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नई दिल्ली। तेल कंपनियों का दावा है कि उनका घाटा एक लाख 32 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। भारत जो कच्चा तेल लेता है, वर्ष 2010-11 के दौरान उसकी औसत कीमत 85.09 अमरीकी प्रति बैरल रही। उसमें मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान 30 प्रतिशत वृद्धि हो गयी है और यह कीमत लगभग 110 डॉलर प्रति बैरल हो गई है। तेल कंपनियों का कहना है कि स्थिति उस समय और ज्यादा खराब हो गई, जब रुपए का अवमूल्यन हो गया और प्रति डॉलर 45 रुपये से गिर कर वह 49 रुपये प्रति डॉलर हो गया। रुपए की कीमत में एक रुपये गिरावट आने पर तेल कंपनियों का घाटा आठ हजार करोड़ रुपये हो जाता है। तेल कंपनियां मिट्टी के तेल, पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के संबंध में लगातार घाटा झेल रही हैं और इन तीनों पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री में होने वाला घाटा एक लाख 32 हजार करोड़ रुपये तक होने की संभावना है। पिछले वर्ष यह घाटा 78 हजार 190 करोड़ था। इसके अलावा तेल कंपनियों को एक लाख 29 हजार 989 करोड़ रुपये के ऋण का बोझ भी उठाना पड़ रहा है, जो क्रियाशील पूंजी और कच्चे तेल के आयात में लगने वाली डॉलर मुद्रा के कारण है।
उधर पेट्रोल की बढ़ी कीमतों से नाराज़ यूपीए की सहयोगी तृणमूल कांग्रेस के मंत्रियों ने अपना इस्तीफा तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी को सौंप दिया है। सभी सांसदों को भी दिल्ली में रहने को कहा गया है, मंगलवार को ममता बनर्जी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात कर तेल कीमतें वापस करने पर दबाव बनाएंगी। उल्लेखनीय है कि ममता बनर्जी ने पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोत्तरी से भारी नाराजगी जताई है और उन्होंने यूपीए से समर्थन वापस लेने की बात भी कही थी। ममता बनर्जी और विपक्ष का दबाव देखकर सरकारी तेल कंपनियां पेट्रोल के कुछ दाम घटाने की तैयारी में लगती हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी कच्चे तेल की कीमतों में तीन डॉलर प्रति बैरल की कमी आई है, साथ ही सरकार के सहयोगी दलों की नाराजगी को देखते हुए तेल कंपनियों ने शायद दाम में कटौती करने का फैसला किया है।