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नई दिल्ली। गुजरात उच्च न्यायालय ने विशेष जांच दल के एक सदस्य के स्थान पर तीन नामों का एक पैनल भेजने के लिए गृह मंत्रालय से आग्रह किया था। यह विशेष जांच दल इशरत जहां और अन्य लोगों के बीच कथित मुठभेड़ की जांच के लिए गठित किया गया था। इस सदस्य ने पैनल से स्वयं को मुक्त रखने का अनुरोध किया था। तदनुसार गृह मंत्रालय ने संबद्ध राज्य सरकारों से विचार-विमर्श के बाद अधिकारियों का एक पैनल बनाने का संकेत दिया था, जिसमें 1981 बैच के आंध्र प्रदेश काडर के आईपीएस अधिकारी जेवी रामुडु का नाम दिया गया था जो पहले वाली सूची में दूसरे स्थान पर थे और 15 जुलाई 2011 को उच्च न्यायालय ने उनके नाम को स्वीकृति दे दी थी।
गुजरात उच्च न्यायालय को क्रम संख्या 1 पर जेवी रामुडु समेत नामों के नये पैनल की सूचना देने के बाद आंध्र प्रदेश सरकार ने 17 जुलाई 2011 को गृह मंत्रालय को सूचित किया कि जेवी रामुडु की सर्जरी की गई है और ऑपरेशन के बाद उनके ‘चेकअप’ की जरूरतें पड़ेंगी। चिकित्सा के कारण विशेष जांच दल के सदस्य बनने की असमर्थता के बारे में उच्च न्यायालय को सूचित किया गया। जेवी रामुडु की चिकित्सा संबंधी स्थिति की जानकारी गृह मंत्रालय के ध्यान में उस समय लाई गई जब उनके नाम की स्वीकृति उच्च न्यायालय ने कर दी थी। गृह मंत्रालय को उच्च न्यायालय से अनुरोध करना पड़ा कि तीन नामों के ताजा पैनल से किसी अधिकारी को नामित किया जाए, जिसे उच्च न्यायालय ने स्वीकार कर लिया है। न तो आंध्र प्रदेश की राज्य सरकार ने और न ही जेवी रामुडु अधिकारी ने स्वयं गृह मंत्रालय के ध्यान में अधिकारी की असमर्थता की जानकारी दी। हालांकि इनका नाम मई 2011 को उच्च न्यायालय के आदेश में इंगित किया जा चुका था। ऐसा प्रतीत होता है कि गुजरात जांच दल में भारी असहमति और गतिरोध बना हुआ है जिससे इशरत जहां मामले में आशंकाएं बढ़ रही हैं। जांच दल में इस मामले की जांच को लेकर जिस प्रकार कार्रवाई चल रही है उससे माना जा रहा है कि यह एक ऐसी जांच है जिसे थोपा जा रहा हो।