स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
नई दिल्ली। तिब्बतियों के धार्मिक गुरू दलाई लामा ने कहा है कि इस धरती पर भारत न केवल सबसे बड़ा लोकतंत्र है बल्कि यह देश धार्मिक सौहार्द का प्रतीक भी है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चौथे वार्षिक व्याख्यान में उन्होंने कहा कि सदियों पुरानी संपंन और विविधता से पूर्ण भारतीय संस्कृति एक अनोखा परिवेश प्रस्तुत करती है जिसमें लोगों ने शांति और सद्भाव से रहना सीखा है। उन्होंने कहा कि भारत के लोग मूलत: धार्मिक प्रवृति के, ईश्वर में विश्वास करने वाले और दयालु हैं और भारतीय संस्कृति के इन्हीं सब सद्गुणों के कारण वे भारत को अपना गुरू और अपने आप को इसका सच्चा चेला मानते हैं।
दलाई लामा ने कहा कि दुनिया मानवता से भरे व्यक्तियों की और देश उसके लोगों का होता है, भारत इस लोकतांत्रिक अनुभव का उचित उदाहरण है। उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र लोक शासन की सर्वोत्तम व्यवस्था है और वे अपने लोगों के बीच और सारी दुनिया में इसे ही लागू देखना चाहते हैं। प्रेम, करूणा, दया और मानव मन और आत्मा की श्रेष्ठता में अपना पूर्ण विश्वास दोहराते हुए दलाई लामा ने कहा कि दुनिया के सभी धर्म एक हैं और मुख्य रूप से मानव मस्तिष्क को उन्नत करके पूर्णता का अहसास और खुशी प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि हिंसा किसी समस्या का हल नहीं है और इससे हमेशा क्रोध, कुंठा, और अधिक समस्या उत्पन्न होती है, इसलिए सभी मुद्दे अहिंसात्मक और शांतिपूर्ण तरीके से हल किए जाने चाहिएं।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद ने इस कार्यकम की अध्यक्षता की। अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री विंसेंट एच पाला भी समारोह में मौजूद थे। बाद में उपस्थित लोगों से बातचीत में दलाई लामा ने कहा कि इस्लामी उग्रवाद जैसे शब्दों का प्रयोग दुखद और सर्वथा गलत है, क्योंकि इस्लाम का हिंसा से कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने कहा कि समस्या उत्पन्न करने वाले लोग हर धर्म में मौजूद हैं।