स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
अड्डू सिटी। मालदीव। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मालदीव में आकर बहुत अभिभूत हुए। उन्होनें यहां की प्राकृतिक सुंदरता को अतुलनीय बताया और कहा कि 17वें सार्क शिखर सम्मेलन के लिए अड़्डू अटोल से बेहतर जगह कोई नहीं हो सकती। मालदीव की जनता और सरकार की बेहतरीन व्यवस्था और स्वागत के लिए तहेदिल से शुक्रिया अदा करते हुए मनमोहन सिंह ने अपने लक्ष्यों को साधना शुरू किया। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया में शांति संपन्नता और सहयोग बढ़ाने और सार्क को एक प्रभावी संगठन बनाने के लिए भारत अपनी क्षमताओं के अनुरूप जो कुछ भी संभव होगा करेगा। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षो में संगठन ने प्रभावकारी प्रगति की है, और सहयोग की गति और उसका दायरा बढ़ा है, पिछले शिखर सम्मेलन में भारत के विदेश मंत्री, गृहमंत्री, वित्त मंत्री, परिवहन मंत्री, पर्यटन मंत्री, वाणिज्य मंत्री, ऊर्जा मंत्री और पर्यावरण मंत्री ने मुलाकात की और सभी का यह मानना है कि क्षेत्रीय सहयोग, दक्षिण एशिया के सभी देशों के लिए अच्छा है।
मनमोहन सिंह ने कहा कि ये शिखर सम्मेलन ऐसे समय मे हो रहा है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था बेहद दबाव में है, विकास के लिए की जा रही हमारी कोशिशों पर इसका असर पड़ रहा है, हम आशा करते हैं कि प्रमुख बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के नेता और खासतौर से यूरो जोन के नेता समझदारी का परिचय देंगे, जिसकी जरूरत वैश्विक अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए है। उन्होंने कहा कि हमें दक्षिण एशिया में निवेश और विकास के संसाधन तथा नये रास्ते सृजित करने के लिए कल्पनाशीलता का इस्तेमाल करना चाहिए, मेरा मानना है कि हम अपने देश में ही विकास के लिए अनुकूल माहौल बना सकते हैं, ऐसे में हमारे निवेशकों को कहीं और जाने की जरूरत नहीं है। सार्क देशों के बीच सामान्य व्यापारिक संबंध स्थापित होने से दक्षिण एशिया के भीतर आपसी लाभकारी व्यापार के लिए बड़े पैमाने पर अवसर पैदा होंगे।
उन्होंने कहा कि इस साल के शिखर सम्मेलन का थीम है -संपर्क निर्माण। यह अपने आप में व्यापक स्तर पर क्षेत्रीय एकीकरण और सहयोग को दर्शाता है, यह एक ऐसा लक्ष्य है, जिसे लेकर भारत पूरी तरह वचनबद्ध है, हमें निवेश प्रवाह पर सार्क समझौते को अंतिम रूप देने की गति को और तेज करना चाहिए, हमारा क्षेत्रीय वायु सेवा समझौते को पूरा करने का लक्ष्य होना चाहिए, इसके लिए अधिकारियों की अगले साल बैठक आयोजित करने पर भारत को खुशी होगी। मनमोहन सिंह बोले कि हम काफी लंबे समय से क्षेत्रीय रेलवे समझौते और मोटर वाहन समझौते पर बात कर रहे हैं, अब हमें वरीयता स्तर पर इन समझौतों को पूरा करने के लिए सामर्थ्य होना चाहिए। भारत, मालदीव और श्रीलंका क्षेत्रीय नौका सेवा विकसित करने की प्रक्रिया में हैं, हम लोग ऐसी ही व्यवस्था उप महाद्वीप के दूसरे हिस्सों में भी कर सकते हैं। दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम की शुरूआत जुलाई 2010 से कर दी गई है, भारत दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालयों के लिए सार्क सिल्वर जुबली स्कॉलरशिप की संख्या को बढ़ाकर 50 से 100 कर देगा, इनमें से 75 स्कॉलरशिप स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए और 25 स्कॉलरशिप पीएचडी के लिए दिये जाएंगे।
उन्होंने कहा कि हम हर साल सार्क के सदस्य देशों को वानिकी विषय में स्नातकोत्तर और पीएचडी की पढ़ाई के लिए दस स्कॉलरशिप देंगे, यह पाठ्यक्रम भारतीय वानिकी शोध संस्थान देहरादून में उपलब्ध होगा। सार्क हमें एक अनूठा मंच उपलब्ध कराता है, जहां हम अपने मतभेदों को भुलाकर एक बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में काम करते हैं, अभी हमें काफी लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन हमें पूरा विश्वास है कि हम अपने सतत प्रयासों के जरिये अपनी सही क्षमताओं को साकार कर सकते हैं। हम लोगों को एक-दसूरे से सीखने की जरूरत है और हम लोगों को एक दूसरे पर विश्वास करने की जरूरत है। सार्क देशों में सुरक्षा और स्थायित्व एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं, हमसे कोई भी देश एक दूसरे से अलग होकर संपन्न नहीं हो सकता, अपनी महत्वाकांक्षाओं और सुनहरे सपनों की राह में हम कई सारी समस्याएं, जिनका हम सामना करते हैं आने की अनुमति नहीं दे सकते। उन्होंने कहा कि मालदीव के राष्ट्रपति को सार्क संगठन का अध्यक्ष चुने जाने पर हम उनके नेतृत्व में सार्क का बेहतर भविष्य देखते हैं। मनमोहन सिंह ने भारत की तरफ से पूर्ण सहयोग का भरोसा दिया और सार्क के निवर्तमान अध्यक्ष और भूटान के प्रधानमंत्री का आदर्श तरीके से प्रबंधन के लिए धन्यवाद दिया।
मालदीव में मनमोहन सिंह की पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ गिलानी के साथ बैठक भी सोहार्दपूर्ण और दोस्ती के रास्ते पर जाती दिखी। मनमोहन सिंह ने अड्डू अटोल में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन कहा कि मैं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का शांति में यकीन रखने वाले व्यक्ति के रूप में हमेशा से सम्मान करता हूं, पिछले तीन सालों के दौरान जब भी हमारी मुलाकात हुई, मेरा यह विश्वास और मजबूत हुआ है, आज हम लोगों ने दोनों देशों के बीच संबंधों को लेकर गहन विचार-विमर्श किया, हम लोगों ने पिछले साल थिम्फू में एक नई प्रक्रिया की शुरूआत की थी, बातचीत की उस प्रक्रिया ने हमें कुछ सकारात्मक परिणाम दिये, लेकिन इस दिशा में अभी और प्रयास किये जाने की जरूरत है, इसलिए हमने ये तय किया है कि बातचीत को दोबारा शुरू किया जाएगा, ये बातचीत इस उम्मीद के साथ शुरू की जाएगी, जिसमें उन सभी मुददों पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाएगा, जिसकी वजह से दोनों देशों के बीच अविश्वास पैदा हो गया था।
मनमोहन सिंह ने कहा कि मेरा हमेशा से ये मानना रहा है कि भारत और पाकिस्तान के लोगों की किस्मत एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई है, ये कुछ इस तरह आपस में जुड़े हुए हैं कि बीते दिनों में हमने कटुतापूर्ण बातचीत में काफी वक्त गवां दिया है, अब वह समय आ गया है, जब हम अपने संबंधों के इतिहास में एक नया अध्याय लिखें और मुझे इस बात की खुशी है कि प्रधानमंत्री गिलानी ने इस विचार का पूरी तरह से समर्थन किया है कि हमारे पास एक सुनहरा अवसर है और अगले दौर की बातचीत ज्यादा से ज्यादा फलदायक होनी चाहिए, ताकि दोनों देशों को एक-दूसरे के इतना करीब लाया जा सके, जैसा पहले कभी नहीं हुआ।