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अदालतें ऐसी सहानुभूति न दिखाएं-सुप्रीमकोर्ट

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सुप्रीमकोर्ट-supreme court

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतें अंतरिम आदेश देकर छात्रों को परीक्षा में शामिल होने का निर्देश देने में सावधानी बरतें। तथ्यों की गहराई में जाए बिना अदालतें छात्रों के प्रति अत्यधिक सहानुभूति दर्शाकर उन्हें परीक्षा में शामिल होने का आदेश दे देतीं हैं, इससे शिक्षण और परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं पर काम का बोझ तो बढ़ता ही है, छात्रों में भी बेवजह की उम्मीद जगती है।

न्यायमूर्ति मुकुंदकम शर्मा और अनिल आर दवे की पीठ ने सिविल सेवा परीक्षा में बैठे छात्र का परीक्षा परिणाम सार्वजनिक न करने की संघ लोक सेवा आयोग की अपील को स्वीकारते हुए यह टिप्पणी की। एस कृष्ण चैतन्य ने केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर सिविल सेवा परीक्षा दी थी जबकि आरंभिक परीक्षा के लिए उसका आवेदन पत्र आयोग को प्राप्त नहीं हुआ था। एस कृष्ण चैतन्य का दावा था कि उसने कुरियर से अपना आवेदन आयोग को भेजा था जो आयोग को 29 जनवरी 2010 को प्राप्त हुआ। कैट के आदेश पर वह प्रारंभिक और फिर मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू में शामिल हुआ, लेकिन इंटरव्यू के बाद यूपीएसएसी ने उसका रिजल्ट रोक दिया। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने परीक्षा परिणाम घोषित करने का आदेश दिया जिसे आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कैट और हाईकोर्ट ने निजी कुरियर कंपनी के एक प्रबंधक के हलफनामे के आधार पर यह मान लिया कि एस कृष्ण चैतन्य का आवेदन पत्र आयोग ने प्राप्त किया, लेकिन आयोग का डाक रिसीविंग सिस्टम बहुत आधुनिक और दोषमुक्त है, सिविल सेवा परीक्षा के आवेदन के साथ पावती लगाना अनिवार्य है, आयोग इस पर आठ अंकी नंबर की मुहर लगाकर स्वीकृति प्रदान करता है मगर कुरियर कंपनी इस तरह की पावती पेश करने में असमर्थ रही।

पीठ ने कहा कि चूंकि मामला एक बेहद प्रतिभाशाली युवक का है जो एक बेहतरीन सरकारी अफसर साबित हो सकता है, इसलिए इस याचिका में उठाए गए सवालों को बहुत बारीकी से परखा गया है। कैट ने एक सितंबर 2010 के अपने आदेश में कहा है कि या तो आवेदन पत्र भरा लिफाफा इधर-उधर हो गया, या कुरियर एजेंसी ने आयोग के दफ्तर में डाक पहुंचाई ही नहीं। परीक्षा परिणाम में बैठने की अनुमति देते हुए भी कैट किसी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा था, इस तरह की आशंकाओं के मध्य उम्मीदवार को परीक्षा में शामिल होने की इजाजत नहीं देनी चाहिए थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक मेधावी उम्मीदवार होने के बावजूद एस कृष्ण चैतन्य ने कम लापरवाही नहीं बरती। संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा के विज्ञापन में साफतौर पर कहा है कि अगर आवेदक को अर्जी दायर करने के 30 दिन के अंदर पावती प्राप्त नहीं होती तो वह आयोग के दफ्तर से संपर्क कर सकता है, लेकिन उम्मीदवार ने ढाई महीने बाद परीक्षा से कुछ समय पहले ही इस संबंध में पूछताछ की। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि एक बुद्धिमान और समझदार उम्मीदवार से इस तरह की लापरवाही की अपेक्षा नहीं की जाती। जिम्मेदार सरकारी अफसर बनने का इच्छुक कोई भी मुस्तैद छात्र इतना उदासीन नहीं हो सकता, वह पहले भी सिविल सेवा परीक्षा में सम्मिलित हो चुका है, लिहाजा वह इसकी समूची प्रक्रिया से वाकिफ है।

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