दिनेश शर्मा
नई दिल्ली। पीलीभीत में भाजपा प्रत्याशी वरुण गांधी ने परिस्थितियोंवश मुसलमानों के बारे में जो भी बोला वह एक तीर था जो निकल गया और लक्ष्यभेदी बन गया। मगर मानना ही होगा कि वास्तव में यह वरुण की एक बड़ी चूक थी, जो संयोग से उनकी बड़ी राजनीतिक उपलब्धी में बदल गई और अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर पर पीलीभीत मे गिरफ्तारी देकर उन्होंने इस चुनाव को विशिष्ट बना दिया है। अब भाजपा की राजनीति में वरुण का सिक्का चल पड़ा है। नेहरू खानदान में पहली बार दो धुर विरोधी और समानांतर शक्तियां राजनीति के मैदान में आ गई हैं। यानी अगर राहुल गांधी कांग्रेस के युवराज हैं तो वरुण गांधी भी भाजपा के युवराज बन गए हैं। रातो-रात वरुण भाजपा के ऐसे नेता बन गए हैं कि जिन्हें भाजपा, कांग्रेस में राहुल गांधी के दावे के सामने खड़ा कर सकती है। वरुण गांधी ने राजनीति की जो राह पकड़ी है उसमें उनकी मुठ्ठी में बहुत कुछ है, जबकि राहुल गांधी का हाथ सबको दिखाई दे रहा है। देश के जिन लोगों ने संजय गांधी का दौर देखा है, पीलीभीत से वरुण का राजनीति में आग़ाज़ देखकर, उनकी भी पुरानी यादें ताजा हो गई होंगी। यकीनन, एक समय देश की नौजवान पीढ़ी के प्रचंड नेता के रूप में छा गए संजय गांधी के इस इकलौते पुत्र में, अपने पिता के तेवर देखने को मिले हैं।
अब जब भी हिंदुओं और मुसलमानों के मामले देश में बहस का मुद्दा बनेंगे तो मीडिया के सवाल और कैमरे भाजपा के हिंदू ब्रांड और नए युवराज वरुण गांधी तक भी जरूर जाएंगे। ऐसे किसी गंभीर मुद्दे पर राजनीति में बोलना भी एक कला है जो हर एक के वश की बात नहीं है। हिंदुस्तान में हिंदू-मुसलमान के संवेदनशील मुद्दे पर बोलने और प्रतिक्रिया देने तक से ज्यादातर नेता दूर भागते हैं। लेकिन वरुण ने बिना लाग लपेट के वह सब बोल दिया जिससे चुनाव आयोग से लेकर राजनीतिक दलों तक में तूफान खड़ा हो गया। देश की धर्मनिरपेक्ष ताकतें लड़खड़ा गईं और एक समय वरुण की भाजपा के नेता भी बगलें झांकने लगे।
वरुण का बाउंसर ही ऐसा था जिसे देश के राजनीतिक दल खेल नहीं पाए। दरअसल देश के लिए राजनीति और धर्म संप्रदाय के लिए राजनीति में बहुत फर्क है। देश की राजनीति में आगे बढ़ने के लिए ऐसी गलतियों के लिए कोई जगह नहीं है। इस मामले में देश के राजनीतिक दलों के बड़बोले और बड़े नेताओं में बड़ी तेजी से मुसलमानों की सहानुभूति हासिल करने की होड़ लग गई और वरुण को संभलने का कोई भी अवसर न देकर उस पर जिस प्रकार से तीखे हमले शुरू कर दिए हैं उनसे वरुण का दोष तो उसकी एक बड़ी उपलब्धी में चला जा रहा है और राजनीतिज्ञों के उपदेश ऐसी बहस में बदल गए हैं, जिसका जवाब वे खुद न देकर अदालतों या गठबंधनों में खोजते आ रहे हैं।
वरुण गांधी पर राष्ट्र सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई करके मायावती सरकार ने अपने लिए कांटे बो लिए हैं। वरुण गांधी का कुसूर इतना बड़ा नहीं माना जा रहा है जितनी बड़ी उसके खिलाफ सरकार ने कार्रवाई की है। समझा जा रहा है कि यह वरुण को देश के और इलाकों में चुनाव प्रचार करने से रोकने की मायावती सरकार ने सुनियोजित साजिश रची है और लोक व्यवस्था के विखंडित होने का बहाना बनाकर चुनाव को अपने पक्ष में करने की ऐसी कोशिश की है जिसमें प्रदेश का सांप्रदायिक माहौल और ज्यादा बिगड़ सकता है। क्योंकि ऐसे मामलों में देखा गया है कि किसी राजनीतिक व्यक्ति के खिलाफ इस प्रकार की कार्रवाईयों से सामाजिक तनाव बढ़ा है। मायावती सरकार यूं तो अपर कास्ट को सर्वसमाज का नाम देकर उनके वोट लुभाने की कोशिश करती आ रही है लेकिन इस घटना से मायावती का अपर कास्ट वोट खिसकने से अब शायद ही बच पाए।
वरुण गांधी कोई अपराधी नहीं है वह केवल एक राजनीतिज्ञ है और यदि इस प्रकार से किसी राजनीतिज्ञ के विरुद्ध आपराधिक मुकदमे दर्ज किए जाएंगे जिनमें कि अधिकांश तो झूठें हों तो फिर राजनीति में अपराधीकरण को रोकना संभव नहीं होगा। मायावती बसपा की ओर से खुद ऐसे समाज विरोधी और अराजक तत्वों को पहले ही चुनाव मैदान में उतार चुकी हैं। जिससे उन्हें अब यह जवाब देना होगा कि वह राजनीतिक रूप से यह साबित करें कि वरुण गांधी एक अपराधी है और उसके विरुद्ध रासुका लगाना जरूरी था। इस मामले ने देश की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया है जिस कारण यह बहस भी देश के सामने एक ज्वलंत मुद्दा होगी कि जिस मायावती ने पूरे प्रदेश और देश में खुलेआम जातीय नफरत पैदा करके और देश के हिंदू देवी देवताओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां करके अपना वोट बैंक खड़ा किया हो उनके विरुद्ध भी क्यों न रासुका जैसी कार्रवाई होनी चाहिए।
राजनीति की ही कोख से जन्म लेने वाले वरुण गांधी को पूरी राजनीति आती होगी यह जरूरी नहीं है। उनकी मां मेनका गांधी जरूर एक ऐसी राजनीतिक मांद से आई हैं, जहां उन्होंने राजनीति के अनंत उतार-चढ़ाव, दांव-पेंच देखे और भोगे हैं। उन्होंने वरुण को काफी समय इंदिरा गांधी परिवार और राजनीति से भी दूर रखा है और इंदिरा गांधी के बाद, उस परिवार से भी दूर रखा जहां से अभी भी कांग्रेस की राजनीति की धारा निकलती है। खैर, वरुण गांधी ने पीलीभीत में भाजपा प्रत्याशी के रूप में अपने चुनाव प्रचार के दौरान जो भी बोला उसके कई मतलब निकल गए हैं। वह अपनी सभा में केवल बोल रहे थे, और वो जो बोल रहे थे, वह इस देश की वास्तविक, सामाजिक और राजनीतिक विकृति का एक भयानक परिदृश्य है। इस पर अभी तो केवल वरुण ने ही बोला है। अब आगे देखिए और भी वरुण पैदा होंगे जो इस बात का इंतजार कर रहे थे, कि कोई इस मामले पर खुलकर बोलने की शुरुआत करे।
वरुण की तरह बोलने वालों का रास्ता खुल गया है और अब यह रास्ता किसी प्रतिबंध या कानून या आयोग से बंद नहीं हो सकता, क्योंकि इस समस्या की अनदेखी करते-करते देश के सांप्रदायिक सद्भाव, सामाजिक और राजनीतिक हालात काफी निराशाजनक हो चुके हैं। इस घटनाक्रम के बाद देश में एक सवाल चल निकला है कि जब दुनिया में तालिबान और अलकायदा को मानवता के विरुद्ध सर-ए-आम अपराध करने की शर्म नहीं है, तो वरुण से ये क्या जवाब तलबी हो रही है? उसने कोई आतंकवादियों वाला अपराध नहीं किया है। वरुण को लगा होगा कि वह अपने देश में जो देखता आ रहा है या सुनता आ रहा है उस पर अपनी अंतरआत्मा में मौजूद भावनाओं और उसके सच को किसी से या किसी प्लेट फार्म पर बोले। आखिर संदर्भ क्या था जिसको लक्ष्य बनाते हुए उस समय वरुण का गुस्सा फूट पड़ा। वह किसी की लड़की से हुई ज्यादती की बात कहना चाह रहा था जो वह नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बन गई और वह बातें पकड़ ली गईं जिन्हें आज राजनीतिक दल अपने अस्तित्व के लिए मुद्दों के रूप में खोजते फिरते हैं।
उसने यदि ये शब्द राजनीति में बोले होते तो शायद वह बहुत संभलकर बोलता और अपने मतलब भर की बात कहकर चुप्पी मार जाता। लेकिन वह तो बोलता गया है और आज भी कह रहा है कि मैंने जो कहा वह बिल्कुल ठीक कहा है और मैं अपने कहे से पीछे नहीं हटूंगा। उस पर जब कुछ पाबंदिया आयद करने की कोशिश की गई और देश के राजनेताओं, राजनीतिक दलों ने हमले जारी रखे तो वह भी मुखर हो गया और भाजपा या शिव सेना भी सामने आ गई। चुनाव आयोग ने उसके कहे पर कार्रवाई करते हुए भाजपा को जो भी सलाह दी या उसके विरुद्ध मुकदमे कायम कराए उससे वरुण गांधी पर कोई प्रभाव पड़ेगा या कितना प्रभाव पड़ेगा इसका परिणाम तो लोकसभा चुनाव बाद सामने आ जाएगा, लेकिन उसके कथन से जो दूसरों के रास्ते खुल गए हैं उन्हें राजनीतिक दल या धर्म निरपेक्ष शक्तियां रोक पाएंगी कि नहीं इस बात पर आइए।
यदि राजनीतिक दल देश के वास्तविक धर्मनिरपेक्ष स्वरूप की ठीक से व्याख्या कर रहे होते तो जो पाठ वरुण ने पढ़ा और उसे अपनी राजनीति की कक्षा में सुनाया तो फिर वह वो नहीं होता जिस पर कुछ नेता और राजनीतिक दल पानी पीपी कर अपने फतवे दे रहे हैं। उन्होंने यह क्यों नहीं समझा कि यह वरुण नहीं बोल रहा है बल्कि देश का वह युवा बोल रहा है जो रोजाना चौबीस घंटे, अलकायदा, जैश ए मुहम्मद या लश्कर की कारगुजारियां देखकर अपनी नई धारणा कायम कर रहा है। उसकी बुद्धि को आपने वास्तविक प्रेरणा नहीं दी और उसे छदम धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाया। जब वह जागरूकता की ओर बढ़ा तो उसे कुछ और सच्चाई नजर आई। यही सच्चाई अब समाज में अपना रूप दिखा रही है और इसके अच्छे या बुरे परिणाम सामने आने लगे हैं।
जिस दिन से वरुण गांधी ने पीलीभीत में चुनाव प्रचार में मुसलमानों के बारे में अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं उस दिन से बाकी राजनीतिक दल सारे मुद्दे छोड़ कर वरुण के पीछे पड़ गए हैं। उनका वश चले तो वे उसे समुद्र में सार्क के सामने फेंक दें। लेकिन वरुण भी एक ऐसी सार्क में बदल रहा है कि जो बहुत से राजनीतिक दलों एवं उनके नेताओं को ठिकाने लगा देगा। वह पीलीभीत में राजनीति में रातों रात जवान हो गया है। उसने अपना एक अखाड़ा जीत लिया है। यदि उसने लोकसभा में जीत दर्ज की, तो उसे यह मान्यता हासिल हो जाएगी कि उसने जो कहा था उसे मतदाताओं ने स्वीकार किया है और यह केवल वरुण के मन की बात नहीं है बल्कि वरुण जैसा वो भी सोचते हैं, जिन्होंने वरुण को जनादेश दिया है।
चुनाव आयोग की निष्पक्षता और उसकी जांच के तरीकों पर उंगली उठ रही है। हालांकि चुनाव आयोग ने केवल वरुण के जवाब की प्रतिक्रिया में ही कार्रवाई की है। वरुण ने अपने विरुद्ध लगाए गए आरोप के जो उत्तर दिए उस पर चुनाव आयोग कार्रवाई करता गया। वरुण ने यहां एक बड़ी चूक की कि वह अपने बचाव में यह भी कहते रहे कि सीडी से छेड़छाड़ की गई और ये भी बोले कि उन्होंने जो कहा उससे मैं पीछे नहीं हटूंगा। यह तकनीकी लड़ाई इस अंजाम तक पहुंचती है कि आयोग को एक ऐसा शिकार मिल गया जिसको पकड़ने पर चुनाव में एक संदेश गया कि चुनाव आयोग के इतिहास में इस हद तक किसी प्रत्याशी के विरुद्ध कार्रवाई हो सकती है और हुई कि उसे चुनाव में टिकट न देने तक की सलाह दी गई और उसे आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी माना गया।
यह सर्वमान्य बात है कि मुस्लिम आतंकवाद और उसके कुछ उपद्रवी तत्वों के भारत में विध्वंसक और विघटनकारी गतिविधियां चलाने के बावजूद भारतीय मुसलमान भारत के राजनीतिक सामाजिक दर्शन और धार्मिक मामलों में बराबर का शरीक है। भारत के सभी मुसलमानों को भारत में विदेशी और विध्वंसक विघटनकारी शक्तियों को पनाह देने के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। वरुण गांधी की मुसलमानों के बारे में आई प्रतिक्रिया को सभी मुसलमानों के लिए स्वीकार नहीं किया जा सकता। भारत की यही एक पहचान है जो कि वैचारिक सामाजिक और सांप्रदायिक गतिरोध के बावजूद भारत को एक रखती है, सब एक दूसरे से मिलते जुलते और तीज त्यौहार में शामिल होते हैं। वरुण गांधी को अपने हिंदूवादी तेवरों में संयम से काम लेना ही होगा क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है जिसमें उन्हें सभी को साथ लेकर चलना होगा।
बहरहाल। ये मामला बहुत आगे जा चुका है और एक नई बहस में तब्दील हो गया है जो एक तो यह है कि आयोग के अपने अधिकारों का कहां तक पता है और दूसरे जो वरुण गांधी ने बोला है उसको देखते हुए भावी राजनीतिक परिदृश्य किस तरफ जा रहे हैं। वरुण ने तो अपनी लाइन क्लियर कर दी है जिस पर खड़े रहकर ही वे राजनीति में आगे बढ़ेंगे- शायद राहुल से भी तेज। भाजपा को भी एक नेता मिल गया है और हो न हो जल्दी ही नेहरू खानदान की ये दो सगी शक्तियां राहुल और वरुण के रूप में सत्ता के लिए आपस में टकराएं यानि एक कांग्रेस और दूसरी भाजपा।