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नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने मंगलवार को लोकसभा में । 4 अगस्त 2011 को सदन में सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव के उत्तर में अपनी ओर से भारत में मुद्रास्फीति की स्थिति पर एक वक्तव्य सदन के पटल पर रखा, जिसमें उन्होंने आशा व्यक्त की कि अगले साल मार्च अंत तक मुद्रास्फीति 6 से 7 फीसदी तक रह जाएगी। उन्होंने शुरू में कहा कि हालांकि भारत में मुद्रास्फीति की स्थिति में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है, लेकिन वांछित निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य करने हैं। उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्ष, खासकर अगस्त 2011 से मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय कमी न आने के कारणों पर विस्तार से बताया और कहा कि नीति का एक ढांचा तैयार किया गया है, जिससे उन्हें आशा है कि अगले 6 से 12 महीनों में मुद्रास्फीति की दर में ठोस कमी आएगी।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि थोक मूल्यों के सूचकांक (डब्ल्यू पी आई) संबंधी मुद्रास्फीति जनवरी 2010 से ऊंची रही है। अप्रैल 2010 में मुद्रास्फीति 10.9 प्रतिशत थी और इसके नीचे आने के संकेत थे और नवंबर 2010 में यह 8.2 प्रतिशत रह गई। दुर्भाग्य से इसमें फिर वृद्धि हुई और यह दिसंबर 2010 से 9 प्रतिशत से भी अधिक रही है और अक्तूबर 2011 में मुद्रास्फीति की दर 9.7 प्रतिशत थी, तथापि, खाद्य मुद्रास्फीति जहां फरवरी 2010 में लगभग 22 प्रतिशत थी वहां जून 2011 में गिरकर 8 प्रतिशत से नीचे आ गई और अक्तूबर 2011 में यह 11.1 प्रतिशत और 5 नवंबर 2011 को 10.6 प्रतिशत रह गई है।
वित्त मंत्री ने वक्तव्य में बताया कि जब उन्होंने पिछली बार अगस्त 2011 में सदन में मुद्रास्फीति के मामले पर चर्चा की थी तब से कुल मिलाकर डब्ल्यू पी आई मुद्रास्फीति स्थिर रही है। यह अगस्त 2011 में 9.8 प्रतिशत और सितंबर तथा अक्तूबर 2011 में 9.7 प्रतिशत थी। इस अवधि के दौरान खाद्य मुद्रास्फीति पहले अगस्त में गिरकर 9.6 प्रतिशत और सितंबर में 9.2 प्रतिशत रह गई, लेकिन अक्तूबर में बढ़कर 11.1 प्रतिशत हो गई, तथापि गैर-खाद्य प्राथमिक मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय कमी आई। यह जहां अगस्त में 18.2 प्रतिशत थी, वहां अक्तूबर में 7.7 प्रतिशत रह गई। निर्मित माल की मुद्रास्फीति भी 7.9 प्रतिशत से गिरकर 7.7 प्रतिशत रह गई।
उन्होंने कहा कि इन तीन महीनों में कुछ खाद्य वस्तुएं जैसे फलों और सब्जियों, अंडे, मांस, मछली और दूध की कीमतों में वृद्धि के कारण खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ी है। खाद्य वस्तुओं में अनाज की औसतन मुद्रास्फीति अगस्त से अक्तूबर, 2011 अवधि में 4.7 प्रतिशत रही है। इसमें गेंहू की मुद्रास्फीति नकारात्मक रही। दलहन में भी मुद्रास्फीति अगस्त में 4.3 प्रतिशत और सितम्बर, 2011 में 2.8 प्रतिशत अर्थात् नकारात्मक रही।
वित्त मंत्री ने कहा कि मुद्रास्फीति मांग और आपूर्ति में असंतुलन के कारण होती है। तेजी से होने वाली वृद्धि और ढांचागत परिवर्तन के समय में, जिस दौर से इस समय भारत गुजर रहा है, मुद्रास्फीति का बढ़ना स्वाभाविक है। हमने सभी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में इसे होते हुए देखा है, जैसा कि चीन, दक्षिण कोरिया और वियतनाम से अर्जेंटीना और ब्राजील में देखा गया है। घरेलू मांग और आपूर्ति अवयवों, जिनके कारण भारत में मुद्रास्फीति की वर्तमान स्थिति उत्पन्न हुई है, की चर्चा करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा कि जब मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन होता है, ऐसे में दो काम करने चाहिए-एक तो आपूर्ति बढ़ायी जाए और दूसरी मांग को मध्यम स्तर तक रखा जाना चाहिए, लेकिन यह सदा संभव नहीं होता कि अल्पावधि में आपूर्ति को वांछित स्तर तक बढ़ाया जा सके। उसके लिए हमें या तो आयात का सहारा लेना पड़ता है या निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ता है और ऐसे उपाय करने पड़ते हैं, जिनसे आपूर्ति बढ़ सके। जहां तक मांग का संबंध है, सिद्धांत रूप में इसे संकुचित करना और वित्तीय नीतिगत नियंत्रण के जरिए सीमित करना संभव है, पर इसमें खतरा यह रहता है कि यदि यह तेजी से किया जाता है, तो इसमें विकास में गिरावट आती है और परिणामस्वरूप बेरोजगारी बढ़ती है।
उन्होंने कहा कि हाल के पिछले समय में सतत उच्च आर्थिक विकास से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लोगों की क्रय क्षमता में सुधार हुआ है। 12वीं योजना के दृष्टिकोण पत्र से पता चलता है कि 2007 और 2010 के बीच औसतन वास्तविक मजदूरी दर अखिल भारतीय स्तर पर 16 प्रतिशत तक बढ़ी है। आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा 42 प्रतिशत और ओडि़शा में 33 प्रतिशत वृद्धि हुई है, यहां तक कि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में वास्तविक खेतिहर मजदूरी भी इस अवधि के दौरान क्रमश: 19 से 20 प्रतिशत तक बढ़ गई। इससे कुछ खास वस्तुओं और सेवाओं की मांग में वृद्धि हुई, जिसका परिणाम अर्थव्यवस्था में उच्च मुद्रास्फीति रहा, जबकि आपूर्ति अपर्याप्त रही है और मौसम के अनुकूल न रहने के कारण खाद्य अर्थव्यवस्था में कमी महसूस की गई, जो मुद्रास्फीति के कारण बने।
केंद्रीय वित्त मंत्री ने मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करने के लिए समय-समय पर सरकार के प्रशासनिक उपायों का भी उल्लेख किया। उन्होंने सदन को आश्वासन दिया कि सरकार अधिक स्वीकार्य स्तरों तक मुद्रास्फीति को नीचे लाने के लिए वचनबद्ध है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि मार्च अंत तक मुद्रास्फीति 6 से 7 फीसदी तक रह जाएगी। इस समस्या से निपटने के लिए जहां सरकार अपनी ओर से सभी उपाय कर रही है वहां सदन के सदस्यों से भी सुझावों की आशा की है, जिनसे इस समस्या के समाधान में सहायता मिल सकेगी।