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कहां आजम खां और कहां जया प्रदा!

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आजम खां-azam khan

रामपुर (उप्र)।जया प्रदा-jaya pradaविख्यात फिल्म अभिनेत्री और समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी जया प्रदा रामपुर से चुनाव जीतती हैं कि नहीं अब यह मुद्दा खत्म हो चुका है। जया प्रदा रामपुर से सपा की सांसद हैं और सपा ने उन्हें फिर से रामपुर से चुनाव मैदान में उतारा है। पिछली बार और इस बार में जया प्रदा के लिए यह फर्क आया है कि पिछली बार उन्होंने भाजपा, कांग्रेस और बसपा के खिलाफ शानदार जीत दर्ज की थी मगर इस बार इन दलों के प्रत्याशी तो सामने हैं ही मगर उनका मुख्य मुकाबला एक ऐसे राजनेता के विरोध से हो गया है जो अभी भी सपा में ही हैं, उस सपा में जिसने उन्हें राजनीति में सीना तानकर करके चलने का हौसला दिया है और जिसने उनके कहने पर न जाने कितने बड़े-बड़े राजनीतिक फैसले किए, तोहमतें झेली हैं। मजे की बात है कि सपा के पूरी तरह खिलाफ चलकर भी वह आज भी मुलायम सिंह यादव को अपना नेता मानते हैं। सपा नेतृत्व के खिलाफ उनके तेवर इस कदर तीखे हैं कि रामपुर में समाजवादी पार्टी प्रत्याशी जया प्रदा को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। चुनाव प्रचार में एक दिन एक मुसलमान से नहीं रहा गया और उन्होंने रामपुर में एक जनसभा में सपा के खिलाफ बोलते हुए इनसे सवाल कर डाला कि आजम खां साहब पहले आप यह बताएं कि आप अभी भी सपा में हैं कि नहीं? यह सवाल पूछना था और जनसभा हंगामे में बदल गई। इस सवाल से आजम खां इतने तिलमिलाए कि सभा बीच में खत्म करनी पड़ी। सवाल बहुत मौके का था जिसका आजम खां के पास कोई उत्तर नहीं था। आज भी उनके पास कोई जवाब नहीं है कि वह समाजवादी पार्टी में रहते हुए सपा प्रत्याशी जया प्रदा को क्यों हरवा रहे हैं और क्यों उसी दल के खिलाफ जहर उगल रहे हैं जिसने उन्हें राजनीति में सीना तानकर करके चलने का हौसला दिया है और जिसने उनके कहने पर न जाने कितने बड़े-बड़े राजनीतिक फैसले किए तोहमतें झेली हैं।
आजम खां समाजवादी पार्टी में रामपुर से ही नहीं जाने जाते हैं अलबत्ता समाजवादी पार्टी की मुसलमानों के बारे में जो नीतियां बनीं और लागू हुईं उनके पीछे आजम खां साहब ही हैं। सपा में मुसलमानों के मामले में आजम खां से अलग हटकर कभी सोचा ही नहीं गया। इस कारण मुलायम सिंह यादव को कुछ ऐसे भी दिग्गज मुसलमान नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा है जो आजम खां से इत्तेफाक नहीं रखते हैं और वे केवल आजम खां की जिद और तानाशाही जैसे रवैये के कारण समाजवादी पार्टी से नहीं जुड़ सके। मुलायम सिंह यादव ने आजम खां के मान-सम्मान के लिए अच्छे-अच्छे नेताओं को ठिकाने लगाया है। आजम खां ने पार्टी में जो चाहा वह किया है और जिसको चाहा उसको मिटा दिया है। मुलायम सिंह यादव उनके सामने नहीं बोले। जिस दिन से आजम खां ने समाजवादी पार्टी के खिलाफ जहर उगलना शुरू किया है उस दिन से आज तक सपा के बाकी नेता खून का घूंट पी रहे हैं और मुलायम सिंह यादव उनके इस दबाव को दरकिनार कर रहे हैं कि जब आजम खां ने सपा और उसके नेतृत्व की अवहेलना शुरू ही कर दी है तो उनसे मुक्ति पा ली जाए ताकि यह तय हो सके कि वह अब साथ में नहीं है और उनके बगैर समाजवादी पार्टी अपनी लड़ाई लड़े।
बहुत से मुसलमान नेताओं ने इस दौरान मुलायम सिंह यादव से मिलकर यह साफ-साफ कहा कि वह आजम खां की आलोचनाओं की चिंता न करें बल्कि उनके विरोध का सामना करे क्योंकि मुसलमान केवल आजम खां के कारण ही समाजवादी पार्टी के साथ नहीं है बल्कि सपा में आजम खां भी एक हैं और इसी प्रकार से बाकी मुसलमान नेता भी हैं जिनका जनाधार किसी भी कीमत पर आजम खां से कम नहीं है। ऐसा लगता है कि आजम खां ने समाजवादी पार्टी से अपने सारे बदले लोकसभा चुनाव में चूकता करने की मुहिम चला रखी है जिसमें कि उन्हें यह भरोसा है कि मुलायम सिंह यादव उनके खिलाफ कभी भी नहीं जाएंगे और वे जो भी करेंगे पार्टी चुपचाप बर्दाश्त करेगी और यह भी कि रामपुर से जया प्रदा के चुनाव लड़ने या न लड़ने का मामला हो या फिर सपा के महासचिव अमर सिंह से अंदरखाने गहरी नाराजगी हो। मुलायम सिंह यादव की मजबूरी है कि वे इस सारे गतिरोध को बर्दाश्त करेंगे लेकिन आजम खां अपनी मुहिम से पीछे नहीं हटेंगे।

बहुत से नेताओं ने आजम खां को समझाने की कोशिश की कि वह एक व्यक्ति के कारण सारी समाजवादी पार्टी और उसके नेतृत्व को एक बड़ी लड़ाई लड़ने में कमजोर न होने दें लेकिन रामपुर से उनके कैम्प से अनेक बार यह खबर उड़वाई गई कि आजम खां सपा नेतृत्व से कभी बात नहीं करेंगे और वह आज, कल, परसों आज या आज शाम को बहुजन समाज पार्टी में जाने वाले हैं। ये खबर श्रृंखलाबद्ध तरीके से अखबारों और टीवी चैनलों पर प्रसारित कराई गई और बाद में आजम खां की चुप्पी ने इसको और हवा दी। मगर देखा गया कि मुलायम सिंह यादव पर इस प्रकार की मुहिम का कोई असर नहीं हुआ इस बीच भदोही का उपचुनाव हुआ और उसमें आजम खां की सपा से भारी नाराजगी की चर्चा के बावजूद भदोही में मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी प्रत्याशी को भारी मतो से जिता दिया।

आजम खां ने सोचा होगा कि भदोही का उपचुनाव मुलायम सिंह यादव के लिए ताबूत में कील बन जाएगा लेकिन यहां के मुसलमानों ने उस हवा को भांप लिया जो कि अकारण ही सपा और मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चलाई जा रही थी। उन्होंने भदोही सीट पर सपा का समर्थन करके यह संदेश छोड़ दिया कि समाजवादी पार्टी में आजम खां की नाराजगी का मुसलमानों पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है। ज्यादा से ज्यादा वह रामपुर में सपा प्रत्याशी जया प्रदा को चुनाव हरवा देंगे मगर यह भी एक नजीर बन जाएगी कि सपा में रहकर आजम खां ने भी पार्टी से बगावत नहीं बल्कि गद्दारी की थी।
कुछ लोगों का सवाल है कि अकेले कल्याण सिंह से सपा की नजदीकियां और उनका राजनीतिक सहयोग आजम खां को इतनी चोट पहुंचा रहा है कि वे समाजवादी पार्टी को केवल कल्याण सिंह के कारण नुकसान पहुंचाने पर तुल गए हैं और जिनको अपना नेता मानते हैं उन्हीं की सरेआम अवहेलना पर उतर आए हैं। यह सवाल केवल गैर लोगों ने ही नहीं बल्कि आजम खां के सहयोगियों और उनके जानने वालों ने भी किया है कि आखिर कब तक कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि विवाद से जोड़कर मुसलमानों को भरमाया जाता रहेगा। यह मुद्दा भारत की राजनीति में अब दफन हो चुका है और अगर मुसलमानों की राजनीति करने के लिए आजम खां इसे जिंदा रखना चाहते हैं तो अलग बात है।

देश का मुसलमान और रामपुर का भी मुसलमान यह भलीभांति जानता है कि रामजन्म भूमि बाबरी मस्जिद मुद्दे और उससे जुड़े पात्रों की अहमियत केवल उन लोगों में दिखाई पड़ सकती है जो भावनात्मक भाषणों के शिकार होते आए हैं उनमें नहीं जो पढ़े लिखे हैं और वह समझते हैं कि इन मुद्दों की आज कितनी प्रासंगिकता है। आजम खां हों या बाबरी मस्जिद, रामजन्म भूमि विवाद से जुड़े दीगर नेता वे इस मामले को बार-बार उछाल कर अपना उल्लू सीधा करने की फिराक में रहते हैं। वास्तविकता यह है कि जैसे-जैसे यह मुद्दा खत्म होता जा रहा है वैसे-वैसे ऐसे नेताओं की उपयोगिता खत्म होती जा रही है जो इसकी आड़ में राजनीतिक दलों को डराकर अपने स्वार्थ पूरे करते हैं। आजम खां भी इन्हीं से एक नजर आ रहे हैं। उनकी उपयोगिता खत्म होती जा रही है और वे अपने अस्तित्व को बनाए और बचाए रखने के लिए ऐसे बयान और ऐसी शिकायतों को उछाल रहे हैं जिनका अब कोई वजूद नहीं बचा है।
रामपुर से सपा प्रत्याशी जया प्रदा नाहक ही इस ब्लैकमेलिंग का शिकार हो रही हैं। रामपुर की जनता उन्हें पसंद करती हैं और जया प्रदा बाहर की होने के बावजूद रामपुर में पूरी तरह से सक्रिय रहीं हैं। उन्होंने अपने को बाहर का प्रत्याशी होने का एहसास नहीं होने दिया। इससे ज्यादा और क्या होगा कि जया प्रदा ने आजम खां के सामने यह प्रस्ताव तक रख दिया कि यदि वे चाहेंगे तो वह रामपुर से चुनाव लड़ेंगी अन्यथा नहीं। उन्होंने आजम खां की एक बार नहीं बल्कि कई बार मिन्नतें की और यहां तक कहा भी कि आजम खां के समर्थन के बगैर वे रामपुर से चुनाव नहीं जीत सकतीं लेकिन आजम खां ने जया प्रदा की इस भावना की भी धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने अपने जहरीले तेवर जारी रखें हैं जो कि जया प्रदा की राह में खतरनाक कांटे बन गए हैं।

टांडा में उस रोज जया प्रदा को जिस तरह से काले झंडे दिखाए गए उसे राजनीतिक दृष्टि से यही माना गया कि यह आजम खां के चेलो के अलावा कोई और नहीं कर सकता। सपा में रहकर मोहम्मद आजम खां जया प्रदा को काले झंडे दिखवा रहे हैं और कल्याण सिंह के विरोध के बहाने अपनी ही पार्टी को ललकार रहे हैं इसीलिए रामपुर में अपनी जनसभा में आजम खां को इस सवाल का सामना करना पड़ा कि वे अभी भी सपा में हैं कि नहीं और जब कल्याण सिंह की पार्टी मुलायम सिंह सरकार में शामिल हुई थी तब वे विरोध में क्यों नहीं आए? एक-एक सवाल आजम खां का पीछा कर रहा है।

जया प्रदा रामपुर से चुनाव जीतेंगी कि नहीं यह रामपुर की जनता तय कर देगी पर राजनीति ने यह तय कर दिया है कि आजम खां को जो भी कुछ करना था खासतौर से विरोध तो वह सपा के भीतर रहकर नहीं करना था क्योंकि पार्टी के भीतर रहकर विरोध का अधिकार और तरीका भी होता है मगर अधिकार, विरोध और विश्वासघात में बहुत अंतर है जिसकी प्रतिछाया आजम खां में देखी जा रही है। इससे उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर को काफी नुकसान पहुंचाया है इसका अंदाजा अभी उन्हें नहीं है क्योंकि अभी वे बसपा की ओर से दिखाई गई उन सहानुभूतियों में गोते लगा रहे हैं जो कि क्षणभंगुर हैं और जिनका परिणाम कभी भी उनके पक्ष में नहीं जा सकता। राजनीतिक समीक्षक कह रहें हैं कि आज़म खाँ एक बड़ी राजनीतिक भूल कर रहें हैं क्योंकि वह अब राजनीति के भरोसेमंद नेता नहीं रहें है क्योंकि उनसे हर किसी का सवाल है कि जब वे सपा के नहीं हुए तो किसी और राजनीतिक दल के क्या होंगे?

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