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देहरादून। मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने गुरूवार को दून विश्वविद्यालय में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय एवं उत्तरांचल संस्कृत अकादमी की ओर से आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय ज्योतिष शोध संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए कहा है कि आधुनिक युग की मांग के अनुरूप ज्योतिष विद्या को वैज्ञानिक तरीके से स्थापित करना होगा। उन्होंने कहा कि आधा अधूरा ज्ञान रखने वालों के कारण ज्योतिष विद्या को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने मुक्त विश्वविद्यालय और संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपतियों को ज्योतिष शोध की दिशा में कमेटी गठित करने के निर्देश भी दिये।
मुख्यमंत्री ने कहा कि बदरी-केदार मंदिर समिति की सहायता से ज्योतिष एवं संस्कृत शोध को बढ़ावा देने के लिए प्राच्य विद्या संस्थान के गठन पर भी विचार किया जा रहा है। भारतीय ज्योतिष सैकड़ों वर्षो से प्रामाणिकता के साथ गणना करता चला आ रहा है, परंतु इस ज्ञान को भुला देने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है। संस्कृत और ज्योतिष दोनों ही क्षेत्रों में पठन-पाठन एवं शोध को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, उत्तराखंड में संस्कृत को द्वितीय राजभाषा का दर्जा भी दिया गया है।
समारोह के अध्यक्ष प्रोफेसर वाचस्पति उपाध्याय ने कहा कि भारतीय ज्योतिष ज्ञान के लिए एक रोड मैप की आवश्यकता है। ज्ञान विज्ञान की विभिन्न परंपराओं को अभिलेखीकृत किया जाना भी जरूरी है। उन्होंने ज्योतिष ज्ञान के समक्ष उत्पन्न कई व्यवहारिक चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि पंचांगों सहित विभिन्न सिद्धांतों का भी एकीकरण होना चाहिए। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर विनय पाठक ने कहा कि वैदिक ज्ञान का डिजिटलाइजेशन जरूरी है, जिससे इंटरनेट पर भी भारतीय ज्योतिष, वेद, पुराणों में दर्ज जानकारियों तक पहुंचा जा सके।
उद्घाटन सत्र में अखिल भारतीय ज्योतिष शोध संगोष्ठी पर प्रकाशित पत्रिका ज्योतिर्मयी शोध पत्रिका का विमोचन किया गया। मुख्यमंत्री ने उत्तराखंड ज्योतिष नामक वेबसाइट का उद्घाटन भी किया। कार्यक्रम में निशंक और शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रमजी महाराज को साहित्य एवं संस्कृत में विशेष योगदान के लिए सम्मानित किया गया। सम्मेलन में कृषि मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ सुधारानी पांडेय, दून विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ गिरिजेश पंत सहित बड़ी संख्या में विषय विशेषज्ञ उपस्थित थे।