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नई दिल्ली। विधि और न्याय मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि अल्पसंख्यक समुदायों के पर्सनल लॉ में सरकार की नीति दख़ल देने की नहीं है, इसलिए यह कहना सही नहीं है कि सरकार ने केवल हिंदू कानून में सुधार किया है और वह अल्पसंख्यक समुदाय के पर्सनल लॉ में कोई सुधार नहीं कर सकी है। राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में सलमान खुर्शीद ने कहा कि केंद्र सरकार की लगातार यही नीति रही है कि वह अल्पसंख्यक समुदाय के पर्सनल लॉ में तब तक दख़ल नहीं देती, जब तक संबद्ध समुदाय के अधिकांश सदस्य इसके लिए आवश्यक पहल नहीं करते।
सलमान खुर्शीद ने सदन को यह भी जानकारी दी कि बाल विवाह रोकथाम कानून 2006 के खंड दो की धारा (क) के अनुसार 'बच्चा', से मतलब ऐसे व्यक्ति से है, जो अगर पुरूष है तो उसकी आयु 21 वर्ष नहीं हुई है और अगर स्त्री है तो उसकी आयु 18 वर्ष नहीं हुई है और धारा (ख) के अंतर्गत, बाल विवाह का मतलब उस विवाह से है, जब विवाह करने वालों में से एक 'बच्चा' हो। विधि मंत्री ने कहा कि हिंदू विवाह कानून 1955 के खण्ड-5 की धारा (3) के अनुसार ऐसे दो हिंदुओं के बीच विवाह हो सकता है, अगर विवाह के समय दूल्हे ने 21 वर्ष की और दुल्हन ने 18 वर्ष की उम्र पूरी कर ली हो । उन्होंने कहा कि इस प्रकार विवाह की उम्र के मुददे पर दोनों कानूनों में कोई विरोधाभास नहीं है।