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लखनऊ। प्रेस परिषद के निवर्तमान अध्यक्ष न्यायमूर्ति जीएन रे ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, माध्यम और खतरे विषय पर हिंदी समाचार-पत्र सम्मेलन के गोमतीनगर स्थित मीडिया सेंटर में एक विचार गोष्ठी को संबोधित किया और कहा कि आज मीडिया का निगमीकरण एक खतरनाक संकेत है, मीडिया घरानों के कारपोरेट घरानों के स्वार्थो के साथ खड़े होने से आज मीडिया की आलोचना की जा रही है, फिर भी हम मीडिया को नियंत्रित किए जाने या उसे प्री सेंसर किए जाने के पक्षधर नहीं हैं।
न्यायमूर्ति रे ने कहा कि वे मीडिया को नियंत्रित करने के प्रेस परिषद के मौजूदा अध्यक्ष की राय से सहमत नहीं हैं, मीडिया जनता की आवाज़ है और भारतीय लोकतंत्र में मीडिया की हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
उन्होंने कहा कि यह बात भी काफी हद तक सही है कि मीडिया आज खास समूह की आवाज़ को उठा रहा है, लेकिन यह अपवादस्वरूप है। भारत के मीडिया का इतिहास दो सौ तीस साल पुराना है, कम प्रसार के समाचार-पत्रों का भी समाज पर असर होता है और वह लोगों को प्रेरणा देते हैं, मीडिया ही समाज का आईना है, मीडिया ही है जो कि बहुत से सरकारी गैर सरकारी गलत कार्यो पर रोक लगाने का काम कर रहा है, मीडिया को और ज्यादा जबाबदेह और जिम्मेदार होना चाहिए। पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी ने भी कहा कि मीडिया आमजन की आवाज के बजाय वर्ग विशेष के समूहों की ही खबरें दे रहा है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति सैयद हैदर अब्बास रजा ने कहा कि मीडिया को स्वयं अपनी निगरानी इकाई बनाना चाहिए, कोई सरकार या निगरानी अथारिटी इसे नियंत्रित करे यह उचित नहीं है, उन्होंने कहा कि इसी के साथ इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि मीडिया को पुष्टि करके तथा सही खबरें ही देनी चाहिएं। उन्होंने अयोध्या मामले की रिपोर्टिंग का संदर्भ लिया और कहा कि उस समय जिस प्रकार का व्यवहार मीडिया ने किया उसकी आलोचना प्रेस परिषद ने भी की थी। मीडिया कौंसिल के बारे में जस्टिस रजा ने कहा कि प्रेस मीडिया तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए एक अथारिटी हो यह उचित नहीं रहेगा, अखबारों को ओंबुसमैन रखना चाहिए जिससे वे अपनी कमियों को स्वयं जांच सकें।
उन्होंने कहा कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारों की बड़ी भूमिका रही है, गुलामी के दौर में जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं थी, उस समय भी आजादी में अखबारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निर्बाध स्वतंत्रता नहीं है, इसे लोगों को नहीं भूलना चाहिए।
न्यायमूर्ति रजा ने पुराने दिनों की याद करते हुए कहा कि पहले अखबारों में संपादकों का काफी सम्मान होता था, मैनेजर की राय नहीं चलती थी। उन्होने कहा कि अयोध्या मामले में मुझसे एक गलती हुयी थी की मेरे समय में ही अयोध्या मामले को फैजाबाद से इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में स्थानांतरित किया गया। न्यायमूर्ति जीएन रे को समाचार-पत्र सम्मेलन के संरक्षक शीतला सिंह, उपाध्यक्ष राजीव अरोड़ा, मंत्री रजा रिजवी, महामंत्री सुमन गुप्ता, कोषाध्यक्ष प्रदीप जैन ने शाल ओढ़ाकर तथा प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया। केसी मिश्रा, मेजर एसएन त्रिपाठी, राज्य मुख्यालय पर मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति के उपाध्यक्ष मुदित माथुर, एपी दीवान, दुर्गेश शुक्ला, रामकिशोर, अधिवक्ता इंदू सिंह, अरविंद शुक्ला, हरिराम त्रिपाठी, नरेंद्र बहादुर सिंह, दिनेश वर्मा, एलएन मिश्रा आदि ने भी संबोधित किया।