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लखनऊ। उत्तर प्रदेश कॉडर का एक आईपीएस अधिकारी राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के लिए फुटबॉल बना हुआ है। इस अधिकारी का कसूर यह है कि वह शासन में अपनी बात कहने की हिम्मत क्यों करता है और बिन मांगे सुधार के सुझाव क्यों देता है? वह कभी मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात करता है तो कभी सरकारी सेवा नियमावलियों में विसंगियों की बात करता है। वह नौकरी करना चाहता है या सामाजिक जीवन में सक्रिय रहना चाहता है? वह अपने उच्चाधिकारियों के फैसलों में कमियां निकालता है और इस बात का ख्याल नहीं रखता है कि वह सरकारी सेवक भी है और उसकी अपनी सीमाएं हैं। यह अधिकारी इन सब बातों का ख्याल तो रखता है लेकिन वह जो कहने और करने की कोशिश करता है तो उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है। ऐसे में यह अधिकारी क्या करे? यह आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर है जिसने इस तरह की कई बातों को लेकर अब राज्य के पुलिस अधिकारियों एवं शासन की नाक में दम कर रखा है। पुलिस एवं राज्य सरकार के अधिकारी अमिताभ ठाकुर पर आरोप लगाते रहते हैं मगर कुछ सुनने को तैयार ही नहीं हैं।अमिताभ ठाकुर ने राज्य के डीजीपी और प्रमुख सचिव गृह के लिए फिर एक समस्या खड़ी कर दी है। उसने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में उत्तर प्रदेश शासन के प्रमुख सचिव गृह कुंवर फ़तेह बहादुर और राज्य के पुलिस महानिदेशक करमवीर सिंह के विरुद्ध एक अवमानना याचिका दायर की है। यह अवमानना याचिका उनके दो साल के अध्ययन अवकाश से संबंधित है। अमिताभ ठाकुर ने आईआईएम लखनऊ में अध्ययन के लिए अवकाश की अनुमति मांगी थी जो नहीं मिली। इस संबंध में मूल याचिका संख्या 238/ 2010 में कैट, लखनऊ ने 7 जुलाई 2010 को उत्तर प्रदेश द्वारा अमिताभ के अध्ययन अवकाश को ख़ारिज करने के कारणों को गलत बताते हुए राज्य सरकार को यह आदेश भी दिए थे कि वह अध्ययन अवकाश के विषय में नियमानुसार नए सिरे से निर्णय ले।अमिताभ ठाकुर ने राज्य के डीजीपी और प्रमुख सचिव गृह के लिए फिर एक समस्या खड़ी कर दी है। उसने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में उत्तर प्रदेश शासन के प्रमुख सचिव गृह कुंवर फ़तेह बहादुर और राज्य के पुलिस महानिदेशक करमवीर सिंह के विरुद्ध एक अवमानना याचिका दायर की है। यह अवमानना याचिका उनके दो साल के अध्ययन अवकाश से संबंधित है। अमिताभ ठाकुर ने आईआईएम लखनऊ में अध्ययन के लिए अवकाश की अनुमति मांगी थी जो नहीं मिली। इस संबंध में मूल याचिका संख्या 238/ 2010 में कैट लखनऊ ने 7 जुलाई 2010 को उत्तर प्रदेश द्वारा अमिताभ के अध्ययन अवकाश को ख़ारिज करने के कारणों को गलत बताते हुए राज्य सरकार को यह आदेश भी दिए थे कि वह अध्ययन अवकाश के विषय में नियमानुसार नए सिरे से निर्णय ले।अमिताभ ने उच्च न्यायालय का यह आदेश 11 मार्च को राज्य सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया मगर अब तक इस पर भी कोई निर्णय नहीं हुआ है। दो महीने की अवधि बीत जाने पर अमिताभ ठाकुर ने फ़तेह बहादुर और करमवीर सिंह के विरुद्ध अवमानना याचिका दायर की है। इस मामले में यह सातवां कोर्ट केस है। अमिताभ ठाकुर अपने दो साल के असाधारण अवकाश के बाद वापस नौकरी में आ भी चुके हैं पर प्रकरण अभी तक चल ही रहा है। इस अधिकारी को अपने सही काम के लिए जिस तरह चक्कर लगाने पड़ रहे हैं उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि निचले स्तर के अधिकारियों और कर्मचारियों के सामने किस प्रकार की दिक्कतें आती होंगी। अमिताभ ठाकुर सक्षम हैं इसलिए कुव्यवस्था से जूझ रहे हैं। यदि ऐसे अधिकारी न्याय नहीं पा सकते तो आम आदमी की क्या हैसियत है?