स्वतंत्र आवाज़
word map

भेदभाव की स्थिति महा भयानक-उपराष्ट्रपति

पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्‍वविद्यालय का दीक्षांत समारोह

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

दीक्षांत समारोह-convocation

नई दिल्ली। पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्‍वविद्यालय शिलांग के 19वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्‍ट्रपति मोहम्‍मद हामिद अंसारी ने कहा कि नागरिकों के कल्‍याण के लिए योजनाओं को लागू करने में धर्म, नस्‍ल, जाति, लिंग या क्षेत्र के हिसाब से किसी भेद-भाव के बिना समान अवसर उपलब्‍ध कराना राज्‍य की जिम्‍मेदारी है और यह समाज का भी कर्तव्‍य है। इस दिशा में इनके स्‍थापक संस्‍थानों की सहायता से कुछ किया गया है और कुछ किया जाना अभी बाकी है। अंसारी ने कहा कि समानता की अवसरों का बहुत बड़ा संबंध आदि-आबादी यानी लैंगिक समानता से है और इस दिशा में कुछ किया जाना है।

उन्होंने 6 वर्ष तक के बच्‍चों में बढ़ते लिंगानुपात पर गहरी चिंता जताई। सन् 1961 से ही इस अनुपात में भारी गिरावट देखी गई है और 2011 की जनगणना में यह गिरकर 914 तक पहुंच गया। मेघालय और मिजोरम में भी शिशु लिंग अनुपात क्रमश: 970 और 971 रह गया है। विश्‍व बैंक की दस दिन पहले जारी विश्‍व विकास रिपोर्ट 2012 का जिक्र करते हुए उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि लैंगिक स्‍तर पर समानता विकास के महत्‍वपूर्ण कारकों में शामिल है और अच्‍छी अर्थव्‍यवस्‍थाओं के लिए आवश्‍यक है। मानव संसाधन मुदों पर ठोस कार्रवाई की अपील के साथ ही उपराष्‍ट्रपति ने महिलाओं और पुरूषों की आय और उत्‍पादकता में अंतर को भी कम करने की और घर के अंदर और समाज में महिलाओं को सशक्‍त बनाने की अपील के साथ इस रिपोर्ट ने पहली बार सभी पीढि़यों में लैंगिक और समानता कम करने की बात कही है। यह काफी अहम है कि असमानता भेद-भाव और इस मामले में चली आ रही कुप्रथाएं अगली पीढि़यों तक न पहुंच सके।

उन्‍होंने कहा कि भेदभाव की यह तस्‍वीर काफी स्‍पष्‍ट और विचलित करने वाली है। आजादी के 4 दशक के बाद भी इस भेदभाव के कारण ही यह स्थिति बनी रही थी कि कोई महिला अपने पति का नाम बताये बगैर अपने बच्‍चे को उसकी नागरिकता नहीं दिला सकती थी और घरेलू हिंसा की रोकथाम के लिए कानून बनाने में तो हमें 5 दशक लग गए लेकिन आज स्थिति यह है कि कोई महिला अपनी नागरिकता जाति, जनजातीय या डोमिसाईल स्थिति अपने बच्‍चे को बिना किसी समस्‍या के उपलब्‍ध करा सकती है और अपने क्षेत्र में और अपने समुदाय को मिलने वाले कानूनी लाभों का फायदा भी उन्‍हें दिला सकती है, जिससे किसी स्‍तर पर भेदभाव की गुंजाइश नहीं रहेगी, कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि असमानताओं की इस स्थिति में महिलाएं हमेशा पुरूषों से पीछे है और न्‍यायमूर्ति कृष्‍णा अय्यर ने तो खुद एक बार कहा था ‘जहां पुरूष बनाम महिला का मामला हो तो वहां हमारा कानून खुद असहाय हो जाता है।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]