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लखनऊ।लखनऊ बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष देवेन्द्र विश्वकर्मा और दिलीप श्रीवास्तव ने अपने संयुक्त बयान में राज्य सरकार पर कोर्ट परिसर की सुरक्षा की अनदेखी का आरोप लगाया है। इन नेताओं ने कहा है कि दूसरों को न्याय दिलाने वाले अधिवक्ताओं की सुरक्षा के प्रश्न पर राज्य सरकार मौन है। पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा सम्बंधी योजना रचना शासन की स्वीकृति के लिए भेजी थी लेकिन अभी तक उसे स्वीकृति नहीं दी गई है।
दोनो नेताओं ने लखनऊ के डीआईजी/वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को सम्बोधित एक पत्र में कहा है कि 23 नवम्बर 2007 को लखनऊ सिविल कोर्ट परिसर में आतंकवादियों ने बम विस्फोट किया था। इस घटना के बाद से लखनऊ की कचहरी पर आतंकी घटना की संभावना बनी हुई है। न्यायालय परिसर की सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए जिला प्रशासन ने निर्देश भी दिये जिसके फलस्वरूप सिविल कोर्ट परिसर के गेट पर पुलिसकर्मी तैनात हैं। मगर डोर मेटल डिटेक्टर खराब पड़े हैं। सीसी कैमरा व अन्य बम निरोधक उपकरण नहीं लगाये गये हैं। जिलाधिकारी परिसर के गेट पर कोई भी पुलिसकर्मी तैनात नहीं है। सिविल कोर्ट परिसर के सामने कैसरबाग का अस्थाई बस स्टैण्ड है। काफी संख्या में नागरिकों का आवागमन रहता है। भारी संख्या में वाहन खड़े रहते हैं।
लखनऊ में कोर्ट परिसर की सुरक्षा के बारे में अधिवक्तागण लगातार सशंकित रहते हैं। इससे पहले भी कई अधिवक्ता शासन और प्रशासन के सामने कोर्ट परिसर की सुरक्षा का मामला उठाते रहें हैं। तेईस नवंबर की घटना के बाद राज्य सरकार ने कोर्ट परिसर की सुरक्षा के जो दावे किए थे वे अभी तक झूठ ही साबित हुए हैं, जिससे पता चलता है कि सरकार ऐसे महत्वपूर्ण स्थानों के प्रति कितने गैरजिम्मेदार है। डीआईजी लखनऊ ने सुरक्षा के प्रति अधिवक्ताओं को जो भरोसा दिया है वह कितना विश्वसनीय है यह इस बात पर निर्भर करेगा कि शासन को जो प्रस्ताव भेजा गया है वह स्वीकृत होता है कि नहीं। फिलहाल लखनऊ कोर्ट परिसर की सुरक्षा की चिंता अपनी जगह कायम है।