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भारतीय साहित्य में कानपुर का बड़ा योगदान

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कैरियर मानीटर का लोकार्पण-release of Career monitor

कानपुर। कानपुर सिर्फ एक नगर का नाम नहीं है, बल्कि सभ्यता-संस्कृति-साहित्य की लम्बी परम्परा का नाम है। इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए होरी एवं यूएसएम पत्रिका के तत्वाधान में मर्चेंट चेम्बर्स सभागार, कानपुर पिछले पखवाड़े 'भारतीय साहित्य में कानपुर क्षेत्र का योगदान विषय पर विचार गोष्ठी हुई। आदि कवि बाल्मीकि द्वारा बिठूर में रचित रामायण, कवि भूषण, बीरबल से लेकर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रताप नारायण मिश्र, गया प्रसाद शुक्ल स्नेही, जगदम्बा प्रसाद हितैषी, बालकृष्ण शर्मा नवीन, हसरत मोहानी, गणेश भास्‍कर विद्यार्थी, श्याम लाल गुप्त पार्षद, भगवती चरण वर्मा की गौरवशाली विद्वत परम्परा यहीं की देन है। साहित्य के तमाम दिग्गजों ने विभिन्न क्षेत्रों से आकर कानपुर को अपनी कर्मभूमि बनाया तो यहां के तमाम साहित्यकार-पत्रकार देश भर में घूम-घूम कर अलख जगाते रहे हैं।
पद्मश्री
गिरिराज किशोर ने मुख्य वक्ता के रूप में कानपुर में साहित्य एवं पत्रकारिता की परम्परा पर विस्तृत प्रकाश डाला एवं युवा पीढ़ी को इससे जोड़ने की अपील की। उन्होंने कानपुर के साहित्यिक इतिहास को उद्धृत करते हुए कहा कि यह शहर बालकृष्ण शर्मा नवीन, सनेही जी, गणेश शंकर विद्यार्थी एवं पार्षद जी जैसी विभूतियों का है पर हमारी नई पीढ़ी इनके कार्यों को आगे बढ़ाने में सफल नहीं रही। उन्होंने कहा कि इलाहाबाद, लखनऊ, बनारस जैसे शहरों की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाली कालजयी रचनाएं भला कौन नहीं जानता होगा, पर कानपुर दुर्भाग्यशाली ही रहा। मूर्धन्य साहित्यकारों और पत्रकारों के शहर का होने के बाद भी अब तक कानपुर (कम्पू) पर कालजयी रचना प्रकाशित नहीं हुई। मुख्य अतिथि एवं कबीर शांति मिशन के संस्थापक राकेश कुमार मित्तल, आईएएस ने साहित्य की प्रत्येक विधा में कानपुर के योगदान को सराहा और जीवन मूल्यों की स्थापना में साहित्य के अप्रतिम योगदान की चर्चा की। अध्यक्षता कर रहे मानस संगम के संयोजक पं बद्री नारायण तिवारी ने कानपुर की गौरवशाली परम्परा को दोहराते हुए कहा कि नगर के साहित्य ने वैश्विक पहचान बनाई है। उन्होंने इस कड़ी में नगर में मानस संगम द्वारा स्थापित शहीद उपवन की भी चर्चा की, जिसके माध्यम से क्रान्तिकारियों एवं क्रान्तिकारी रचनाओं को संजोया गया है।
संगोष्ठी
में युवा साहित्यकार एवं भारतीय डाक सेवा के अधिकारी कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि साहित्य की यात्रा वहीं से आरम्भ होती है, जहाँ से संस्कृति की यात्रा और कानपुर आदिकाल से ही साहित्य एवं संस्कृति का प्रणेता रहा है। कानपुर में क्रान्तिकारी साहित्य को उद्धृत करते हुए यादव ने कहा कि व्यवस्था बदलाव के लिए सियासी नारे की जरूरत नहीं होती, सियासी नारे तो हर साल बदल जाते हैं। जरूरत इन्सान की सोच बदलने की है और साहित्य यह सोच बदलने की काबिलियत रखता है। आकाशवाणी दिल्ली के निदेशक लक्ष्मीशंकर बाजपेई ने कानपुर के रचनाकारों की रचनाओं को विलुप्त होने से बचाने की बात कही तो कवयित्री व लेखिका डॉ प्रभा दीक्षित ने कानपुर के साहित्य में महिला लेखन एवं नारी विमर्श को आगे बढ़ाया।

प्राचार्य एवं लेखक डॉ यतीन्द्र तिवारी ने साहित्य में कानपुर के ऐतिहासिक योगदान व डॉ सुरेश अवस्थी ने वर्तमान परिदृश्य पर चर्चा की। सूचना विभाग के उपनिदेशक अशोक बनर्जी ने साहित्य के साथ-साथ नौटंकी के क्षेत्र में कानपुर की विशिष्टता को उभारा तो अरूण प्रकाश अग्निहोत्री ने पुस्तक मेला की भूमिका रेखांकित की। डॉ राष्ट्रबन्धु ने बाल साहित्य के क्षेत्र में कानपुर के अवदान की चर्चा करते हुए कहा कि हर रचनाकार मन से बाल साहित्यकार भी होता है। होरी पत्रिका के संपादक राज कुमार सचान होरी ने पूरी तरह कविता पर केन्द्रित पत्रिका के प्रकाशन के औचित्य व आज की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि होरी में काव्य की सभी विधाओं और हिन्दी-उर्दू रचनाओं को एक साथ प्रकाशित कर भाषायी एकता को मजबूत बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
इस
अवसर पर कैरियर मानीटर नामक समाचार पत्र का लोकार्पण भी किया गया। होरी और यूएसएम पत्रिका पर परिचर्चा में डॉ गायत्री सिंह इत्यादि ने समीक्षात्मक टिप्पणियां कीं। मानस संगम व उत्कर्ष अकादमी ने उमाशंकर मिश्र एवं राज कुमार सचान होरी का अभिनन्दन किया। घाटमपुर पुखरांया नागरिक परिषद ने होरी को कवि कुलभूषण उपाधि दी। डॉ नारायणी शुक्ला ने सरस्वती गान से कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई तो छह सगी अनवरी बहनों ने वन्देमातरम् एवं राष्ट्रगान द्वारा कार्यक्रम में ओज भरा। यूएसएम पत्रिका के संपादक उमाशंकर मिश्र ने इस अवसर पर कानपुर पर एक विशेषांक निकालने की घोषणा की, जिसे नगर के साहित्यकारों-बुद्धिजीवियों ने सराहा। मानस संगम, उत्कर्ष अकादमी एवं डॉ महमूद रहमानी के सौजन्य से आयोजित इस कार्यक्रम के अन्त में कानपुर के साहित्य को अपनी गरिमामयी साधना से गौरवान्वित करने हेतु साहित्यकारों-कलाकारों को सम्मानित किया गया। तात्याराव टोपे के वंशज विनायक राव टोपे का भी सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन उत्कर्ष अकादमी के निदेशक डॉ प्रदीप दीक्षित ने किया। इस अवसर पर दुर्गा चरण मिश्र, सत्यकाम पहारिया, मनोज सैंगर, अनिल दीक्षित, हिन्दुस्तान अकेला, कमल मुसद्दी, एसपी सिंह, मुकुल नारायण तिवारी,पवन तिवारी, श्रीराम तिवारी, अभिनव नारायण तिवारी, गीता सिंह सहित तमाम साहित्यकार, पत्रकार, बुद्विजीवी एवं नागरिक जन उपस्थित रहे।

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