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लखनऊ। लखनऊ में व्यापारियों की राजनीति में जोड़तोड़ और पलटीमार के लिए मशहूर बनवारी लाल कंछल ने बहुजन समाज पार्टी में जाकर जहां अपनी उपयोगिता को और भी ज्यादा खत्म कर दिया वहीं इससे सपा ने उनके अंदरखाने विश्वासघात की गतिविधियों से मुक्ति पाई तो भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी लालजी टंडन को संतोष हुआ कि व्यापारी समाज में कंछल को लेकर जो भ्रम बना हुआ था वह टूट गया है इससे बसपा के प्रत्याशी अखिलेश दास गुप्ता को शायद ही लाभ पहुंचे अलबत्ता भाजपा के खेमे में खुशी के नगाड़े जरूर बजने लगे हैं जिसका मतलब यह समझा जाता है कि राजधानी का वैश्य समाज अब और ज्यादा खुलकर भाजपा को मतदान करने निकलेगा। बनवारी लाल कंछल ने चाहे जिस रणनीति से मायावती की शरण में जाकर और समाजवादी पार्टी छोड़ते हुए राज्यसभा की सीट से इस्तीफा दिया हो मगर मतलब यह निकाला जा रहा है कि बनवारी लाल कंछल के कुछ ऐसे मामले सरकार की पकड़ में आए हुए हैं जिनके कारण उनके पास बसपा का दामन थामने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था।
हालांकि कंछल शुरू से ही दलबदलू के रूप में जाने जाते हैं। वह सबसे शुरू में भाजपा के साथ थे उसके बाद समाजवादी पार्टी में जाकर और पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव पर उल्लू की लकड़ी घुमा कर राज्यसभा में चले गए। अब उन्होंने बहुजन समाज पार्टी में जाकर और राज्यसभा की सीट से इस्तीफा देकर एक नैतिकता का नाटक करते हुए अपने हितों को साधने की कोशिश की है। राजधानी में कंछल की इस पलटीबाजी को खास तवज्जो नहीं मिली है बल्कि समाजवादी पार्टी कह रही है कि अच्छा हुआ कि एक गद्दार खुद ही भाग गया जबकि भाजपा कह रही है कि वैश्य समाज को यह समझने का अवसर मिल गया है कि वास्तव में बनवारी लाल कंछल किस प्रकार की राजनीति करते हैं और उन्होंने अब तक अपने हितों के लिए कैसे-कैसे समझौते किए हैं।
वैश्य समाज का शुरू से ही भारतीय जनता पार्टी की ओर झुकाव रहा है और लखनऊ के अधिकांश व्यापारी प्रतिनिधिमंडल भाजपा से सहानुभूति रखते आए हैं। इसका प्रमाण यह है कि बसपा के नेता अखिलेश दास गुप्ता ने पिछले मेयर के चुनाव में वैश्य समाज को बसपा को वोट करने के लिए काफी जोर लगाए थे लेकिन वैश्य समाज भाजपा से टस से मस नहीं हुआ। वैश्य समाज राजनीतिक भागीदारी में काफी विचारवान माना जाता है और आम तौर पर उसके मतदाता बार-बार अपनी निष्ठाएं नहीं बदलते हैं। भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में चाहे जितनी भी कमजोर हो लेकिन वैश्य समाज अभी भी उससे अलग नहीं हुआ है। शहरों में बीजेपी की बढ़त का प्रमुख कारण वैश्य समाज ही माना जाता है। जहां तक बनवारी लाल कंछल का प्रश्न है तो वह केवल एक व्यापारी नेता के रूप में ही सक्रिए रहे हैं और व्यापारी समाज भी उन्हें केवल व्यापारी नेता के रूप में ही मान्यता देता है। व्यापारी वर्ग की राजनीतिक भागीदारी में बनवारी लाल कंछल का अभी तक कोई भी योगदान सामने नहीं आया है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने उन्हें व्यापारियों का प्रतिनिधि मानते हुए ही उन्हें राज्यसभा में भेजा था न कि उनकी किसी राजनीतिक उपयोगिता के कारण।
बनवारी लाल कंछल के सपा में जाने के बाद व्यापारी और वैश्य समाज में जो प्रतिक्रिया सामने आई है वो यह है कि उनके बसपा में जाने का अगर किसी को नुकसान हुआ होगा तो वह हैं बसपा के प्रत्याशी अखिलेश दास गुप्ता। अभी तक केवल नरेश अग्रवाल और अखिलेश दास गुप्ता ही बसपा में राजनीति करते थे अब इनके हिस्से से एक हिस्सा बनवारी लाल कंछल को भी मिल गया है और यहां से शुरू होगी बसपा के वैश्य समाज में विघटन की राजनीति, जिसका परिणाम इसी लोकसभा चुनाव में सामने आ जाना है। भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी लालजी टंडन किस्मत के धनी माने जाते हैं कि उनके चुनाव में ऐसी राजनीतिक घटनाएं घटती जा रही हैं जिनका कि किसी न किसी प्रकार से उनको ही लाभ मिल रहा है। लखनऊ के उद्योग व्यापारी मंडल के प्रतिनिधियों ने साफ कर दिया है कि उनका बनवारी लाल कंछल के फैसले से कोई संबंध नहीं है। इसका मतलब यह माना जा रहा कि व्यापार मंडल की निष्ठा भाजपा के साथ रहेगी। सपा के नेता अरविंद सिंह गोप ने बनवारी लाल कंछल को दगाबाज कहा है कि उनके सपा छोड़ने से समाजवादी पार्टी को कोई भी नुकसान नहीं हुआ है। अब कंछल यह साबित करें कि वह किस प्रकार वैट के विरोध में बोलेंगे। उनका कहना था कि कंछल की निष्ठा यदा-कदा संदिग्ध रूप में सामने आई है। पार्टी इन्हें बाहर का रास्ता दिखाती इससे अच्छा यह हुआ कि यह दगाबाज नेता पहले ही यहां से खिसक लिया।
लखनऊ में चुनावी गतिविधियों का जायजा लेने वालों में कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी सपा की नफीसा अली भाजपा के लाल जी टंडन और बसपा के प्रत्याशी डा अखिलेश दास गुप्ता के बीच मुकाबले की चर्चा में दिलचस्पी घटती जा रही है जिसका कारण यह समझा जाता है कि शुरू में भाजपा के प्रत्याशी लालजी टंडन के प्रति एक निराशा का वातावरण उभरा था लेकिन उनके सामने बाकी प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार और लखनऊ के राजनीति इतिहास को देखते हुए यहां की फिजा भाजपा के पक्ष में जाती दिख रही है। कहने वाले इसे किस्मत कहते हैं कि टंडन के लिए लखनऊ में छींका टूट रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री और लखनऊ लोकसभा क्षेत्र के सांसद अटल बिहारी वाजपेयी की टंडन को जिताने की अपील लखनऊ की जनता के सामने आ ही गई है और इतना तो तय है कि यह अपील अकारथ नहीं जाएगी।