबले लगभग 47314 मीट्रिक टन खाद्यान्न कम मिल रहा है। राज्य की आवश्यकता लगभग 64404 मीट्रिक टन की है जबकि प्रदेश को केवल 17090 मीट्रिक टन खाद्यान्न मिल रहा है, इससे राज्य की जनता में गलतफहमियां फैलती हैं, खाद्यान्न कोटे में कटौती पर राज्य सरकार का कोई जोर नहीं है।
उन्होंने कहा कि गंगा का उद्गम उत्तराखंड में है और कायदे में गंगा सागर तक खनन और चुगान के कार्यों से होने वाली राजकीय आय से उत्तराखंड राज्य को एक निर्धारित रायल्टी दी जानी चाहिए क्योंकि कीमती पत्थर और रेत हिमालय से ही बहकर विभिन्न राज्यों में बहते हुए जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह हमारी संपदा है, इससे लाभ पाने का हक राज्य के नागरिकों को है मगर केंद्र इस पर भी कोई ध्यान नहीं दे रहा बल्कि इसके उलट वन एवं राजस्व क्षेत्रों में रेता बजरी के चुगान पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है जिससे राज्य में निर्माण सामग्री की कीमतें अनियंत्रित गति से बढ़ गई हैं।
निशंक ने सुशासन के मुद्दे पर कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों को केंद्र ने औद्योगिक पैकेज की सीमा 1997 से 2007 के मुकाबले बढ़ाकर 2017 कर दी जबकि उत्तराखंड को 2003-2013 तक दिये गये पैकेज को 2010 में ही खत्म कर दिया गया। इस बारे में विधान सभा में सर्वदलीय संकल्प पारित किया गया। संपूर्ण मंत्रिपरिषद ने दिल्ली में प्रधानमंत्री सहित महत्वपूर्ण पदाधिकारियों से मुलाकात की। राज्य के पांचों कांग्रेसी सांसदों ने पैकेज समाप्त न करने का समर्थन किया परंतु तबभी औद्योगिक पैकेज की अवधि बढ़ाई नहीं गई।
निशंक ने कहा कि टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड में उत्तराखंड सरकार को 25 प्रतिशत अंश पूंजी हस्तांतरित करने का प्रकरण लंबित है। भविष्य में इस अंश पूंजी के सापेक्ष 220 मेगावाट विद्युत को उत्तर प्रदेश के बजाय उत्तराखंड को हस्तांतरित करने की मांग भी की गई है मगर इस बारे में केंद्र अपने स्तर से न कोई दिलचस्पी दिखा रहा है और न कोई कार्यवाही ही करता नज़र आ रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने ऊर्जा मंत्रालय से राज्य की आवश्यकता के मुताबिक कोल ब्लाक आवंटित करने की मांग भी की है, जिस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है। उन्होंने यह भी कहा कि छोटे और संसाधन विहीन नये राज्यों के मुकाबले अशांत, उग्र और पुराने समय से समस्याग्रस्त राज्यों को लगातार मदद देने से एक गलत संदेश जाता है, जो कानून व्यवस्था के हित में नहीं है।
मुख्यमंत्री ने और भी बहुत से मुद्दों पर राज्य की उपेक्षा का जिक्र करते हुए कहा कि गत वर्षाकाल में राज्य को भारी दैवीय आपदा का सामना करना पड़ा था जिसमें राज्य के लोगों की भारी जान-माल की क्षति हुई है, विस्तृत आंकलन के बाद केंद्र को 21500 करोड़ रुपए का प्रस्ताव मदद के लिए भेजा गया था, जिसके अनुमोदन और आंकलन पर भारत सरकार की ही संयुक्त निरीक्षण टीम ने सहमति दी थी परंतु राज्य को केवल 624 करोड़ रुपए की सहायता राशि प्राप्त हुई, इसके बाद किसी प्रकार की भी सुनवाई किसी भी स्तर पर नहीं हुई। उन्होंने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से इन विषयों पर उच्च स्तर पर कार्रवाई करने का अनुरोध किया।