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नई दिल्ली। भारत सरकार का दावा है कि भारत में इस समय 1571 से लेकर 1875 बाघ हैं, जो विश्व में बाघों की कुल आबादी का 60 से 65 प्रतिशत है। अखिल भारतीय स्तर पर बाघों की संख्या के आकलन-2010 की विस्तृत रिपोर्ट के अनुसार बाघ संरक्षित वनों और संरक्षित क्षेत्रों में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है। गणना में सुंदरवन, पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्रों और झारखंड इत्यादि राज्य जो पिछली गणना में नहीं आ सके थे, उनमें ये गणना कराई गई। इसके साथ ही बाघ संरक्षित वनों में प्रभावी प्रबंधन का मूल्यांकन भी सरकार ने जारी किया है।
वर्ष 2010 में बाघों, सहयोगी परभक्षी और उनके शिकार के बारे में आकलन की विस्तृत रिपोर्ट इस साल मार्च में जारी अनुमान की ही आगे की कड़ी है। इस अध्ययन में 2010 में देश भर में बाघों की संख्या में 20 प्रतिशत की वृद्धि के बाद अब इसके 1706 (1571-1875) की संख्या तक पहुंचने की बात कही गयी है। वर्ष 2006 के आकलन के अनुसार बाघों की संख्या 1411(1165-1657) थी। यह देशव्यापी आकलन प्रत्येक 4 वर्ष के बाद किया जाता है और इसे राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण, भारतीय वन जीव संस्थान, बाघ वाले राज्यों और बाह्य विशेषज्ञों की मदद से पूरा किया जाता है। संबद्ध प्राकृतिक आवास से बाघों के निवास में 12.6 प्रतिशत की कमी आई है। यह बाघ संरक्षित और बाघ स्रोत संख्या वाले क्षेत्रों से अलग उपरीतल और बिखराव वाले क्षेत्र में अल्प घनत्व के कारण हुआ है।
उत्तराखंड, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक में बाघ घनत्व का बढ़ना बाघों की संख्या बढ़ने का कारण माना जा रहा है। सुंदरवन, पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों और महाराष्ट्र के कुछ भागों के शामिल किये जाने से भी इस संख्या में बढ़ोतरी हुई है। बाघ संरक्षण के बारे में प्रभावी प्रबंधन के मूल्यांकन पर जारी की गई दूसरी रिपोर्ट में 39 बाघ संरक्षित क्षेत्रों में वर्ष 2010-11 में संशोधित मानदंडों को अपनाकर किया गया आकलन है। यह आकलन वैश्विक रूप से प्रयोग में लाई जाने वाली और भारतीय स्थिति में अनुकूलित संरचना के आधार पर की गयी। पांच स्वतंत्र दलों ने 30 सूचकों का इस्तेमाल कर यह मूल्यांकन किया है।