स्वतंत्र आवाज़
word map

सुरक्षा बलों का मनोबल तोड़ रही हैं मायावती

दिनेश शर्मा

मायावती-mayawati

लखनऊ।उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने लोकसभा चुनाव के दौरान अपनी हत्या की आशंका व्यक्त करके उत्तर प्रदेश पुलिस को फिर से मुसीबत में डाल दिया है। उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया है जिस कारण यूपी पुलिस के सामने यह संकट है कि वह इस मामले में किसका गिरेबान पकड़े और किस प्रकार राज्य की मुख्यमंत्री से पूछताछ करे कि उन्हें किस पर शक है। ध्यान रहे कि लखनऊ में पहले भी अपनी महारैली में मायावती अपनी हत्या की आशंका जता चुकी हैं और महारैली में तो उन्होंने खुलकर आरोप लगाया था कि भाजपा उनकी हत्या कराना चाहती है। इस आरोप के बाद यूपी पुलिस ने क्या कार्रवाई की क्या जांच पड़ताल की इसका आज तक पता नहीं चल पाया और यह आरोप आया-गया हो गया। इस बार फिर से मायावती ने अपनी हत्या की आशंका व्यक्त करके सनसनी फैला दी है जिससे सुरक्षा एजेंसियों के सामने यह समस्या खड़ी हो गई है कि वह उनकी आशंका पर क्या और कैसे कार्रवाई करें।
मायावती इस समय अत्यंत कड़ी सुरक्षा में हैं और उनके सुरक्षा कवच को भेद पाना कोई आसान काम नहीं है। इसके बावजूद मायावती ने अपनी सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार से एसपीजी सुरक्षा कवच की कई बार मांग की है। उन्होंने इसके लिए केंद्र सरकार और उसके गृहमंत्रालय को कई बार आड़े हाथों लेते हुए उस पर आरोप भी लगाए। कई बार यह प्रश्न उठा कि मायावती जब अपने को असुरक्षित महसूस करती हैं तो वे यह स्पष्टता से यह क्यों नहीं कहतीं कि उत्तर प्रदेश पुलिस उनकी सुरक्षा करने में नाकाम है, और यदि नाकाम है तो उसे नाकाम किसने बनाया? दूसरा प्रश्न यह है कि क्या गारंटी है एसपीजी सुरक्षा लेने के बाद वह अपने जीवन के प्रति ऐसी आशंका से मुक्त या सुरक्षित हो जाएंगी। यह इसलिए क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पास भी यह सुरक्षा थी जो कि इस सुरक्षा के बावजूद दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियों में मारे गए। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पास भी इसी के समतुल्य कड़ी सुरक्षा थी लेकिन वे किस प्रकार मारी गईं इसे फिर से बताने की आवश्यकता नहीं है। क्या एसपीजी सुरक्षा से उनको यह गारंटी मिल जाएगी कि उनके साथ वह किसी भी प्रकार के दुस्साहस या हादसे को रोक पाएगी? मायावती को किसी आतंकवादी संगठन की धमकी भी सामने नहीं आई है जो कि यह जरूरत महसूस हो कि उत्तर प्रदेश पुलिस की सुरक्षा के साथ-साथ केंद्र के उच्च प्रशिक्षण प्राप्त सुरक्षा कमांडो की भी तैनाती की जरूरत है।
मायावती एक राजनेता हैं जिनका जीवन करोड़ों लोगों की आशाओं, भावनाओं, भविष्य, सुख-समृद्धि और प्रगति से जुड़ा है। वे उत्तर प्रदेश राज्य की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठी हैं। उनका देश के राजनेताओं में भी महत्वपूर्ण स्थान है और राजनीतिक दृष्टि से वह देश की एक संपत्ति हैं, जिनकी सुरक्षा का पूरा दायित्व सुरक्षा एजेंसियों का है। लेकिन साथ ही एक जिम्मेदारी राज्य की मुख्यमंत्री पर भी निश्चित होती है कि वह राज्य की जनता या देश की जनता के सामने किस प्रकार के आरोप और बयान सार्वजनिक कर रही हैं। उनकी जिम्मेदारी केवल अपने राजनीतिक दल और एजेंडों को आगे बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास करने की ही नहीं है, अपितु राज्य शासन के सर्वोच्च पद पर आसीन रहते हुए उनकी यह भी जिम्मेदारी है कि वह कम से कम अपने राज्य के सुरक्षा बलों का मनोबल क्षीण न होने दें जो कि उनकी सुरक्षा में दिन रात एक किए रहते हैं और अपनी जान को उनकी सुरक्षा के लिए हथेली पर रखे रहते हैं। मायावती अपने राज्य की सुरक्षा तंत्र की क्षमताओं पर बार-बार उंगलियां उठाती हैं और यह अनुशासित संगठन अपनी उपहासना उड़ते हुए देखकर केवल चुप रह जाता है। क्या उत्तर प्रदेश का सुरक्षा बल इतना कमजोर है कि वह अपने राज्य की मुख्यमंत्री को पर्याप्त सुरक्षा देने में विफल है? क्या मुख्यमंत्री मायावती ने कभी यह कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस उनकी सुरक्षा के लिए काफी है। यदि उनको अपनी जान का खतरा है तब फिर वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर क्यों विराजमान हैं? वह मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ राज्य की गृहमंत्री भी हैं और अपनी ही फोर्स का मनोबल ऊंचा करने के बजाय अपनी सुरक्षा व्यवस्था पर बयानबाजियों से उसका मनोबल गिरा रही हैं। मायावती यह नहीं देखती हैं कि वह जो आरोप लगा रही हैं उसकी प्रकृति कैसी है और राज्य की जनता और सुरक्षा बलों पर उसका क्या असर पड़ेगा? राज्य में हर प्रकार से सक्षम सुरक्षाबल मौजूद हैं मगर जब वह स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं तो राज्य की जनता को वह क्या सुरक्षा दे पाएंगी?

मुख्यमंत्री मायावती के अपनी हत्या की आशंका के बयान से एक बार फिर राज्य का माहौल गर्मा गया है। कहने वाले कह रहे हैं कि चूंकि मायावती अपने राजनीतिक फैसलों की विफलता से बौखलाई हुईं हैं इसलिए इस प्रकार के बयान देकर वह एक दबाव की राजनीति कर रही हैं। उन्होंने अभी चुनाव आयोग को ललकारा है। उस चुनाव आयोग को जिसकी उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में निष्पक्षता की सराहना की थी। आज उसी चुनाव आयोग पर वह आरोप लगा रही हैं कि वह बसपा के साथ कांग्रेस और सपा से मिलकर साजिश रच रहा है। उन्होंने फिर से एक भावनात्मक बयान दिया है कि एक दलित की बेटी को देश में प्रधानमंत्री बनने से रोका जा रहा है जबकि राजनीतिक विश्लेषणों में यह बात शुरू से कायम है कि मायावती किसी भी समीकरण से देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी के करीब नहीं है। उन्होंने उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार भ्रष्टाचारियों, हत्यारों, बदमाशों, गुंडों और माफियाओं को लोकसभा चुनाव में बसपा का प्रत्याशी बनाया है उसकी राज्य भर में ही नहीं बल्कि देश भर में आलोचना हो रही है।

राजस्थान में बसपा के विधायक मायावती के तानाशाही के कारण बसपा छोड़कर कांग्रेस के साथ चले गए। उत्तर प्रदेश के जौनपुर लोकसभा क्षेत्र में जस्टिस पार्टी के दलित प्रत्याशी की हत्या कर उसे पेड़ पर लटका दिया गया। सारा जौनपुर कह रहा है कि सोनकर की हत्या के पीछे बसपा के प्रत्याशी और माफिया सरगना धनंजय सिंह हाथ है और उत्तर प्रदेश पुलिस कह रही है कि यह आत्महत्या का मामला है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री कार्यालय में उनके कैबिनेट सचिव से लेकर प्रमुख सचिवों और सचिवों तक पर यह गंभीर आरोप आ रहा है कि वे वहां बैठकर लोकसभा इलेक्शन को बसपा के पक्ष में प्रभावित कर रहे हैं जिसका कि प्रमाण पंचम तल के टेलीफोन कॉल डिटेल्स से प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे गंभीर आरोपों के बाद मायावती के बयान उनको और ज्यादा मुसीबतों में डाल रहे हैं। मायावती की कार्यप्रणाली और उनके खिलाफ आरोपों की एक लंबी फेहरिस्त है जो बहुत ही चर्चा का विषय है इस पर राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते आ रहे हैं। मायावती के अपनी हत्या की आशंका के आरोप पर भी विभिन्न दलों ने प्रतिक्रियाएं दी हैं।
बसपा प्रमुख मायावती की हत्या की आशंका को राजनैतिक बयानबाजी बताते हुए उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं प्रवक्ता हृदयनारायण दीक्षित ने कहा है कि जिस राज्य का मुख्यमंत्री ही स्वयं अपनी सुरक्षा कर पाने में अक्षम, लाचार और बेबस है, उससे राज्य की कानून व्यवस्था को दुरूस्त करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? मुख्यमंत्री को हत्या की आशंका वाले लोगों के नाम बताने चाहिएं। प्रदेश पुलिस को इस मसले पर मुख्यमंत्री से पूछताछ करनी चाहिए। मुख्यमंत्री सबूत दे सकें तो संदिग्धों पर एफआईआर भी होनी चाहिए। दीक्षित ने कहा कि बसपा सरकार ने पूरे 2 वर्ष डराने धमकाने और दहशत फैलाकर वसूली का ही काम किया है। चुनाव के समय भी सरकार का प्रमुख एजेण्डा भय और दहशत ही है। बसपा ने चुनाव आयोग के प्रति भी निन्दात्मक रूख अपनाया है। लेकिन डराने धमकाने के जरिए भयग्रस्त करने वाले दलों का यही हश्र होता है। बसपा अपने ही कर्मो से डरी हुई पार्टी है। उसका मतदाता छिटक गया है। इसी मतदाता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए बसपा प्रमुख ने अपनी हत्या की आशंका की बात कही है।

भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि बसपा प्रमुख ने भाजपा पर आरोप लगाया है, वे भाजपा पर एफआईआर लिखवाएं, उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं है कि बसपा को उनके ही माफिया तत्वों से ही जान को खतरा है। दीक्षित ने जौनपुर लोकसभा क्षेत्र के एक उम्मीदवार की हत्या में आरोपितों को डीजीपी द्वारा क्लीनचिट देने की कड़ी निन्दा की और कहा कि सरकार के निर्देश पर ही क्लीनचिट दी गई है। जांचकर्त्ताओं ने तथ्यों, साक्ष्यों की अनदेखी की और पूरे मसले पर लीपापोती करके जांच आख्या सरकार के कहे अनुसार बना दी गयी। इसकी जितनी भी निन्दा की जाये उतनी कम है। समाजवादी पार्टी ने भी मायावती के बयान पर खेद व्यक्त किया है। सपा के कार्यकारी अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने कहा है कि अपनी हत्या की आशंका व्यक्त करने के बाद मुख्यमंत्री मायावती को अपने पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं बचा है क्योंकि जब वे ही सुरक्षित नहीं है तो फिर वह राज्य की जनता को क्या सुरक्षा दे पाएंगी।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]