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अनुसूचित जातियों की सूची वही पुरानी

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नई दिल्ली। पिछले तीन वर्ष में देश की अनुसूचित जनजातियों की सूची में किसी समुदाय को शामिल नहीं किया गया है। जनजातीय कार्य राज्‍य मंत्री महादेव सिंह खंडेला ने लोक सभा में बताया कि यह सुनिश्‍चित करने के लिए कि अनुसूचित जनजातियों की सूची में केवल प्रमाणिक समुदायों को ही शामिल किया जाता है, सरकार ने 15 जून 1999 को, 25 जुलाई 2006 को पुन: संशोधित अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सूचियों को विनिर्दिष्‍ट करने वाले आदेशों में शामिल करने वाले, बाहर रखने वाले समुदायों के दावों का निर्धारण करने और अन्‍य संशोधनों के लिए प्रविधियों का निर्धारण किया था।

प्रविधियों के अनुसार संबंधित राज्‍य सरकार औचित्‍य सहित प्रस्‍ताव की सिफारिश करती है और इसे केंद्र सरकार को भेजती है। उसके बाद राज्‍य सरकार से प्राप्‍त प्रस्‍तावों को भारत के महापंजीयक (आरजीआई) को भेजा जाता है। आरजीआई, यदि राज्‍य सरकार की सिफारिश से संतुष्‍ट हो, तो केंद्र सरकार को प्रस्‍ताव की सिफारिश करता है। उसके बाद केंद्र सरकार, प्रस्‍ताव को राष्‍ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की सिफारिश के लिए भेजती है। आयोग की सिफारिश प्राप्‍त होने के बाद, मामले को मंत्रिमंडल के निर्णय के लिए प्रक्रियांवित किया जाता है। इस प्रक्रिया के अनुसार केवल उन्‍हीं मामलों को जिन पर संबंधित राज्‍य सरकार सहमति देती है, भारत के महापंजीयक और राष्‍ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) कानून में संशोधन करने के लिए विचारार्थ लिया जाता है। मंत्रिमंडल के निर्णय के बाद, संसद में एक विधेयक प्रस्‍तुत किया जाता है। किसी प्रस्‍ताव का आरजीआई/एनसीएसटी का समर्थन न मिलने के मामले में, इसे आरजीआई/एनसीएसटी की टिप्‍पणियों के प्रकाश में समीक्षा करने अथवा अपनी सिफारिशों को पुन: औचित्‍यता प्रदान करने के लिए राज्‍य सरकार को वापस भेज दिया जाता है।

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