स्वतंत्र आवाज़
word map

एड्स पीड़ित से कहीं भी भेद-भाव न हो-पीएम

एचआईवी पर जिला परिषद अध्यक्षों और महापौरों का सम्मेलन

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

मनमोहन सिंह-manmohan singh

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार को नई दिल्‍ली में एचआईवी और एड्स पर जागरूकता पैदा करने और इनके समाधान में सहयोग के लिए जिला परिषद के अध्‍यक्षों और महापौरों के राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि देश भर के जिला परिषद के अध्‍यक्ष और शहरी निगमों के महापौर को बधाई के पात्र हैं जो एचआईवी और एड्स से लड़ने के लिए अपनी एकजुटता और प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त करने के लिए यहां एकत्र हुए हैं। उन्होंने सांसदों को भी बधाई दी है जो इस लड़ाई में लगातार साथ दे रहे हैं। प्रधानमंत्री ने इस संक्रमण के विरूद्ध लड़ाई में ऑस्‍कर फर्नाडीज के योगदान की भी सरहाना की है जो इस लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि यह सम्‍मेलन उपयुक्‍त समय पर हो रहा है और हम एचआईवी पर राष्‍ट्रीय प्रतिक्रिया के अगले चरण की रणनीति तैयार करने की दहलीज पर हैं, अनुभवों से पता लगता है कि जहां पंचायती राज संस्‍थान ठीक तरीके से काम कर रहे हैं वहां सामाजिक और विकास कार्यक्रमों का स्‍पष्‍टतया अच्‍छा असर हुआ है, इसलिए हमें पंचायती राज संस्‍थानों और साथ ही समुदायों से प्रोत्‍साहित राष्‍ट्रीय एचआईवी/एड्स कार्यक्रम की भागीदारी को और मजबूत करने के प्रभावकारी तरीकों का पता लगाना चाहिए, स्‍वास्‍थ्‍य के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी इस समस्‍या से निपटने के लिए सम्मिलित वैश्विक प्रयास बढ़े हैं एवं मुझे उम्‍मीद है कि एचआईवी/एड्स से निपटने में वैश्विक प्रतिबद्धता के प्रयास धीमे नहीं पड़ेंगे।

उन्होंने कहा कि इस घातक संक्रमण से पीड़ित गर्भवती महिला से नवजात शिशु में इसे फैलने से रोकना हमारा प्राथमिकता वाला क्षेत्र है, पहले संस्‍थागत प्रसव काफी कम था लेकिन जननी सुरक्षा योजना के परिणामस्‍वरूप संस्‍थागत प्रसव बढ़ा है, मुझे यकीन है कि नवजात शिशुओं में इसके प्रसार को रोका जा सकेगा। इस समय देशभर में मौजूद विभिन्‍न सुविधाओं के जरिये 4.2 लाख मरीज इलाज की मुफ्त सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। एंटी-रेट्रो वायरल इलाज शुरू होने के साथ ही एचआईवी एक पुरानी लेकिन काबू करने योग्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या है। वैश्विक प्रयासों में एचआईवी/एड्स से निपटने में भारत का एक महत्‍वपूर्ण योगदान यह है कि एचआईवी पीडि़त लोगों के इलाज में इस्‍तेमाल होने वाली एंटी-रेट्रो वायरल दवाओं की वैश्विक मांग को भारतीय दवा उद्योग पूरा कर रहा है, हमारी दवाओं की कीमत कम है और वे उच्‍च गुणवत्ता वाली हैं।

प्रधानमंत्री ने दावा किया कि हमारा एचआईवी/एड्स कार्यक्रम समुचित कारणों से सफल रहा है, हांलाकि, हम नए संक्रमित मरीजों की संख्‍या कम करने में सफल रहे हैं लेकिन हमें इतने में ही आत्‍मसंतोष करके आराम से नहीं बैठना होगा, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत में एचआईवी/एड्स से 24 लाख लोग पीडि़त हैं, इसलिए एचआईवी से पीड़ितों को सेवाएं देने का काम ढीला नहीं पड़ना चाहिए और संक्रमण बढ़ने से रोकने के प्रयास जारी रहने चाहिएं। उन्होंने कहा कि अभी भी बहुत सी चुनौतियां बाकी हैं। हमारी आबादी का बहुत बड़ा हिस्‍सा युवाओं का है जिनमें जागरूकता पैदा करना जरूरी है, एक जगह से दूसरी जगह जाने वाले और घुमंतू आबादी की समस्‍या का समाधान बाकी है, एचआईवी रोकथाम सेवा उन सभी जगहों पर बढ़ाने की जरूरत है जहां इसका खतरा है। उन्होंने कहा कि हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि एचआईवी पीड़ितों के प्रति किसी तरह का भेदभाव न हो, किसी भी बच्‍चे को स्‍कूल और कॉलेज में इस आधार पर दाखिला देने से इंकार न किया जाए कि वह एचआईवी से पीड़ित है या उसके माता-पिता इससे पीड़ित हैं।

उन्होंने कहा कि इस कारण किसी भी व्‍यक्ति को अपनी नौकरी भी नहीं गंवानी पड़े, महिलाओं पर किसी तरह का कलंक न आए, एक स्‍वस्‍थ समाज बनाने में आप लोगों की चुने हुए नेताओं के रूप में प्रमुख भूमिका है। अन्‍य सम्‍बद्ध मंत्रालयों में भी एक 'एचआईवी संवेदनशील' नीति और कार्यक्रम होने चाहिएं ताकि हाशिये पर चली गई प्रभावित और संक्रमित आबादी इन योजनाओं के लाभ से वंचित न रह जाए। एचआईवी और एड्स कार्यक्रम और महात्‍मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के बीच संपर्क होना चाहिए ताकि एचआईवी से संक्रमित लोगों को रोजगार दिया जा सके। लोगों के फायदे के लिए अगर स्‍वास्‍थ्‍य को जन आंदोलन बनाना है तो इसके लिए सिविल सोसाइटी और पंचायती राज संस्‍थानों को शामिल करना जरूरी है। पंचायत नेता संवेदनशील हैं लेकिन शहरी और ग्रामीण इलाकों के स्‍थानीय चुने हुए नेताओं को भी इसमें शामिल करना जरूरी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक समेकित बाल विकास योजना और अन्‍य विकास योजनाओं के साथ उनको जोड़कर एचआईवी पॉजिटिव लोगों, खासतौर पर महिलाओं और बच्‍चों की पोषण ज़रूरतें पूरी करनी चाहिए।

केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने बाहरी दानदाताओं के वित्तपोषण में कमी होने के कारण संसाधनों में हुए अंतर को कम करने के लिए राष्‍ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (चरण-4-एनएसीपी 4) के लिए घरेलू बजटीय आवंटन बढ़ाने की मांग की। आज़ाद ने कहा कि 31 मार्च 2012 को समाप्‍त होने वाले तीसरे चरण की पांच वर्ष की अवधि के लिए 11,585 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, इसमें से 2861 करोड़ रुपये घरेलू बजटीय सहायता से उपलब्‍ध कराए गए थे जबकि शेष राशि विश्‍व बैंक, डीएफआईडी, विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन, यूनिसेफ, क्लिंटन फाउंडेशन, संयुक्‍त राष्‍ट्र एड्स इत्‍यादि बाहरी दानदाताओं से आई। आज़ाद ने कहा कि जून 2011 में न्‍यूयार्क में एचआईवी/एड्स पर संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा के सत्र में भारत की एक ऐसे देश के रूप में सराहना की गई जिसने एड्स कार्यक्रम में उल्‍लेखनीय सफलता हासिल की है। उन्‍होंने कहा कि राष्‍ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के तहत किए गए गंभीर प्रयासों के कारण 1992 से संक्रमण दर घटकर .31 प्रतिशत रह गई है। पिछले दशक में नए संक्रमण में 50 प्रतिशत कमी आई है।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]