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माया के राज-पाट पर संकट के बादल

विशेष संवाददाता

मायावती-mayawati

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के उच्च सुरक्षा परिक्षेत्र में स्थित प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी के घर में आगजनी करने वाले सब कांग्रेसी हैं, आगजनी की इस भयानक घटना के तुंरत बाद किस जांच रिपोर्ट का यह नि‍ष्कर्ष है और क्या मुख्यमंत्री मायावती के मुख से कहलाई गई इस आगजनी की यह अंतिम सच्चाई है? यदि आगे चल कर यह बात झूठी साबित हो जाती है तो मुख्यमंत्री मायावती की किसी भी बात पर आगे यकीन किया जा सकता है? वह भी तब जब वे राज्य के मुख्यमंत्री के महत्वपूर्ण पद पर आसीन हैं। क्या राज्य का सुरक्षा एवं खुफिया तंत्र इतना चुस्त है कि उसने तुरंत पता लगा लिया कि आगजनी करने वाले कांग्रेसी ही हैं? यदि सुरक्षा तंत्र भी इतना मजबूत है तो उच्च सुरक्षा परिक्षेत्र में पुलिस बल की मौजूदगी में किसी के घर में आगजनी की यह घटना देर तक कैसे अंजाम दी जाती रही? यदि यह घटना कोई आतंकवादी वारदात हुई होती तो तब क्या होता? ये वो गम्भीर प्रश्न है जो राज्य के सुरक्षा तंत्र और खुफिया तंत्र को अविश्वसनीय बनाते हुए निरूत्तर करते हैं और मायावती की शासन प्रणाली को बद से बदतर साबित करते हैं।
इन कुछ दिनो में उत्तर प्रदेश की खराब कानून व्यवस्था से हर आदमी घबराया हुआ है। बच्चों से लेकर महिलाओं और व्यवसायी वर्ग की सकुशल घर पहुंचने की गारंटी अब नहीं है। पुलिस शहरों और राजमार्गों पर ट्रकों और वाहनों से और रेल गाड़ियों में यात्रियों से लुटेरों और गुंडों की तरह से वसूली कर रही है। सड़कों पर चलते माल वाहक वाहन पुलिस की अवैध वसूली से बचने के लिए भागते समय बच्चों और राहगीरों को कुचल रहे हैं। अधिकांश सरकारी अधिकारी और कर्मचारी आम जनता का शोषण करने में लगे हैं। सत्तारूढ़ दल बसपा के ज्यादातर लीडर और कार्यकर्ता, सरकारी और गैरसरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को धमका कर चंदा वसूली करते आ रहे हैं। जहां तक मुख्यमंत्री मायावती की कार्यप्रणाली का प्रश्न है तो यह जगजाहिर है कि वह राज्य के गुंडों और माफियांओं को पूरी छूट दिए हुए हैं, नहीं तो एक बसपा विधायक और बसपाइयों की इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह उच्च सुरक्षा जोन में अतिविशिष्ट राजनेता के घर में देर तक आगजनी करते रहें यह सब सरकार में बैठे किसी ताकतवर नेता या अफसर की शह के बिना सम्भव नहीं हो सकता। रीता बहुगुणा मामले में मायावती ने घटना के चौबीस घंटे के भीतर कई मोड़ लिए हैं जिनमे उन्होंने अचानक संसद में असहयोग की नीति छोड़कर सहयोग करने की घोषणा कर दी है। राजनीतिक दल और सामान्य जन मायावती सरकार के बारे में अब तरह-तरह की टीका-टिप्पणियां कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री मायावती के प्रधान गुप्तचर उन्हें आखिर राज्य की क्या सूचनाएं दे रहे हैं? ये ही कि रीता बहुगुणा के घर में आगजनी करने वाले कांग्रेसी हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री मायावती को क्या कभी बताया कि उनके फैसलों और उनके कुछ खास लोगों के कारण जनसामान्य में उनकी छवि अच्छी नहीं है? उन्होंने मुख्यमंत्री को कभी बताया कि उनके कार्यालय एनेक्सी में बैठने वाले उनके प्रमुख अधिकारी और कुछ खास मंत्री उन्हें जानबूझ कर जनता से अलग-थलग किए हुए हैं और अपने भ्रष्टाचारी एजेंडे चलाए हुए हैं? पूरे देश में उत्तर प्रदेश में सरकारी भ्रष्टाचार का चर्चा है और क्या मायावती को मालूम नहीं है कि राज्य में भ्रष्टाचार चरम पर है और इसको लेकर वही सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। दलित समाज में भी भारी निराशा है और निराशा का कारण यह भी है कि दलितों को सर्व समाज में प्रतिक्रियावादी दृष्टि से देखा जा रहा है जिससे उनका बाकी समाज में बैठना उठना भी मुश्किल हो रहा है। पुलिस उनकी कोई मदद नहीं कर पा रही है और ना ही लोग अब मुख्यमंत्री के मुंह लगे अधिकारियों की ताकत और किसी धमकी या एक्ट की परवाह कर रहे हैं। मायावती को बताया गया है कि नहीं कि उनका लोकसभा चुनाव में किसलिए इतना बुरा हाल हुआ है? यह वह कड़वी सच्चाई है जिसने पूर्ण बहुमत की अकड़ में मायावती को राजनीतिक रूप से बहुत कमजोर कर दिया है।
मुख्यमंत्री मायावती ने हड़बड़ाहट में एक और शगूफा छोड़ा है कि केंद्र में बसपा की सरकार बनने पर वे दलित एक्ट को खत्म करके उसकी जगह सर्वसमाज महिला एक्ट लाएंगी। लगभग सब जानते हैं कि मायावती सरकार ने देश के सुप्रीम कोर्ट में मूर्तियों और पार्कों के निर्माण और उत्पीड़न के मामलो में झूठे शपथ-पत्र लगा कर कोर्ट को गुमराह किया है। मायावती अच्छी तरह से जानती हैं कि दलित एक्ट की आड़ में क्या-क्या हो रहा है और क्या-क्या किया जा सकता है। रीता बहुगुणा जोशी पर इस एक्ट का प्रहार जिस उद्देश्य से किया गया है वह भी सभी ने समझ लिया है। रीता बहुगुणा जोशी ब्राह्मण हैं और उन्होंने हाल ही में कांग्रेस के भगौड़े एक प्यादे को न केवल लखनऊ में धूल चटाई है बल्कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस में जान फूंककर बसपा के लिए मुसीबतें खड़ी की हैं। एक महिला नेता के प्रतिद्वंदी होने का डाह भी मायावती को बहुत सता रहा है। उत्तर प्रदेश में बदले हालातों में मायावती के सामने बौखलाकर उलटे सीधे फैसले करने के अलावा कोई मार्ग नहीं बचा है।
बसपा के आंतरिक सूत्र बोलते हैं कि बसपा के भीतर अनुशासन के नाम पर तानाशाही का तांडव चल रहा है। यहां किसी को भी अपनी बात कहने की आजादी नहीं है। बाहर के लोगों से मायावती शत्रुवत व्यवहार कर रही हैं तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। बाकी कसर मायावती के खास सलाहकार समझे जाने वाले मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, विधि सलाहकार और ब्राह्मणों के कथित नेता सतीश चंद्र मिश्र और मायावती सरकार के चपरासी से अफसरों तक के अनाप-शनाप तबादलों, नियुक्तियों और ठेकेदारों के अघोषित इंचार्ज-कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह पूरी कर रहे हैं। यह अलग बात है कि मायावती सरकार के जाने के बाद इनका क्या हाल बनने वाला है यह उनको भी और बाकी सभी को पता है।

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