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दुनिया के लिए हिंदी जरूरी-उच्चायुक्त

मगर भारत में युवा पीढ़ी हिंदी साहित्य से दूर

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कथा यूके-katha uk

लंदन। ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त नलिन सूरी ने ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ़ कॉमंस में हिंदी लेखक विकास कुमार झा को उनके कथा उपन्यास 'मैकलुस्कीगंज' के लिये 'सत्रहवां अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान' प्रदान किया। इस अवसर पर उन्होंने लेस्टर निवासी ब्रिटिश हिंदी लेखिका नीना पॉल को बारहवां पद्मानंद साहित्य सम्मान भी प्रदान किया। ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सांसद वीरेंद्र शर्मा ने सम्मान समारोह की मेज़बानी की।

उच्चायुक्त नलिन सूरी ने विकास कुमार झा एवं नीना पॉल को बधाई देते हुए कहा, 'हिंदी अब आहिस्ता-आहिस्ता विश्व भाषा का रूप ग्रहण कर रही है। बाज़ार को इस बात की ख़बर लग चुकी है कि यदि भारत में पांव जमाने हैं तो हिंदी का ज्ञान ज़रूरी है। मुझे बताया गया है कि ब्रिटेन में निजी स्तर पर और संस्थागत स्तर पर हिंदी के शिक्षण का काम चल रहा है और विदेशी भी बोलचाल की हिंदी सीखने का प्रयास कर रहे हैं। यहां के विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई हो रही है। भारतीय उच्चायोग का प्रयास रहेगा कि हिंदी स्कूली स्तर पर ब्रिटेन में अपनी वापसी दर्ज कर सके।'

उन्होंने कथा यूके को 17वें सम्मान समारोह के लिये बधाई देते हुए कहा कि कथा यूके को यह सम्मान शुरू किये 17 वर्ष हो गए हैं, किसी भी सम्मान की प्रतिष्ठा में उसकी निरंतरता और पारदर्शिता महत्वपूर्ण होती है, इस कसौटी पर भी कथा यूके सम्मान खरे उतरते हैं। उन्होंने कहा कि मैं तेजेंद्र शर्मा और उनकी पूरी टीम को इस अवसर पर बधाई देना चाहूंगा और उन्हें यह आश्वासन देना चाहूंगा कि हिंदी भाषा और साहित्य से जुड़े कार्यक्रमों के लिये उन्हें उच्चायोग का सहयोग हमेशा ही मिलता रहेगा।

सम्मान ग्रहण करते हुए विकास कुमार झा ने कहा कि एक कवि या लेखक आत्मा के कॉफ़ी हाउस का परिचारक ही होता है, आत्मा के अदृश्य कॉफ़ी हाउस का मैं एक अनुशासित वेटर हूं और अगला आदेश लेने के लिये प्रतीक्षा में हूं। अपने उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि 'मैकलुस्कीगंज' मेरे लिये जागी आंखों का सपना है, मेरे लिये यह मेरे बचपन के दोस्त की तरह है जिसके संग नीम दोपहरियों में आम, अमरूद, जामुन के पेड़ों पर चढ़ने का सुखद रोमांच मैंने साझा किया है।

ब्रिटिश संसद के ऊपरी सदन के सदस्य लॉर्ड किंग का कहना था कि मैं इस कार्यक्रम को देख कर इतना अभिभूत हूं कि मुझे लगता है कि युवा पीढ़ी तक तो हमें हिंदी ले जाना ही है, अब मेरी पीढ़ी के लोगों को भी हिंदी पढ़ना और लिखना सीख लेना चाहिये। उन्होंने हिंदी और पंजाबी भाषा को रोमन लिपि में लिखने पर चिंता जताई।

विकास कुमार झा के उपन्यास पर काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी का कहना था कि हिंदी में शोध करके लिखने की परंपरा विकसित नहीं हो पाई है मगर विकास कुमार झा ने गहरा शोध करने के बाद मैकलुस्‍कीगंज को लिखा है, शायद यह उपन्यास इस परंपरा को स्थापित करने में सफल हो पाए, सन् 1911 में ब्रिटिश सरकार ने एंग्लो-इंडियन रेस को मान्यता दी थी और आज 2011 में यानि कि ठीक सौ साल बाद हम यहां ब्रिटिश संसद में भारत के एकमात्र एंग्लो-इंडियन गांव मैकलुस्कीगंज के जीवन पर आधारित उपन्यास को सम्मानित कर रहे हैं।

साउथहॉल से लेबर पार्टी के सांसद वीरेंद्र शर्मा ने कहा कि ब्रिटेन में कथा यूके की मुहिम से हिंदी को ब्रिटेन में पांव जमाने में सहायता मिलेगी, जिस प्रकार ब्रिटेन में रचे जा रहे हिंदी साहित्य को यहां ब्रिटिश संसद में सम्मानित किया जाता है, उससे हमारे स्थानीय लेखकों का उत्साह बढ़ेगा और भारतीय पाठकों को ब्रिटेन में रचे जा रहे साहित्य को आंकने का अवसर मिलेगा।

कथा यूके के महासचिव और कथाकार तेजेंद्र शर्मा ने मैकलुस्कीगंज एवं तलाश उपन्यासों की चयन प्रक्रिया पर बात करते हुए कहा कि ब्रिटेन की युवा पीढ़ी को हिंदी भाषा की ओर आकर्षित करने के लिये वे शैलेंद्र और साहिर लुधियानवी जैसे फ़िल्मी साहित्यकारों पर बनाए गये अपने पॉवर पॉइंट प्रेज़ेंटेशन को लेकर ब्रिटेन के भिन्न-भिन्न शहरों में जाएंगे। उन्होंने चिंता जताई कि भारत में भी युवा पीढ़ी हिंदी साहित्य से दूर होती दिखाई दे रही है।

कथा यूके के नव-निर्वाचित अध्यक्ष कैलाश बुधवार ने कहा कि उन्हें ब्रिटेन में हिंदी के भविष्य की इतनी चिंता नहीं जितनी कि भारत की युवा पीढ़ी को लेकर है। उनका मानना था कि यह सम्मान भाषा का सम्मान है, भाषा एक दीए की तरह है और कथा यूके यह दीया ब्रिटेन में जलाए हुए है, इस दीये की रौशनी ब्रिटेन की संसद के माध्यम से पूरी दुनियां में फैलेगी।

भारतीय उच्चायोग की पद्मजा ने कहा, 'मैकलुस्कीगंज अद्भुत भाषा में लिखा एक ऐसा आंचलिक उपन्यास है जो कि वैश्विक उपन्यास की अनुभूति देता है, उपन्यास का मुख्य मुद्दा एंग्लो-इंडियन समाज का दर्द है, मगर उपन्यास उससे कहीं ऊंचा उठकर पूरे विश्व के दर्द को प्रस्तुत करता है, मैकलुस्कीगंज जन्म से एक उपन्यास है और कर्म से एक शोध ग्रन्थ। इस उपन्यास में झारखंड की जनजातियों के बारे में भी विस्तार से लिखा गया है।

नीना पॉल के उपन्यास तलाश पर अपना लेख पढ़ते हुए नॉटिंघम की कवियत्री जय वर्मा ने कहा कि तलाश के पात्रों में प्रेम जीवन का अहम् हिस्सा है, जीवन के संघर्ष को एक चुनौती समझ कर वे एक कदम आगे चलते हैं और दो कदम पीछे हटते प्रतीत होते हैं, ऐसा महसूस होता है कि हर पात्र को किसी न किसी की निरंतर तलाश है, प्यार को एक बंदिश न मानकर त्याग और क़ुर्बानी की झलक इनमें दिखायी पड़ती है। नीना पॉल ने कथा यूके के निर्णायक मंडल को धन्यवाद देते हुए कहा कि उपन्यास मेरे नज़रों में कल्पना, जज़्बात और भावनाओं का संगम है, कभी-कभी लेखनी का दिल भी इतना भावुक हो उठता है कि लिखने को मजबूर कर देता है, शायद यही कारण है कि मेरी कहानियों को भावनापूर्ण कहा जाता है, बिना भावनाओं के क़लम चलती भी तो नहीं है।

नीना पॉल का मानपत्र मुंबई से आईं मधु अरोड़ा ने पढ़ा और विकास कुमार झा का मानपत्र पढ़ा दीप्ति शर्मा ने। कार्यक्रम का संचालन तेजेंद्र शर्मा ने किया। इस अवसर पर विशेष रूप से प्रकाशित किये गये प्रवासी संसार के कहानी विशेषांक (अतिथि संपादक–तेजेंद्र शर्मा) की प्रतियां संपादक राकेश पांडेय ने मंचासीन अतिथियों को दीं।

कार्यक्रम में आसिफ़ इब्राहिम (मंत्री समन्वय), राकेश शर्मा (उप-सचिव हिंदी), आनंद कुमार (हिंदी एवं संस्कृति अधिकारी), गौरीशंकर (उप-निदेशक नेहरू सेंटर), मॉस्को से लुडमिला खोखलोवा और बॉरिस ज़ाख़ारीन, भारत से परमानंद पांचाल, कृष्ण दत्त पालीवाल, केशरी नाथ त्रिपाठी, दाऊजी गुप्त, ओंकारेश्वर पांडेय, राकेश पांडेय (संपादक–प्रवासी संसार), गगन शर्मा, रूही सिंह, डॉ फ़रीदा, डॉ भारद्वाज, पूर्व पद्मानंद साहित्य सम्मान विजेता मोहन राणा, उषा राजे सक्सेना, दिव्या माथुर, काउंसलर केसी मोहन, श्याम नारायण पांडेय, शिखा वार्ष्णेय, अरुणा अजितसरिया, प्रोफेसर अमीन मुग़ल, सरोज श्रीवास्तव, राकेश दुबे, पद्मेश गुप्त, इंदर स्याल एवं सोहन राही आदि ने भाग लिया।

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