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भाजपा और सपा में सिमटा लखनऊ का मुकाबला

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नफीसा अली-nafisa ali

लखनऊ। फिल्म अभिनेता संजय दत्त को चुनाव लड़ने की सुप्रीम कोर्ट से आज्ञा नहीं मिलने के बाद लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी ने मिस इंडिया रह चुकी और अब प्रख्यात समाज सेविका नफीसा अली को अपना प्रत्याशी बनाया है। इसी के साथ लखनऊ में सपा के चुनावी अभियान ने तेजी पकड़ ली है। नफीसा अली को जिताने के लिए संजय दत्त अब खुलकर मैदान में आ गए हैं। इस प्रकार अब यह माना जा रहा है कि लखनऊ में भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच मुख्य मुकाबला होगा जिसमें बसपा के तीसरे नंबर पर चले जाने के आसार बन गए हैं। संजय दत्त ने लखनऊ से चुनाव लड़ने का श्रीगणेश बहुत उत्साह से किया था लेकिन एक कानूनी तकनीकी अवरोध से उन्हें मैदान से हटना पड़ा। वे पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे और उनकी पसंद नफीसा अली भी पहली बार चुनाव लड़ रही हैं। वे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के अत्यंत करीब रही हैं। मगर राजनीति इसी को कहते हैं कि वह आज लखनऊ से कांग्रेस के बजाए समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी हैं।

नफीसा अली जिस लोकसभा क्षेत्र से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू कर रही हैं अभी तक उसका प्रतिनिधित्व भारतीय जनता पार्टी के पितामह और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी करते आए हैं। शारीरिक रूप से असशक्त होने के कारण उनके स्थान पर उनके परम शिष्य लालजी टंडन भाजपा की ओर से चुनाव मैदान में हैं। लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस से निकाले गए केंद्रीय राज्यमंत्री अखिलेश दास को अपना प्रत्याशी बनाया हुआ है जो करीब एक साल से लखनऊ में घर-घर में गिफ्ट बांटकर और पूरे शहर को मायावती और अपने पोस्टरों से पाटकर अपना प्रचार करते आ रहे हैं। उनके यहां से चुनाव लड़ने का आधार यहां का मेयर होना और उनके पास धन बल का होना है। इस कारण बसपा ने उन्हें कांग्रेस से निकाले जाने के बाद अपनी पार्टी का महासचिव बनाया और राज्यसभा में भेजने के बाद भी लखनऊ से उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़ाया जा रहा है। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि बसपा के पास इनसे बेहतर कोई और प्रत्याशी हो भी नहीं सकता था जो कि बसपा के हर एक काम आ सके। उनके एक साल के प्रचार ने लखनऊ में यह संदेश छोड़ा है कि वे बेइंतहा पैसा खर्च कर रहे हैं लेकिन यह गारंटी नहीं है कि ये पैसा उन्हें लखनऊ से लोकसभा का चुनाव जीता देगा।
अखिलेश दास इस समय तो बहुजन समाज पार्टी के राज्यसभा के सदस्य हैं। इससे पहले दो बार उन्हें कांग्रेस राज्यसभा में भेज चुकी है। केंद्र की यूपीए सरकार में कांग्रेस ने उन्हें राज्यमंत्री भी बनाया था लेकिन कहते हैं कि अमानत में खयानत के कारण कांग्रेस ने उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर करा दिया। कांग्रेस से निकाले जाने की आहट पाकर वे बसपा अध्यक्ष मायावती की शरण में आ गए। इसके बाद तो मायावती ने उन्हें राज्यसभा से इस्तीफा दिलाकर बसपा का महासचिव बना दिया और राज्यसभा में भेजने के बावजूद चुनाव के एक साल पहले ही लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से बसपा का प्रत्याशी भी घोषित कर दिया। अखिलेश दास तभी से लखनऊ में चुनाव की तैयारियों में लगे हुए हैं। कहने वाले कहते हैं कि उन्होंने लोकसभा चुनाव जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रखी है। उन्होंने चुनाव जीतने के लिए जो हथकंडे अपनाए हुए हैं उनका लखनऊ की आम जनता से लेकर चुनाव आयोग तक को मालूम है। लखनऊ की जनता अखिलेश दास गुप्ता की कारगुजारियों को बहुत करीब से देख और समझ रही है। उनको यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि उनके सामने समाजवादी पार्टी का एक ऐसा प्रत्याशी होगा जिसके प्रभाव के कारण अखिलेश दास और बसपा के पसीने छूट जाएंगे। संजय दत्त समर्थित नफीसा अली चुनाव जीत पाएंगी कि नहीं यह मुद्दा लखनऊ में नहीं है बल्कि मुद्दा यह है कि सपा ने संजय दत्त के विकल्प में लखनऊ से नफीसा अली के रूप में एक ऐसा प्रत्याशी खड़ा किया है कि जिससे लखनऊ में बसपा की लड़ाई अत्यंत कमजोर पड़ गई है। और ये मुकाबला भाजपा और सपा के बीच में सिमटता दिखाई पड़ रहा है।

इसलिए नफीसा अली का मुख्य मुकाबला अखिलेश दास गुप्ता से नहीं बल्कि उनका मुकाबला भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी लालजी टंडन से माना जा रहा है। लखनऊ की जनता अभी भी अटल बिहारी वाजपेयी के प्रति सबसे ज्यादा सहानुभूति रखती है और लखनऊ की लोकसभा सीट हो या हो लखनऊ के मेयर की कुर्सी दोनों ही इस समय भाजपा के पास हैं और दोनों ही सीटें भाजपा प्रतिष्ठापूर्ण ढंग से लड़ती और जीतती आ रही है। अखिलेश दास गुप्ता लखनऊ के मेयर रह चुके होने के बावजूद पिछली बार हुए मेयर के चुनाव में उस समय के कांग्रेस की ओर से  मेयर पद के प्रत्याशी पूर्व आईपीएस अफसर और शिक्षाविद् मंजूर अहमद को चुनाव नहीं जिता पाए थे। यह तब था जब उन्होंने मंजूर अहमद का उस तरह प्रचार किया था जिस प्रकार वे आज अपने लिए कर रहे हैं। उस वक्त लखनऊ में कोई भी उन्माद नहीं था बल्कि मंजूर अहमद एक शिक्षाविद के रूप में और एक ऐसे नागरिक के रूप में चुनाव मैदान में थे जिनको सर्वसमाज की मान्यता थी। लेकिन अखिलेश दास गुप्ता की रणनीतियों ने मंजूर अहमद को भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी डॉ दिनेश शर्मा के सामने बुरी तरह से पराजित होने के लिए मजबूर कर दिया। वह दिन और आज का दिन मंजूर अहमद लखनऊ से चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। यही स्थिति डा अखिलेश दास के सामने फिर से आ रही है। इस बार डा अखिलेश दास बसपा के धनाड्य प्रत्याशी के रूप में लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से खड़े हैं और यह संशय बरकरार है कि वह जीत पाएंगे।
समाजवादी पार्टी के पास लखनऊ में अभी तक डा मधु गुप्ता के रूप में ही प्रत्याशी हुआ करता था जो कि अटल बिहारी वाजपेयी से पराजित होती आई हैं। बसपा यहां पर कभी भी लड़ाई में मौजूद नहीं रही है। भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी के शारीरिक रूप से अशक्त होने के कारण इस बार समाजवादी पार्टी ने ऐसे व्यक्ति को प्रत्याशी के रूप में चुना था जो युवा है प्रसिद्ध है और जिसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीति से भी जुड़ी है। संजय दत्त को समाजवादी पार्टी के लखनऊ से प्रत्याशी बनाया था और जिस दिन समाजवादी पार्टी ने उन्हें यहां से प्रत्याशी घोषित किया था उसी दिन से लखनऊ लोकसभा क्षेत्र की फिजा समाजवादी पार्टी के इर्दगिर्द ही बन गई थी। सपा प्रत्याशी के रूप में जिस दिन संजय दत्त लखनऊ आए थे  तो उनका लखनऊ ने जोरदार स्वागत किया था और उनको सर आंखों पर बैठाया था। संजय दत्त ने उस दिन भी उन सवालों का सामना किया था जो उनके सजायाफ्ता होने से संबंधित है लेकिन इन सवालों का कोई असर लखनऊ की जनता पर दिखाई नहीं पड़ा। संजय दत्त के सपा प्रत्याशी घोषित होने के बाद लखनऊ में कुछ पोस्टर देखे गए थे जिनमें संजय दत्त को एके 47 से जोड़कर दिखाया गया था लेकिन लखनऊ की जनता ने तुरंत भांप लिया कि यह किसकी कारस्तानी हो सकती है। इसलिए संजय दत्त पर इस प्रकार की कोई भी चाल कामयाब नहीं हो पाई जिससे संजय दत्त निर्बाध रूप से लखनऊ की जनता के संपर्क आए और उन्हें भारी समर्थन मिला। अब सपा ने संजय दत्त को अपना राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त कर दिया है। उन्होंने स्वयं एक संवाददाता सम्मेलन में नफीसा अली के नाम की घोषणा की और कहा कि वह स्वयं नफीसाजी को यह चुनाव लड़वाएंगे और उन्हें यहां से ‍िजताकर ले जाएंगे।
संजय दत्त के रूप में नफीसा अली को लखनऊ से समर्थन मिलने का एक कारण यह भी है कि एक तो वह समाजसेविका हैं दार्शनिक हैं और उनकी ख्याति देशव्यापी है। दूसरे वे जातीय समीकरणों में भी फिट बैठती हैं क्योंकि लखनऊ में मुसलमान काफी हैं और मुसलानों का झुकाव समाजवादी पार्टी की तरफ है। यह भी एक कारण है कि संजय दत्त के चुनाव न लड़ने पर एक प्रतिक्रिया आई है जिसमें यह निराशा का अभाव है कि काश संजय दत्त ही प्रत्याशी होते। उन्होंने नफीसा अली को अपनी बहन के रूप में प्रस्तुत करते हुए जब यह कहा कि वे एक प्रकार से स्वयं ही यहां से चुनाव लड़ रहे हैं तो लखनऊ में उनके प्रति भावना का प्रवाह हुआ है। उन्होंने इस चुनाव प्रचार को अत्यंत सादगी दी है और लफ्फाजियों से दूर रहकर बिना लाग लपेट के अपनी बात कह रहे हैं। उनके पिता सुनील दत्त का लखनऊ से बहुत गहरा संबंध रहा है इसलिए उनके पिता के चाहने वाले भी नफीसा के चुनाव प्रचार में कूदे गए हैं। 

संजय दत्त ने लखनऊ में सपा के प्रचार का एक चक्र पूरा कर लिया है और अब वह जनसंपर्क पर आ गए हैं। उनसे लखनऊ की जनता की एक ही मांग है कि यदि वे राजनीति में उतरे हैं तो फिर वे फिर यहां की उपेक्षा कदापि न होने दें क्योंकि लखनऊ की जनता राजनीतिज्ञ प्रयोग बार-बार नहीं करती है। लखनऊ में तीसरे प्रत्याशी बसपा के अखिलेश दास गुप्ता की खराब छवि और राजधानी में मायावती की पत्थरों की मूर्तियों से उपजे आक्रोश का भी सपा को भरपूर लाभ मिल रहा है।

भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी लालजी टंडन, को लखनऊ में भाजपा का उतना ताकतवर प्रत्याशी नहीं माना जाता है लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उनका नाम जुड़ने से उनका बल और मनोबल ऊंचा हो गया है। उनका नाम मायावती के साथ भी जोड़ा जाता है और वह इसलिए कि उनका कभी मायावती के प्रति विरोधात्मक व्यवहार नहीं रहा है। जिस समय लालजी टंडन को भाजपा का लखनऊ से प्रत्याशी घोषित किया गया उस समय उनके विरोध में भाजपा में ही स्वर उठे और साथ ही लखनऊ की जनता ने भी उन्हें कोई दमदार प्रत्याशी नहीं माना। लखनऊ के नागरिकों का कहना था कि इनसे अच्छा चुनाव तो लखनऊ के मेयर डा दिनेश शर्मा ही लड़ जाते लेकिन भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी की इच्छा के विरुद्ध कोई नहीं जा सकता इसलिए अब लालजी टंडन ही नफीसा अली को टक्कर देंगे और दोनों का मुकाबला बहुत कम अंतर से छूटता नजर आएगा। भाजपा समर्थित गढ़ अभी अटल बिहारी वाजपेयी को मानकर ही वोट करेंगे लेकिन उनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिनकी सहानुभूति लालजी टंडन के साथ नहीं होगी। फिर भी यह लालजी टंडन की अच्छी किस्मत ही कही जाएगी कि वह मुकाबले में आ गए हैं और नफीसा अली उनकी निकटतम प्रतिद्वंद्वी समझी जा रही हैं। कुल मिलाकर यह चुनाव बहुत दिलचस्प मोड़ पर जा रहा है जिसमें देखना है कि कौन लखनऊ का माननीय सांसद होने का गौरव प्राप्त करेगा।

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