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नई दिल्ली। उपभोक्ताओं से बड़ी संख्या में आ रहीं शिकायतों के मद्देनज़र भारत सरकार झूठे और भ्रामक विज्ञापनों की प्रभावी तरीके से जांच करने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समिति के गठन पर विचार कर रही है। भारत की विज्ञापन मानक परिषद के ‘विज्ञापन की विषय वस्तु के स्व विनियमन सुदृढ़ीकरण’ पर आयोजित एक सम्मेलन में उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री प्रो केवी थॉमस ने भ्रामक विज्ञापनों के बार में कहा कि ऐसे विज्ञापनों को छपने से पहले ही रोकने की ज़रूरत है, ताकि यह मासूम उपभोक्ताओं को हानि न पहुंचा सकें, इसके लिए मौजूदा कानून को कारगर बनाने और स्व विनियामक तंत्र को सुदृढ़ बनाने की ज़रूरत है।
उन्होंने कहा कि बेशक उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, उपभोक्ताओं को गलत व्यापार कार्यों से सुरक्षा प्रदान करता है और भ्रामक विज्ञापनों के बारे में उपभोक्ता अदालतों ने काफी बढि़या निर्णय भी दिए हैं, लेकिन उनके पास विज्ञापनों के निरीक्षण का अधिकार नहीं है और ना ही उनके पास कोई जांच एजेंसी है। वह झूठे और भ्रामक विज्ञापनों के लिए उपभोक्ताओं को मुआवज़ा तो दिला सकती हैं, लेकिन ऐसे विज्ञापनों पर नकेल कसने के लिए कोई मशीनरी नहीं है। इनके पास सुधारात्मक विज्ञापनों के लिए निर्देश जारी करने का अधिकार है, लेकिन यह निर्देश तभी प्रभावी हो सकते हैं, जब यह सामने आने के तुरंत बाद ही जारी हों। उन्होंने कुछ मुकदमों के उदाहरण दिए और कहा कि फैसले में देरी के कारण लोग भ्रामक विज्ञापनों के बुरे परिणामों से नहीं बच पाए।