स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
नई दिल्ली। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2005-06 के अनुसार 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग की हिंदू तथा मुस्लिम महिलाओं में ऊर्जा की दीर्घकालीन कमी पाई जाती है। क्रमश: 55.9 प्रतिशत और 54.7 प्रतिशत महिलाएं रक्ताल्पता से ग्रस्त हैं। कुपोषण एक जटिल, बहुआयामी और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाली समस्या है। पोषण की चुनौतियों का सामना करने का तरीका दोहरे आयाम वाला है। सभी क्षेत्रों की पोषण की ओर लक्षित स्कीमों, कार्यक्रमों में कुपोषण के कारकों के संबंध में त्वरित कार्रवाई हेतु बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण लिया जाता है। चूंकि बहुक्षेत्रक दृष्टिकोण के परिणाम देर से दिखाई देते हैं और जब उसे एक साथ कार्यान्वित किया जाता है तो काफी समय में लोगों पर इसका प्रभाव धीरे-धीरे फैलता है। इस दृष्टिकोण का दूसरा भाग प्रत्यक्ष और विशिष्ट उपाय है जो असुरक्षित वर्गों की ओर लक्षित होता है, जैसे कि 6 वर्ष से कम आयु के बच्चे, किशोरियां, गर्भवती और धात्री माताएं।
सरकार ने कुपोषण की समस्या को प्राथमिकता दी है और राज्य सरकारों, संघ राज्य प्रशासनों के माध्यम से विभिन्न मंत्रालयों, विभागों की बहुत-सी स्कीमों का कार्यान्वयन हो रहा है, जो बच्चों के पोषण स्तर को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। कई स्कीमों अर्थात समेकित बाल विकास सेवा स्कीम, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, मध्याह्न भोजन स्कीम, सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम का हाल ही के वर्षों में प्रसार बढ़ाने तथा लोगों को अच्छी सेवाएं प्रदान करने के लिए विस्तार किया गया है, कुछ ही समय में इन स्कीमों का प्रभाव दिखाई देने लगेगा।
इसके अलावा, पोषण की स्थिति में सुधार के लिए व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से लोगों की पोषण शिक्षा, कई स्कीमों जैसे आईसीडीएस, एनआरएचएम आदि के एक समेकित घटक का निर्माण करती है और मॉस मीडिया, प्रिंट मीडिया, जनसम्पर्क माध्यमों आदि जैसे अलग-अलग मीडिया माध्यमों से भी इसे शुरू किया गया है। यह जानकारी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री कृष्णा तीरथ ने राज्यसभा में लिखित उत्तर में दी है।