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मंजरी दुबे को राग विहार का स्मृति पुरस्कार

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राग विहार स्मृति पुरस्कार-raga vihar smriti puraskar

नई दिल्ली। राग विराग की ओर से त्रिवेणी सभागार में शीला सिद्धांतकर स्मृति पुरस्कार कवि मंजरी दुबे को दिया गया। ये पुरस्कार मंजरी को कथाकार मृदुला गर्ग ने अपने हाथों से दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो नित्यानंद तिवारी ने की जिन्‍होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में शीला सिद्धांतकर और मंजरी दुबे की कविताओं का बारीक विश्‍लेषण किया।
कार्यक्रम की शुरूआत में शीला सिद्धांतकर के तीन अवधी गीतों पर आधारित 'कारी चुनरिया' की कथक कोरियोग्राफी और एकल प्रस्तुति पुनीता शर्मा ने किया जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया, तीन ताल में गायन संरचना और अद्धा में निबद्ध ठुमरी ने कथक प्रस्तुति को नया आयाम दिया, जिसे फ्यूजन कहा जा सकता है। आरंभिक वक्तव्य देते हुए शिवमंगल सिद्धांतकर ने कहा कि आज कलाओं में ही फ्यूजन का दौर नहीं है बल्कि साम्राज्यवाद का चरम जब धराशायी हो रहा है तो समाजवाद और पूंजीवाद के फ्यूजन के द्वारा संजीवनी हासिल कर महामंदी से उबरने की कोशिश में है।
मंजरी दुबे को पुरस्कार देते हुए कथाकार मृदुला गर्ग ने कहा कि मुझे खुशी है कि एक कवि को पुरस्कार देने के लिए एक कथाकार को चुना गया है। मैं मानती हूं कि कथा या गद्य या पद्य में इतना बड़ा अंतर नहीं होता जितना 19वीं शताब्दी के बाद बतलाया जाता रहा है। पुरातन साहित्य में, चाहे हमारा हो या पश्चिम का. गद्य हमेशा पद्य के साथ-साथ चलता रहा। पद्य और गद्य दोनो में गति और लय होती है। पद्य की गति अधिक चपल और गद्य की कुछ मंथर रह सकती है। पर दोनों का आधा मानवीय दृष्टि संवेदना ही है। गद्य के भीतर कविता सुगबुगाती रहती है और कविता के भीतर कथयात्मक दृष्टि झलकती रहती है। शीला जी की कविताओं में तैरती संवेदनाएं मन को छूती हैं, तो यह भी देखने में आता है कि उनकी गति में बहुत उत्ताल और उछाल है।

मंजरी दुबे के पद्य में गत्यात्मकता से ज्यादा गद्य का विचार अनुप्रेरित है। दोनो में फिर भी कहीं न कहीं साम्य है। वो साम्य जिजीविषा का है। जिंदगी जीने की इतनी उत्कृष्ट इच्छा जो इन दोनों की कविताओं में मिलती है वह समाज में फैली निराशा के विपरीत है। शीला सिद्धांतकर की कविताओं पर उनकी जिंदगी भारी पड़ती है, मंजरी दुबे की स्त्री संतान की इच्छा रखती हैं जिसे वह बेबाकी से बोल जाती हैं।
इस संदर्भ में शीला सिद्धांतकर की कविता 'बुढ़ापे का बचपन' और मंजरी दुबे की कविता 'काश मैं भी एक बच्चा जनती' उल्लेखनीय हैं। राबर्ट फ्रॉस्ट की तीन पंक्तियों से अपनी बात समाप्त करना चाहती हूं- 'वन में जा रही थी अलग-अलग राहें और मैं, चला उस राह पर जिस पर चले थे कम लोग और इसी ने सब कुछ बदल दिया'शीला सिद्धांतकर की कविताओं का इस मौके पर बारीक विश्लेषण अनामिका ने किया और मंजरी की कविताओं का विवेचन पवन करण ने किया। शीला सिद्धांतकर की 152 चुनी हुई कविताओं की एक चयनिका 'परचम बनें महिलाएं' का लोकार्पण प्रो नित्यानंद तिवारी और मृदुला गर्ग ने संयुक्त रूप से किया।

राग विराग पुरस्कार समिति के सचिव मदन कश्यप ने शीला सिद्धांतकर और मंजरी की कविताओं पर संक्षिप्त प्रकाश डाला और राग विराग की ओर से प्रो नित्यानंद तिवारी की अध्यक्षता में गठित समिति की ओर से मंजरी की पुस्तकर 'घर के मुंह में घुलता बताशा' पर प्रशस्ति पाठ निर्वाचक समिति की ओर से किया जिसमें अध्यक्ष प्रो नित्यानंद तिवारी के अलावा डॉ विश्‍वनाथ त्रिपाठी, शिवमंगल सिद्धांतकर, डॉ रेखा अवस्थी, डॉ अनामिका, डॉ आशा जोशी, श्री अरविंद जैन, और मदन कश्‍यप शामिल हैं। डॉ आशा जोशी ने कार्यक्रम का संचालन किया।

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