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आसाम में आदिवासियों पर कहर

राजकुमार बरूआ

Friday 07 June 2013 01:38:36 AM

आदिवासी-aboriginal

गुवाहाटी। भारत के गेटवे कहे जाने वाले असम की राजधानी गुवाहाटी में पिछले साल 24 नवंबर को चाय बागानों में मजदूरी करने वाले आदिवासियों पर जो बर्बर जुल्म हुए, उन्हें देखकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं। उस रोज यहां जुल्म ढाने वाली पुलिस नहीं थी, बल्कि गुवाहाटी के लोग थे जो आदिवासियों पर रुक-रुक कर लाठियां, लात, घूंसे और जूते चला रहे थे। पिटने वाले आदिवासी उनसे रहम की भीख मांग रहे थे तो उनकी और ज्यादा निर्मम पिटाई शुरू हो जाती थी। यह घटना मानवता पर कलंक की एक ज्वलंत मिसाल है। देश की आजादी के आंदोलन की कहानियों में सुना था कि अंग्रेज बहुत जुल्म ढाते थे, वीभत्स यातनाएं देते थे। लेकिन गुवाहाटी में देखकर लगा कि अंग्रेजों के जुल्म इनसे बहुत पीछे रहे होंगे।
पूरा देश असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई से पूछ रहा है कि उनके यहां ये क्या हो रहा है? उनको धिक्कार रहा है कि उनकी सरकार में कभी औरत को निर्वस्त्र करके सड़कों पर घुमाया जाता है और कभी अपना जीवन यापन अधिकार मांगने वाले आदिवासियों पर कहर बरपाया जाता है। इन आदिवासियों पर आरोप था कि उन्होंने अपनी रैली करने के बहाने शहर में हिंसा फैलाई, बाजार में लूट-पाट की, जिससे गुस्साए लोगों ने उन्हें पीटा। एक शक यह भी था, कि इनकी रैली में असम के चरमपंथी उल्फा उग्रवादी शामिल थे, जो शहर में हिंसा फैला रहे हैं। लेकिन जिन पर कहर बरपा था वे तो चाय बागानों के दीन-हीन मजदूर ही थे। असम के चाय बागानों में काम करने वाले आदिवासी मजदूरों की चार जातियां हैं, जिन्हें ये मजदूर अनुसूचित जनजातियों में शामिल करने की मांग करते रहे हैं।
असम के चाय बागानो में काम करने वाले आदिवासी मजदूरों की लंबे समय से मांग रही है कि उन्हें राज्य में अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाए ताकि वह भी आरक्षित वर्ग को मिलने वाले लाभ उठा सकें। इन आदिवासियों की आर्थिक हालत कोई देख ले तो उसे देखकर भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सभी चाय बागान मालिक इनका जिस निर्ममता से शोषण करते हैं उससे उनका कोई भी विद्रोह करना स्वाभाविक है। ये ही मजदूर उल्फा की बंदूकों की नोक पर रहते हैं और ये ही बागान मालिकों के रहमो करम पर जिंदा हैं। इनकी जो मांगे हैं उन्हें मान लेने का मतलब है कि उनके आर्थिक शोषण पर अंकुश लग जाएगा और ऐसा करके असम सरकार बागान मालिकों को नाराज नहीं करना चाहती। इसलिए असम सरकार को इनकी यह मांग मंजूर नहीं है। आदिवासी बागान मजदूर लंबे समय से आंदोलन चला रहे हैं और उनकी कोई नहीं सुन रहा है।
यह देखना होगा कि उस दिन वह इतने आक्रोश में क्यों आए कि गुवाहाटी की सड़कों पर उत्पात मचाने का उनके ऊपर आरोप लगा। जाहिर है कि यह उनकी
पीढ़ियों से चली आ रही एक समस्या है जिसका किसी सरकार ने समाधान नहीं किया और आज उनके बर्दाश्त की क्षमता जवाब दे गयी। सरकार का ध्यान खीचने के लिए उन्होंने गुवाहाटी में इकट्ठा होकर एक रैली करने की कोशिश की थी जिसकी गोगोई सरकार ने अनुमति नहीं दी। लेकिन आदिवासी अपनी एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए और प्रशासन से रैली की अनुमति नहीं मिलने और अपनी लगातार उपेक्षा के कारण आक्रोशित हो गए जिसके बाद शहर में एक हंगामा खड़ा हो गया। लूटपाट हुई। इससे कुपित होकर असम के लोगों ने आदिवासियों की वो जमकर पिटाई की कि अब शायद ही आदिवासी मजदूर गुवाहाटी की सड़कों पर नजर आएं।
जब लोग इन आदिवासियों की पिटाई कर रहे थे उस समय पुलिस पूरी तरह मूकदर्शक बनी हुई थी। वह उन्हें पिटते और लहुलुहान होते सड़कों पर लाशों की तरह गिरते हुए देख रही थी। असम सरकार कह रही है कि उस दिन की हिंसा में केवल एक आदिवासी की मौत हुई है लेकिन गैर सरकारी सूत्र बताते हैं कि एक नहीं बल्कि दर्जन से ज्यादा आदिवासी मजदूर गुवाहाटी के नागरिकों की पिटाई से मरे हैं जिनकी लाश ढोने का काम भी गुवाहाटी पुलिस ने किया। असम सरकार के प्रवक्ता हेमंत विश्वकर्मा इस घटना को छिपाने की कोशिश करते हैं, लेकिन इसका सच किसी प्रत्यक्ष दर्शी ने अपने कैमरे में भी लोड कर लिया और किसी को इसकी भनक भी नहीं लगने दी। तिरपन दिन बाद यह घटना सामने आयी। यह सच लोगों के सामने दिखाया जा रहा है कि आदिवासी मजदूरों पर लाठियां बरस रही हैं, बेरहम मार से गिरे और बेहोश हुए लोगों को बार-बार मारा जा रहा है, उनके सर जूतों से कुचले जा रहे हैं। उन्हें उठा-उठाकर मारा जा रहा है और एक गाड़ी में भूसे की तरह से भरकर उन्हें कहीं ले जाया जा रहा है।
मजे की बात है कि रैली में हिंसा की घटना की जांच करने जो आयोग गुवाहाटी गया था, उसे इस घटना का कोई गवाह ही नहीं मिला। सरकार के प्रवक्ता ने भी इस घटना से इनकार किया। मगर अब सरकार कह रही है कि उसने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए कुछ लोगों की गिरफ्तारी की है। असम सरकार ने इस घटना की सीबीआई से भी जांच कराने की बात कही थी लेकिन आज तक सीबीआई का दल नहीं पहुंचा। मगर जिस प्रकार आदिवासी मजदूरों की असम सरकार के सचिवालय के सामने जमकर पिटाई की गयी उस पर वह अभी भी नहीं बोल रही है। भारत के भूतपूर्व न्यायाधीश वीएन खरे ने इस घटना को असम में जंगल राज बताया है। राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष पूर्णिमा आडवाणी ने कहा है कि उन्होंने इस घटना को लेकर असम के मुख्यमंत्री तरुण गो
गोई को पत्र भी लिखे हैं लेकिन गोगोई सरकार ने कुछ नहीं किया। गुवाहाटी की सड़कों पर यह घिनौना कृत्य हुआ है जिस पर सरकार चुप है।

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