स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
नई दिल्ली। भारत छोड़ो दिवस पर ग्रीनपीस ने 'मोंसेंटो भारत छोडो' अभियान का आगाज़ करते हुए देशवासियों को जागरूक किया कि कैसे बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियां भारत को अपने शिकंजे में कसने का प्रयास कर रही हैं। मोंसेंटो जैसी बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियों की साजिश का पर्दाफाश करने के लिए यह अभियान दिल्ली के साथ-साथ देश भर में शुरू हुआ। शाम के वक्त निकाले गये 'कैंडिल लाइट मार्च' में सैकड़ों दिल्लीवासियों ने हिस्सा लिया और देश की संप्रभुता और खाद्य सुरक्षा को बचाने का संकल्प लिया। ग्रीनपीस ने एलाइंस फार सस्टेनेबिल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर के हिस्सेदार की हैसियत से 9 अगस्त 2011 को राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस के रूप में मनाया और देश में खाद्यान्न और खेती पर मंडरा रहे कारपोरेट नियंत्रण के संकट को रोकने के लिए हर संभव लड़ाई लडने का बिगुल फूंका।
इस मौके पर ग्रीनपीस इंडिया के एग्रीकल्चर कैंपेनर कपिल मिश्रा ने कहा कि, 'जनता में जीनीय रूप से परिष्कृत फसलों और मोंसेंटो जैसी कंपनियों के खिलाफ काफी आक्रोश है। वे जोखिम भरी तकनीकों के सहारे हमारी कृषि व खाद्यान्नों पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं। जीएम फसलों और बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियों के खिलाफ शुरू हुए इस संघर्ष में जिस तरह से शहरी नागरिकों ने सहभागिता की है, वह काफी महत्वपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि यह अभियान शहरी नागरिकों की बजाय मुख्य रूप से ग्रामीण किसानों से संबंधित है। मोंसेंटो भारत छोड़ो अभियान के तहत मनाये गये राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस पर आज देश भर के हजारों किसानों के अलावा दर्जन भर शहरों के नागरिकों ने भी सक्रिय रूप से हिस्सा लिया।'
भारत में जब से बीटी कपास को अनुमति मिली है तभी से जीएम फसलें भी विवादों से घिरी हुई हैं। यह अकेली ऐसी जीएम फसल है जो व्यवसायिक रूप से देश में पैदा हो रही है। अब इसका दुष्प्रभाव हमारे देश के सामाजिक-आर्थिक ढांचे पर, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर भी दिखने लगा है। पिछले साल पहली खाद्य फसल के रूप में बीटी बैगन भी व्यावसायिक चरण तक जा पहुंची थी लेकिन किसानों, उपभोक्ताओं, वैज्ञानिकों और जन संगठनों की तरफ से हुए भारी विरोध की वजह से सरकार को बीटी बैगन पर अनिश्चितकालीन रोक लगानी पडी।
कैंडिल लाइट मार्च में शामिल हुए दी कोंफेडरेशन आफ रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन आफ दिल्ली, यूआरजेए के महासचिव सेवानिवृत्त विंग कमांडर जसबीर चड्ढा ने कहा, 'जीनीय रूप से परिष्कृत खाद्यान्न हमें स्वीकार नहीं हैं। हम ये नहीं समझ पा रहे हैं कि हमारी सरकार क्यों उन उद्यमियों की तरफ खड़ी है जो केवल अपने लाभ के लिए इन तकनीकों को बढावा दे रहे हैं। दिल्ली वाले ऐसे हर जन अभियान में शामिल होंगे जो हमारे खाद्यान्नों को जीनीय परिष्करण जैसी जोखिम भरी तकनीकों से बचाने के लिए चलेगा।' बीटी बैगन पर रोक लगी होने के बावजूद सरकार तमाम जीएम फसलों के खुले हवाई परीक्षण की अनुमति दिए जा रही है जबकि परीक्षण स्थल के आसपास हमारी नियमित फसलों और खाद्य आपूर्ति के प्रदूषित होने का काफी खतरा है।
बायो टेक्नोलॉजी रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (बीआरएआई) जैसे नए प्रस्तावित नियामक प्राधिकरण ने जीएम फसलों को लेकर जनता को और डरा दिया है। इस विधेयक को सरकार संसद के पटल पर वर्तमान सत्र में ही रखने की तैयारी कर रही है। पिछले दिनों मीडिया में उजागर इस विधेयक के कुछ अंशों से पता चला कि सरकार अनुमोदन की प्रक्रिया को आसान बनाना चाहती है और सूचना का अधिकार कानून के दायरे से उसे बाहर रखना चाहती है, ताकि जीएम फसलों के लिए एक सेंट्रलाइज्ड सिंगिल विंडो क्लियरेंस सिस्टम बनाया जा सके। बीआरएआई को एक सरकारी साजिश का नाम देते हुए इंडिया गेट पर इकट्ठे हुए लोगों ने कहा कि देश में जीएम फसलों को लेकर इस समय चल रहे भारी विरोध का मुकाबला करने के लिए ही सरकार बीआरएआई लाना चाहती है।