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नई दिल्ली। देश के तटीय क्षेत्र के प्रबंधन में सहायता प्रदान करने के लिए तटीय आपदरेखा मानचित्रण की ओर बढ़ाए पहले कदम के रूप में स्टीरियो डिजिटल एरियल फोटोग्राफी (एसडीएपी) शुरू की गई है। एसडीएपी के उद्देश्य के लिए मुख्य तटीय रेखा को आठ खंडों में विभाजित किया गया है- भारत-पाकिस्तान सीमा से गुजरात में सोमनाथ तक, सोमनाथ से उल्हास नदी तक महाराष्ट्र में, उल्लास नदी से शरावती नदी तक कर्नाटक में, शरावती नदी से केकोमोरिन तक तमिलनाडु में, पन्निपुर नदी से कृष्णा नदी तक आंध्रप्रदेश में, कृष्णा नदी से छत्तरपुर तक उड़ीसा में और छत्तरपुर से भारत-बंगलादेश सीमा तक पश्चिम बंगाल में। इस पर आधारित मानचित्र 1:10000 पैमाने में तैयार किया जाएगा और आपदरेखा सीमांकन के लिए खंभे खड़े किए जाएंगे। इन क्षेत्रों के आंकड़े एकत्र कर प्रस्तुत किए जाएंगे। पिछले 40 वर्षों की बाढ़ रेखाओं की पहचान की जाएगी और उसी अवधि में समुद्रस्तर बढ़ने के प्रभावों की भी पहचान की जाएगी।
इन आंकड़ों को एकत्र करने के बाद अगले 100 वर्षों में होने वाले भूक्षरण की भविष्यवाणी का मूल्यांकन किया जाएगा। यह कार्य विश्व बैंक की सहायता से समेकित क्षेत्र प्रबंधन परियोजना के अंतर्गत किया जाएगा। इस सर्वेक्षण की अनुमानित लागत 125 करोड़ रूपये आंकी गई है। मंत्रालय ने अभी हाल में उड़ीसा की तटीयरेखा परिवर्तन मानचित्रावली भी जारी की है, जिसमें राज्य की तटीय रेखा परिवर्तन की संक्षिप्त व्याख्या दी गई है। महासागर प्रबंध संस्थान अन्ना विश्वविद्यालय चेन्नई ने मानचित्र तैयार किया है। उन क्षेत्रों की समीक्षा उपलब्ध करने के लिए यह जानकारी अत्यंत लाभदायक रहेगी, जिनकी तटीय भूक्षरण, विकास के लिए क्षेत्रों की पहचान करने, तटीय एवं समुद्री संस्रोतों का संरक्षण करने और अधिक आपद क्षेत्रों से तटीय जनसंख्या की सुरक्षा के लिए अधिक नाजुक होने की संभावना है।