स्वतंत्र आवाज़ डोट कॉम
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में विचार-विमर्श में शामिल कुछ मुद्दों पर हालांकि अलग-अलग विचार आए हैं, लेकिन 12वीं पंचवर्षीय योजना में तय किए गए लक्ष्यों एवं चिन्हित चुनौतियों पर व्यापक सहमति बनी है, जो इस पत्र को अंतिम रूप देने का आधार होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि राज्यों के प्रतिनिधियों के सामने दो आम मुद्दे उभर कर आए हैं, इनमें से एक केंद्र प्रायोजित योजनाओं के संचालन से संबंधित है। कई मुख्यमंत्रियों ने कहा कि ये योजनाएं विशेष समस्याओं का सामना कर रहे राज्यों के लिए बहुत अनुकूल नही हैं, इसलिए मैं इसके लिए चिंतित हूं। बी के चतुर्वेदी समिति ने इन मुद्दों की समीक्षा की है। चतुर्वेदी समिति से संबंधित रिपोर्ट में इन सभी मुद्दों पर विचार किया जाएगा और इसकी सिफारिशों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी, ताकि इसके परिणामों को 12वीं पंचवर्षीय योजना में शामिल किया जा सके।
उन्होंने कहा कि दूसरा मुद्दा, वित्तीय स्थिरता के उपाय से संबंधित मुद्दों के बारे में राज्यों के साथ अपर्याप्त परामर्श तथा कई राष्ट्रीय महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों के कारण राज्यों द्वारा सामना किए जा रहे राजकोषीय भार से संबंधित हैं। नितीश कुमार ने भी कुछ मुद्दे उठाए। गत दशक में राज्यों की वित्तीय स्थिति के सुधार के लिए केंद्र सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जो काफी हद तक सफल रहे हैं, लेकिन संसाधनों की कमी है, जिससे इंकार नहीं किया जा सकता, आज संघ के कई राज्यों की स्थिति अच्छी और केंद्र की तुलना में इनकी वित्तीय स्थिति मजबूत है। दृष्टिकोण पत्र में व्यक्त किए गए अनुमानों के अनुसार 12वीं योजना अवधि के अंत तक योजना निधि में राज्यों का अंश केंद्र की तुलना में ज्यादा होगा, यदि राज्यों को आवंटित सीएसएस भी शामिल कर लिया जाए। इसलिए राज्यों को चाहिए कि वे अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए उपाय करें और अपने संसाधनों को बढ़ाने के लिए प्रयास करें।
प्रधानमंत्री ने कहा कि राज्यों ने कुछ ऐसे भी रोचक मुद्दे उठाए हैं, जिनका वे सामना कर रहे हैं, 12वीं पंचवर्षीय योजना को अंतिम रूप देते समय इन मुद्दों का जरूर ध्यान रखा जाएगा। कुछ राज्यों ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि किसी भी राज्य से कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए, इस पर मैं ज्यादा सहमत नहीं हूं, मैं आश्वस्त करता हूं कि केंद्र संघ के सभी राज्यों से ईमानदारी और पारदर्शिता बरतने के लिए प्रतिबद्ध है, यदि कोई भेदभाव की धारणा है तो यह सिर्फ एक धारणा है जो वास्तविकता पर आधारित नहीं है। यह सत्य है कि हम पिछड़े राज्यों की ज्यादा सहायता करते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता है कि हम विकसित राज्यों से भेदभाव कर रहे हैं। विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सभी प्रश्नों का उत्तर मैं नहीं दे रहा हूं।